झारखंड में क्या है होम आइसोलेशन के नियम, जानें कांटैक्ट ट्रैसिंग और ट्रीटमेंट से लेकर डिस्चार्ज तक के महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों के बारे में

Contact tracing, containment zone, home isolation, discharge protocol for covid patients, Latest Coronavirus update : झारखंड सरकार (jharkhand government) की तरफ से कोरोना मरीजों को लेकर प्रोटोकॉल (corona patient protocol) बनाया गया है़ स्वास्थ्य सचिव डॉ नितिन कुलकर्णी ने इसे सभी जिलों के उपायुक्त को भेजकर प्रोटोकॉल के अनुरूप ही कार्रवाई का निर्देश दिया है. इसे चार हिस्सों में बनाया गया है. ये हैं कांटैक्ट ट्रैसिंग (contact tracing protocol), कंटेनमेंट जोन (containment zone protocol), होम आइसोलेशन (home isolation protocol for covid) और डिस्चार्ज के प्रोटोकॉल़ (discharge protocol for covid patients) इसे आइसीएमआर की गाइडलाइन (icmr guidelines for coronavirus) के अनुरूप ही बनाया गया है. इसका पालन जिला प्रशासन को करना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2020 8:52 AM

Contact tracing, containment zone, home isolation, discharge protocol for covid patients, Latest Coronavirus update : झारखंड सरकार (jharkhand government) की तरफ से कोरोना मरीजों को लेकर प्रोटोकॉल (corona patient protocol) बनाया गया है़ स्वास्थ्य सचिव डॉ नितिन कुलकर्णी ने इसे सभी जिलों के उपायुक्त को भेजकर प्रोटोकॉल के अनुरूप ही कार्रवाई का निर्देश दिया है. इसे चार हिस्सों में बनाया गया है. ये हैं कांटैक्ट ट्रैसिंग (contact tracing protocol), कंटेनमेंट जोन (containment zone protocol), होम आइसोलेशन (home isolation protocol for covid) और डिस्चार्ज के प्रोटोकॉल़ (discharge protocol for covid patients) इसे आइसीएमआर की गाइडलाइन (icmr guidelines for coronavirus) के अनुरूप ही बनाया गया है. इसका पालन जिला प्रशासन को करना है.

कांटैक्ट ट्रेसिंग का प्रोटोकॉल (contact tracing protocol)

– मरीज मिलने के 72 घंटे के अंदर कांटैक्ट ट्रैसिंग की जानी है

– हाइ रिस्क और लो रिस्क कांटैक्ट की पहचान करनी है.

हाइ रिस्क : एक ही घर में रहनेवाले अन्य सदस्य, संक्रमित के किसी समान को स्पर्श करने वाले, सीधे शारीरिक रूप से संबंध में आये हैं. संक्रमित के कपड़े आदि धोने वाले. साथ ही वाहन में एक मीटर की दूरी तक संपर्क में रहनेवाले पैसेंजर.

लो रिस्क : इसके में एक ही रूम, क्लास, कार्यस्थल में रहने वाले लोग, एक ही साथ बस, ट्रेन, फ्लाइट या अन्य वाहन से सफर करनेवाले लोग शामिल हैं.

नये केस मिलने के 72 घंटे के अंदर में 80 प्रतिशत कांटैक्ट ट्रैसिंग का काम हो जाना चाहिए. लिस्ट बनाने का काम जिलों में निर्धारित टीम की जिम्मेदारी है़

हाइ रिस्क कांटैक्ट को सांस्थानिक कोरेंटिन में रखना है, जबकि लो रिस्क को होम कोरेंटिन में रखना है. लो रिस्क में यदि कोई सिस्टम डेवलप होता तो उसकी जांच करायी जाये और उसे सांस्थानिक कोरेंटिन में भेजा जाये.

होम आइसोलेशन प्रोटोकॉल (home isolation protocol for covid)

– घर में जरूरी सुविधा

– व्यक्ति क्लीनिकली एसिम्पटोमेटिक या माइल्ड सिम्पटमस वाले हो सकते हैं जिनका इलाज किसी डॉक्टर द्वारा किया जा रहा हो.

