इमोशनल हाइजैकिंग क्या है, जानें इसके लक्षण व इससे बचने के उपाय

भावनात्मक अपहरण से पीड़ित व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष, संबंधों में असमंजस, और आत्मविश्वास की कमी का सामना कर सकते हैं. इमोश्नल हाईजैकिंग के दौरान, व्यक्ति के भावनात्मक जवाब को उसके सामाजिक और पर्याप्त प्रतिक्रियाओं के साथ तुलना करने और समझने की क्षमता कम हो जाती है.

By Shradha Chhetry | July 24, 2023 11:53 AM

भावनात्मक अपहरण या इमोशनल हाइजैकिंग एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जो व्यक्ति को उनकी भावनाओं, विचारों, और आत्मिक स्वास्थ्य के अनुभवों से दूर ले जाती है. इस अवस्था में व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता और स्वयं के प्रति नियंत्रण खो देते हैं और उन्हें अपने भावनाओं को समझने और संभालने में समस्या होती है. भावनात्मक अपहरण से पीड़ित व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष, संबंधों में असमंजस, और आत्मविश्वास की कमी का सामना कर सकते हैं. इमोश्नल हाईजैकिंग के दौरान, व्यक्ति के भावनात्मक जवाब को उसके सामाजिक और पर्याप्त प्रतिक्रियाओं के साथ तुलना करने और समझने की क्षमता कम हो जाती है. इससे व्यक्ति अपनी संतुष्टि, संवेदनशीलता और समझदारी को खो सकता है, जिससे उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर असर पड़ सकता है.

भावनात्मक अपहरण के लक्षण

भावनाओं का अत्यधिक उछाल: भावनात्मक अपहरण के पहले लक्षणों में से एक यह है कि जब हम अत्यधिक भावनाओं का उछाल महसूस करते हैं जिन्हें हम नहीं जानते कि कैसे नियंत्रित किया जाए.

स्वयं समीक्षा की कमी: व्यक्ति खुद की भावनाओं और विचारों को समीक्षा करने में असमर्थ हो जाते हैं. उन्हें अपने भीतर के दुख, संघर्ष, या असहज भावनाओं को समझने में कठिनाई हो सकती है.

असंतुलन: भावनात्मक अपहरण से प्रभावित व्यक्ति के मन में असंतुलन रहता है. उन्हें अपनी भावनाओं के साथ संघर्ष होता है और वे अपनी सही भावना को निकालने में असमर्थ हो सकते हैं.

अत्यधिकता या अभिमान: भावनात्मक अपहरण के प्रभाव में व्यक्ति अपनी भावनाओं की अत्यधिकता या अभिमानी हो सकते हैं. वे अपने आत्म-स्वार्थ के लिए दूसरों की भावनाओं का उपयोग कर सकते हैं.

दूसरों के भावनाओं का उपयोग: भावनात्मक अपहरण से प्रभावित व्यक्ति अपने अभिमान और आत्मसम्मान के लिए दूसरों की भावनाओं का उपयोग कर सकते हैं. वे अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की भावनाओं का उपयोग कर सकते हैं.

भावुकता और उत्साह की कमी: भावनात्मक अपहरण से प्रभावित व्यक्ति के मन में भावुकता और उत्साह की कमी हो सकती है. उन्हें जीवन में रुचि कम हो सकती है और वे अपने कामों में उत्साह नहीं दिखा सकते.

भावनाओं की अव्यवस्था: भावनात्मक अपहरण में व्यक्ति अपनी भावनाओं को संभालने में असमर्थ हो जाता है और उन्हें समझने और व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करता है. उनकी भावनाएं अस्थिर हो जाती हैं और उनके मन का स्थिरता से बदल जाने के कारण उन्हें समझने में और दूसरों के साथ व्यवहार करने में परेशानी हो सकती है.

गुस्से का हाईजैकिंग: इसमें व्यक्ति अपने गुस्से को संभालने में असमर्थ होता है और अचानक से उच्च ध्वनि पर चिल्लाने, तोड़फोड़ करने या हिंसा प्रदर्शन करने जैसे असामान्य व्यवहार कर सकता है.

भावनात्मक अपहरण के प्रकार

अभिमान-अपहरण: इसमें व्यक्ति अपने अभिमान के कारण अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की भावनाओं का उपयोग करता है. वे अपने अभिमान के बल पर दूसरों को अपने मनचाहे तरीके से काम में लेने का प्रयास करते हैं और अपने आत्म-स्वार्थ को पूरा करने के लिए उन्हें चारों ओर समाज से जुड़े रहना पड़ता है.

आधीन-अपहरण: इसमें व्यक्ति अपनी आधीनता के कारण अन्य लोगों के साथ अनुकूलता दिखाता है और अपने लिए लाभ उठाता है. वे दूसरों की सेवा में लगे रहने के लिए तैयार होते हैं और उनके स्वार्थ के लिए अपने अधीन से नहीं हटते.

भावनात्मक अपहरण से बचने के उपाय

दिये गये कुछ उपायों को अपनाने से व्यक्ति अपने भावनात्मक स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकता है और इमोशनल हाईजैकिंग से बच सकता है. यह मानसिक समस्याएं कम करने और संबंधों में सकारात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं

स्वयं संवेदनशीलता: भावनात्मक अपहरण से बचने के लिए व्यक्ति को अपनी भावनाओं को समझने की क्षमता को विकसित करनी चाहिए. वे अपने मन के भावों को समझें और उन्हें व्यक्त करने के लिए सक्रिय रहें.

समय का प्रबंधन: समय का सही प्रबंधन करना भावनात्मक अपहरण से बचने में मदद कर सकता है. व्यक्ति को अपने लक्ष्यों के लिए समय निर्धारित करना और उसे समय समय पर व्यक्त करना चाहिए.

संबंधों में सकारात्मकता: सकारात्मक संबंध व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करते हैं. व्यक्ति को दूसरों के साथ सम्मानपूर्वक और सकारात्मक तरीके से व्यवहार करना चाहिए.

स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली: स्वास्थ्यपूर्ण आहार, नियमित व्यायाम, ध्यान और नींद भावनात्मक अपहरण से बचने में मदद कर सकते हैं. व्यक्ति को ध्यान और मेधा बढ़ाने वाली गतिविधियों में भी रुचि रखनी चाहिए.

सहानुभूति और समरसता: व्यक्ति को दूसरों के सुख-दुख में सहानुभूति दिखानी चाहिए और उनके साथ समरसता से व्यवहार करनी चाहिए.

अधिक संवेदनशीलता: व्यक्ति को अधिक संवेदनशील बनने का प्रयास करना चाहिए. वे अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं को समझें और उनके साथ संवेदनशीलता दिखायें.

नियमित सामुदायिक सहयोग: समाज में समरसता और सहयोग के माध्यम से भावनात्मक अपहरण से बचा जा सकता है. व्यक्ति को सामुदायिक गतिविधियों में भाग लेना चाहिए और अपने संबंधों को समझने और समर्थन करने के लिए समुदाय से सहयोग लेना चाहिये.

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