इस ‘त्रिशूल’ से होगा कोरोना का अंत!

शुक्रवार को लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के हल्के से सामान्य लक्षण वाले मरीजों पर ट्रिपल एंटीवायरल थेरैपी काफी असरदार साबित हो सकती है. इस अध्ययन में इस्तेमाल की गयी तीनों दवाइयां दूसरी बीमारियों का उपचार करने के लिए पहले से ही स्वीकृत हैं.

By दिल्ली ब्यूरो | May 10, 2020 2:33 AM
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वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि कोविड-19 के हल्के से सामान्य लक्षणवाले मरीजों का उपचार करने में तीन दवाइयों के कॉम्बिनेशन का ‘त्रिशूल’ दो दवाइयों के कॉम्बिनेशन के मुकाबले कहीं ज्यादा असरदार है. शुक्रवार को लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के हल्के से सामान्य लक्षण वाले मरीजों पर ट्रिपल एंटीवायरल थेरैपी काफी असरदार साबित हो सकती है. इस अध्ययन में इस्तेमाल की गयी तीनों दवाइयां दूसरी बीमारियों का उपचार करने के लिए पहले से ही स्वीकृत हैं.

त्रिशूल की तीन दवाइयां : ये तीन दवाइयां हैं- इंटरफेरॉन बीटा 1बी, लोपिनाविर-रिटोनाविर और रिबाविरिन. इंटरफेरॉन बीटा 1बी का इस्तेमाल सामान्य तौर पर मल्टीपल स्केलोरोसिस का इलाज करने के लिए किया जाता है. लोपिनाविर-रिटोनाविर एचआईवी के इलाज में इस्तेमाल में लाया जानेवाला एक एंटी रेट्रोवायरल दवाई कॉम्बिनेशन है और रिबाविरिन का सामान्य तौर पर इस्तेमाल हेपेटाइटिस-सी का इलाज करने के लिए किया जाता है.

हॉन्गकॉन्ग में मरीजों पर किया गया अध्ययन : हॉन्गकॉन्ग के छह अलग-अलग अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने 120 से ज्यादा मरीजों को दो इलाज समूहों में बांटा. उन्होंने कोविड-19 के हल्के से सामान्य लक्षणों वाले मरीजों के एक समूह को तीन दवाइयों का कॉम्बिनेशन दिया और एक समूह को सिर्फ दो दवाइयों लोपिनाविर-रिटोनाविर (एचाईवी कॉम्बिनेशन) का कॉम्बिनेशन दिया.यह अध्ययन प्राथमिक फेज 2 ट्रायल था, जिसका मकसद यह देखना था कि कोविड-19 के इलाज में यह कॉम्बिनेशन कितना कारगर है. जब शोधकर्ताओं ने दोनों परीक्षण समूहों का अध्ययन किया तो पाया कि जिन मरीजों को तीन दवाइयों का कॉम्बिनेशन दिया गया, वे उन मरीजों की तुलना में 5 दिन पहले ही वायरस के लिए निगेटिव पाये गये, जिन्हें सिर्फ एंटी एचाईवी दवाई का कॉम्बिनेशन दिया गया था. इसके अलावा ट्रिपल थेरैपी वाले मरीजों को कम दिन हॉस्पीटल में रहना पड़ा और उनके लक्षण ज्यादा जल्दी गायब हो गये.

इंटरफेरॉन बीटा 1बी की खासियत : इंटरफेरॉन बीटा 1बी वायरसों से लड़ने के लिए शरीर द्वारा पैदा किया जानेवाला एक इम्यून केमिकल है. नोबेल कोराना वायरस सार्स-सीओवी-2 में एक ऐसा जीन पाया जाता है, जो इंटरफेरॉन के सिग्नल में रुकावट पैदा करता है. ऐसे में शरीर को ज्यादा मात्रा में और बाहर से इंटरफेरॉन बीटा-1बी की मुहैया कराने से कोरोना-वायरस के हमले को विफल किया जा सकता है और लोगों को गंभीर रूप से बीमार होने से रोका जा सकता है.

जल्दी उपचार है अहम : वैज्ञानिकों का मानना है कि ट्रिपल कॉम्बिनेशन थेरैपी की सफलता का एक राज जल्दी उपचार था. दोनों ही समूहों में ज्यादातर मरीज ऐसे थे, जिनका इलाज लक्षण दिखाई देने के एक सप्ताह के भीतर शुरू कर दिया गया था. डॉक्टरों का कहना है कि किसी वायरल रोग में जल्दी इलाज शुरू करना काफी महत्वपूर्ण है. इलाज जल्दी शुरू नहीं होने पर संक्रमण पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है. गंभीर रूप से बीमार होने पर वायरस संक्रमण के नियंत्रण से बाहर हो जाने का खतरा रहता है. शरीर वायरस से मुकाबला करने के लिए ऐसे रसायनों को रिलीज करता है, जो शरीर के दूसरे अंगों को खराब कर सकता है और मरीज का फेफड़ा वेंटीलेटर के बगैर सांस लेने की स्थिति में नहीं रह जाता है. इस स्थिति में आ जाने के बाद एंटी वायरल दवाई का प्रयोग असरदार नहीं होता.

ज्यादा साइड इफेक्ट नहीं : निष्कर्ष की एक अच्छी बात यह है कि इन दवाइयों के कॉम्बिनेशन का कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं दिखाई दिया. इन दवाइयों के मुख्य निगेटिव साइड इफेक्ट मितली आना और दस्त था, लेकिन दोनों समूहों में इसको लेकर कोई अंतर नहीं था. सबसे बड़ी बात है कि दोनों ही समूहों में से किसी समूह में किसी मरीज की मृत्यु नहीं हुई. इंटरफेरॉन का एक मुख्य निगेटिव साइड इफेक्ट फ्लू के लक्षणों वाला बुखार है और वायरल रोगों के इलाज में यह लोकप्रिय नहीं है. इसमें जो साइड इफेक्ट दिखाई दिये वे मुख्यतः लोपिनाविर-रिटोनाविर के कारण थे.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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