– गंभीर बीमारी होने पर होम आइसोलेशन नहीं मिलेगा

– बुजुर्ग जिनमें हाइपरटेंशन, डायबिटीज, हृदय रोग, क्रोनिक लंग, लीवर, किडनी की बीमारी, सेरेब्रो वैस्कूलर डिजीज हो, तो जांच के बाद ही अनुमति दी जा सकती है.

– मरीज को सहमति देनी होगी कि वह अपने स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग कर सकता है और नियमित रूप से डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस अफसर को वीडियो कॉलिंग के जरिये जानकारी देता रहेगा.

– मरीज के साथ रहनेवाले भी हाइड्रोक्लोरोक्वीन अथवा डॉक्टर द्वारा दी गयी दवा लेने के लिए राजी हो.

– शपथ पत्र भी देना होगा.

– एक केयर गिवर होना चाहिए जो 24X7 मरीज की देखभाल कर सके.

– एक हवादार, सिंगल रूम होना चाहिए, जिसका अलग बाथरूम भी हो.

– घर में बुजुर्ग, गर्भवती महिला, बच्चे से दूर रहना होगा.

– एक बेसिक स्मार्ट फोन होना चाहिए जिसमें कुछ एप्लीकेशन इंस्टाॅल्ड किया जा सके.

– एक डिजिटल थर्मामीटर और एक लॉग शीट हो जिसमें नियमित रूप से शरीर का तापमान दर्ज किया जा सके.

– ऑक्सीमीटर भी हो ताकि नियमित रूप से ऑक्सीजन लेवल की जांच की जा सके.

– मरीज और घर के सदस्यों के लिए ट्रिपल लेयर मास्क पर्याप्त संख्या में होना चाहिए.

– घर में पर्याप्त मात्रा में सैनिटाइजर होना चाहिए.

– एक प्रतिशत हाइपोक्लोराइट सोल्यूशन भी हो

– बेसिक मेडिसिन जिसमें हाइड्रोक्लोरोक्वीन, बी-कंपलेक्स, जिंक, विटामिन सी, विटामिन डी टैबलेट भी रखना है.

– आरोग्य सेतू ऐप डाउनलोड करना होगाखुद ही अपने खतरे को पहचानना होगा.

ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल (treatment protocol for covid 19)

– पॉजिटिव मरीज को अस्पताल, कोविड-19 केयर सेंटर या होम आइसोलेशन में रखा जाना है.

– एक बार मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गयी और वह अस्पताल में भर्ती हो गया तो उसकी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही उसे डिस्चार्ज किया जा सकेगा.

– मरीज के इलाज प्रबंधन के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था की गयी है. इसके तहत एसिम्पोटोमैटिक को कोविड केयर सेंटर या होम आइसोलेशन में रखा जा सकता है. मोडरेट सिम्पटोमैटिक केस को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर(डीसीएचसी) में रखा जाना है. गंभीर मरीज को डेडिकेटेड कोविड अस्पताल में रखा जाना है. 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग को डीसीएचसी या डीसीएच में रखा जाना है. किसी भी सूरत में संदिग्ध और कंफर्म केस को एक साथ नहीं रखा जा सकता.

डिस्चार्ज प्रोटोकॉल (discharge protocol for covid patients)

– पॉजिटिव मरीज सीसीसी, डीसीएचसी और डीसीएच में उनकी स्थिति के अनुसार भर्ती किये जायेंगे. सफलतापूर्वक इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज किया जा सकता है.

– माइल्ड और एसिम्पटोमैटिक मरीज की सात दिन बाद जांच होगी.

– सिम्पटोमैटिक मरीज की जांच 10 दिनों में होगी.

– किसी भी मरीज को डिस्चार्ज करने के लिए यह अनिवार्य है कि उसका कम से कम एक बार निगेटिव रिजल्ट आना चाहिए.

