World Autism Day 2022: विश्व ऑटिज्म दिवस आज, डॉक्टरी इलाज के साथ अपने बच्चों को दें प्यार की थपकी
World Autism Day 2022: आज विश्व ऑटिज्म दिवस मनाया जा रहा है. ऑटिज्म को एक मनोविकार के रूप में परिभाषित किया जाता है जबकि बहुत सारे ऑटिस्टिक लोगों ने अपनी प्रतिभा से ये साबित किया है कि ये विशिष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं नाकि मनोविकार ग्रसित.
World Autism Day 2022: आज विश्व ऑटिज्म दिवस है . ये दिन है लोगों को ऑटिज्म के प्रति जागरूक करने का. विश्व में 160 में से 1 बच्चा ऑटिज्म ग्रसित है जबकि भारत में हर 10,000 में 62 बच्चे ऑटिज्म से ग्रसित हैं.. ये आधिकारिक आंकड़े हैं जबकि यथार्थ में आंकड़े और भी बढ़ सकते हैं. ऑटिज्म को एक मनोविकार के रूप में परिभाषित किया जाता है जबकि बहुत सारे ऑटिस्टिक लोगों ने अपनी प्रतिभा से ये साबित किया है कि ये विशिष्ठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं नाकि मनोविकार ग्रसित. जरूरत है उन्हें उनके मूल स्वरूप में स्वीकार करने की.
दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रॅल को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल के दिन को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस घोषित किया था. इस दिन उन बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं, जो ऑटिज़्म ग्रस्त होते हैं और उन्हें सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है. नीला रंग ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है. वर्ष 2013 में इस अवसर पर ऑटिज़्मग्रस्त एक व्यक्ति कृष्ण नारायणन द्वारा लिखित एक पुस्तक और ‘अलग ही आशा’ शीर्षक एक गीत जारी की गई.
भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज़्मग्रस्त होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है. इस बीमारी की चपेट में आने के बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज्यादा संभावना है. इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका ज्ञात नहीं है, लेकिन जल्दी निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ किया जा सकता है. दुनियाभर में यह बीमारी पाई जाती है और इसका असर बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज पर पड़ता है.
दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रॅल को मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल के दिन को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस घोषित किया था. इस दिन उन बच्चों और बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाए जाते हैं, जो ऑटिज़्म ग्रस्त होते हैं और उन्हें सार्थक जीवन बिताने में सहायता दी जाती है. नीला रंग ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है. वर्ष 2013 में इस अवसर पर ऑटिज़्मग्रस्त एक व्यक्ति कृष्ण नारायणन द्वारा लिखित एक पुस्तक और ‘अलग ही आशा’ शीर्षक एक गीत जारी की गई.
भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज़्मग्रस्त होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है. इस बीमारी की चपेट में आने के बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज्यादा संभावना है. इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका ज्ञात नहीं है, लेकिन जल्दी निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ किया जा सकता है. दुनियाभर में यह बीमारी पाई जाती है और इसका असर बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज पर पड़ता है.
आइए ऑटिज्म के कुछ लक्षणों पर गौर करें
1) ऑटिस्टिक बच्चे सामने वाले से आंखें मिलाकर बात करना पसंद नहीं करते. बात करते वक्त वह अगल बगल झांकते हैं.
2) ऑटिस्टिक बच्चों को किसी एक जगह पर ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है इस कारण से उनमें सीखने की क्षमता प्रभावित होती है.
3) ऑटिस्टिक बच्चे किसी की नकल नहीं कर पाते जिसके कारण वो वातावरण से बहुत कुछ सीखने से वंचित रह जाते हैं.
4)कुछ ऑटिस्टिक बच्चों में शारीरिक संतुलन का भी अभाव होता है
5) ऑटिस्टिक बच्चों में खाने पीने से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं. कुछ बच्चों को खाना चबाने में भी समस्या आती है.
6) ज्यादातर ऑटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद करते हैं. उन्हें लोगों से मिलने जुलने में कोई दिलचस्पी नहीं होती.
ऑटिज्म के शिकार बच्चे की मां और लेखिका आरती ने बताया कि इन सब वजहों से इन बच्चों को समाज में अपना स्थान बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इसीलिए जितनी जल्दी इनकी थेरेपी शुरू की जाए, परिणाम उतना ही बेहतर होता है. ऑटिस्टिक बच्चों में थेरेपी एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. मुख्यतः स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पेशल एजुकेशन और बिहेवियर थेरेपी द्वारा इनका समग्र विकास का प्रयास किया जाता है. थेरेपी कितने दिनों तक चलेगी, यह बच्चे की सीखने की क्षमता पर निर्भर करता है.
लेखिका आरती ने कहा कि लंबे समय तक थैरेपी करवा पाना माता पिता पर न सिर्फ मानसिक दबाव बल्कि आर्थिक दबाव भी डालता है इसीलिए माता पिता को थेरेपी में सम्मिलित होना, उसे सीखने का प्रयास करना चाहिए ताकि बच्चे में विकास जल्दी हो. जब माता पिता थेरेपी में खुद भी शामिल होते हैं तो उनके और बच्चे के बीच का न सिर्फ संबंध मजबूत होता है बल्कि बच्चे उनकी बातें भी मानते हैं और उन्हें कुछ भी सिखलाना आसान हो जाता है. वो विधियां जो मैंने अपने ऑटिस्टिक बेटे के साथ आजमाई-
1)खेल खेल में – हमारी दिनचर्या में खेल का एक निश्चित समय था जिसमें हम एक कमरे में ढेर सारे गुब्बारे, हल्की गेंदें और साबुन के बुलबुले बना कर रखते थे और पूरा परिवार एक कमरे में खेलता. इस प्रक्रिया से हमारे बच्चे ने हमारे बीच रहना प्रारंभ किया और उसमें वातावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ी.
2) पिक्चर कार्ड- मेरी बेटी के लिए पिक्चर कार्ड वरदान साबित हुआ. पिक्चर कार्ड आप स्वयं भी बना सकती हैं. कैमरे से किसी भी वस्तु या व्यक्ति की तस्वीर लेकर उसका प्रिंट आउट निकाल लें. फिर उसे किसी गत्ते के छोटे छोटे टुकड़े पर चिपका दें. ध्यान रहे एक पिक्चर कार्ड में सिर्फ एक ही चीज की तस्वीर होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि ये दोनो विधियां बच्चों में भाषा के साथ साथ विभिन्न भावनाओं को भी जागृत करती हैं. ऑटिस्टिक बच्चे के व्यक्तित्व के हर आयाम पर काम करना होता है इसीलिए हमेशा चरणबद्ध तरीके से कार्य करना चहिए. एक निश्चित अवधि तक एक ही लक्ष्य लेकर चले . जब वह लक्ष्य प्राप्त हो जाए तो ही दूसरे लक्ष्य पर काम प्रारंभ करें.समाज के लोगों को भी चहिए कि वो ऐसे बच्चे और उनके परिवार के साथ दोहरा रवैया न रखे. अगर किसी की सहायता न कर सके तो कम से कम ऐसे बच्चों के व्यवहार को समझने का प्रयास करें .इस लेख का समापन मैं अपनी लिखी कविता से करना चाहती हूं –
“ जो अगर दे सको किसी को तो आत्मबल दिलाओ
वो किसी पर न हो कभी निर्भर, ये यकीन उसे
हर पल दिलाओ
ये दुनिया जितनी मेरी उतनी तेरी भी है
ये कह कर ही नहीं, करके भी दिखाओ.“
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.