– डिस्चार्ज किये जाने के बाद मरीज को अनिवार्य रूप से 14 दिनों के होम कोरेंटिन में रहना होगा.

– यदि दूसरी बार भी मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो हर तीसरे दिन उसका टेस्ट कराया जायेगा जबतक कि निगेटिव नहीं आता.

– टेस्ट निगेटिव आने के बाद भी बुखार और सांस में तकलीफ हो, तो डिस्चार्ज नहीं किया जायेगा.

कंटेनमेंट जोन का प्रोटोकॉल (containment zone protocol)

24 घंटे के अंदर कर लिया जाये एरिया चिह्नित : केस मिलने के 24 घंटे के अंदर एरिया चिन्हित कर लिया जाये और कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाये. पॉजिटिव केस का इलाज सांस्थानिक या अस्पताल में क्लीनिकल मैनजेमेंट प्रोटोकॉल के तहत किया जाना है. केस के हाइ रिस्क और लो रिस्क कांटैक्ट की तलाश करनी है.

कंटेनमेंट जोन का निर्धारण भौगोलिक या भौतिक बाउंड्री के तहत किया जायेगा. इसमें केस की मैंपिग और संपर्क को देखा जाना है. केस के संपर्क की भौगोलिक फैलाव को देखना है. विभाग द्वारा कहा गया है कि केस के हिसाब से माइक्रो कंटेनमेंट का प्लान भी किया जा सकता है.इसमें किसी अपार्टमेंट या फ्लैट, अलग मकान, छोटी बसावट या कॉलोनी, गली या स्थानीय स्थिति को देखकर इसका निर्धारण किया जा सकता है. नोडल अधिकारी डीसी होते हैं. डीसी ही स्वास्थ्य पदाधिकारी, आपदा प्रबंधन प्राधिकार, राजस्व, वन, पीडब्ल्यूडी, शिक्षा, नगर निकाय व पंचायती राज के पदाधिकारियों के साथ कंटेनमेंट प्लान बनाते हैं.

28 दिनों तक केस न मिलने पर ही क्षेत्र मुक्त होगा : प्रोटोकॉल के अनुसार किसी कंटेनमेंट जोन में चार सप्ताह यानी 28 दिनों तक कोई नया केस न मिलने पर ही इसे डिनोटिफाइ किया जायेगा. यानी कंटेनमेंट जोन से मुक्त किया जायेगा. कंटेनमेंट जोन के बनाने से लेकर हटाने तक की सारी प्रक्रिया स्टेट आइडीएसपी को सूचित भी करनी होती है.

किसी के आने-जाने की अनुमति नहीं (containment zone rules)

कंटेनमेंट जोन के प्रवेश व बाहर निकलने के रास्ते में बैरिकेडिंग जरूरी है. सिर्फ मेडिकल टीम को ही प्रवेश की अनुमति दी जायेगी. कंटेनमेंट जोन के तमाम लोगों की जांच करनी है. यदि किसी घर के कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है, तो परिवार के सभी सदस्यों को भी घर में ही बंद रहना होगा. कंटेनमेंट जोन का स्पष्ट आदेश हो और संबंधित क्षेत्र के लोगों को इसकी जानकारी दी जाये.

कंटेनमेंट जोन में सभी घरों की जांच (containment zone rules in jharkhand)

कंटेनमेंट जोन में सभी घरों की जांच की जाये. विशेष टीम द्वारा गहन कांटैक्ट ट्रैसिंग की जायेगी. सबकी सूची बनायी जायेगी. सिम्पटोमैटिक हाइ रिस्क कांटैक्ट की पहचान कर उसकी सैंपलिंग की जायेगी. लो रिस्क कांटैक्ट पर निगरानी रखी जाये और जांच की जाये. पॉजिटिव के घरों में पोस्टर या स्टीकर लगाया जाना चाहिए और कम्युनिटी को जानकारी होनी चाहिए कि संबंधित व्यक्ति कोरेंटिन में है.

Posted By : Sumit Kumar Verma

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

Next Article

Exit mobile version