World Breastfeeding Week: स्तनपान से मिलती बच्चे को सेहत की गारंटी
नवजात शिशु के लिए मां का दूध अमृत के समान है और स्वस्थ जीवन का आधार है. मां के दूध में बच्चे के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व (प्रोटीन, फैट्स, आयरन, जिंक, मल्टीविटामिन, मिनरल्स आदि) व एंटीऑक्सीडेंट्स तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं.
World Breastfeeding Week: इस वर्ष स्तनपान सप्ताह की थीम, ‘क्लोजिंग द गैप : ब्रेस्टफीडिंग सपोर्ट फॉर ऑल’ यानी सबके सहयोग से ब्रेस्टफीडिंग को मां के लिए आसान बनाना है. जानें कैसे बच्चों को बीमारियों से बचाता है स्तनपान. ब्रेस्टमिल्क शिशु का सिर्फ शारीरिक व मानसिक विकास ही नहीं करता, बल्कि इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है. यह विभिन्न बीमारियों से बचाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. रिसर्च से साबित हुआ है कि अगर जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को मां दूध पिलाना शुरू कर देती है, तो संक्रमण की वजह से होने वाली बच्चों की मृत्यु दर में 22 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.
पहले छह माह ब्रेस्ट फीडिंग अनिवार्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शिशु को कम-से-कम जीवन के पहले छह महीने तक ब्रेस्ट फीडिंग जरूर कराने की सिफरिश की है. बढ़ते शिशु की बढ़ती जरूरत के हिसाब से छह महीने के बाद अर्द्ध ठोस आहार देना शुरू करना पड़ता है. कम-से-कम दो साल तक ब्रेस्ट फीडिंग कराना जच्चा-बच्चा दोनों को फिट और हेल्दी रखने में सहायक माना जाता है. यूनिसेफ का मानना है कि तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी स्तनपान कराने के लिए महिलाओं को जागरूक करने और समुचित सुविधाएं प्रदान करने की जरूरत है.
क्या है इस सप्ताह को मनाने का उद्देश्य
हर वर्ष अगस्त महीने का पहला हफ्ता ‘वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक’ या ‘विश्व स्तनपान सप्ताह’ के तौर पर मनाया जाता है. इस सप्ताह का उद्देश्य स्तनपान के फायदों और इसकी जरूरत के बारे में जागरूक करना तथा ब्रेस्टफीडिंग को सहज बनाना भी है.
स्तनपान को प्राथमिकता दें हर माता
स्तनपान कराना मां के लिए सुखद अनुभव है, उसे प्राथमिकता देनी चाहिए. स्तनपान कराने के लिए ऐसी जगह होनी चाहिए, जहां मां को या शिशु को कोई परेशान न करे. स्तनपान कराते समय अगर कोई आसपास होता है या बात करता है, तो बच्चा भी स्तनपान करने से कतराता है. असल में स्तनपान कराना मां-बच्चे का मी-टाइम होना चाहिए. एकांत जगह पर मां के स्पर्श को पाकर शिशु न केवल भरपेट स्तनपान कर लेता है, बल्कि उसकी ब्रीदिंग और इम्युनिटी भी बढ़ती है.
फॉर्मूला फीड को क्यों अवायड करें
कई माएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में ब्रेस्ट मिल्क की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती हैं. इस स्थिति को ‘लैक्टेशन फैल्योर’ कहा जाता है. ऐसी स्थिति में शिशु को जन्म से ही फॉर्मूला मिल्क या गाय के दूध पर निर्भर रहना पड़ता है. लेकिन बहुत सी महिलाएं स्तनपान की जटिलता से बचने के लिए ऐसा करती हैं. जहां तक हो सके नवजात को फॉर्मूला मिल्क नहीं देना चाहिए. फॉर्मूला मिल्क लेने से बच्चे का पेट भर जाता है और वह स्तनपान नहीं कर पाता. इससे मां की ब्रेस्ट में दूध इकट्ठा होता जाता है और कई समस्याएं होती हैं.
मां का आराम करना भी बहुत जरूरी
चूंकि ब्रेस्ट फीडिंग कराना मां के लिए पूरी एक्सरसाइज है, इसलिए मां को कंगारू फीडिंग करवानी बेस्ट है, यानी शिशु के साथ मां को भी सो जाना चाहिए और उसके उठने पर उसे स्तनपान करवाएं. अपने रूटीन में थोड़ा बदलाव जरूर लाना चाहिए. आराम के साथ-साथ प्रतिदिन प्रतिदिन कम-से-कम 30 मिनट तक व्यायाम करना चाहिए. उदाहरण के लिए तेज कदमों से चलना. इससे आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचता है. विटामिन डी का स्तर पर्याप्त बनाये रखने के लिए कुछ समय घर के बाहर बिताएं.
स्तनपान कराने के लिए सहयोग भी जरूरी
मां बनना बेशक जिंदगी का सबसे खूबसूरत एहसास होता है, लेकिन नयी मां को कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, स्तनपान कराना भी उनमें से एक है. इस दौरान नयी मां को सपोर्ट की खासा जरूरत होती है.
अस्पताल में रखें ध्यान
नर्स या परिवार के सदस्य ब्रेस्ट फीडिंग कराने से पहले गर्म पानी से भीगे टॉवल या रुमाल महिला को जरूर दें. इससे शिशु को किसी तरह के इंफेक्शन का खतरा नहीं रहता. वहीं, सिंकाई होने पर ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने से ब्रेस्ट मिल्क का फ्लो अच्छा होता है. जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग जरूर करानी चाहिए. बच्चे का स्पर्श ब्रेस्ट फीडिंग प्रोसेस में जादुई काम करता है, इसलिए नवजात शिशु को जन्म के बाद पालने या साइड बेड पर लेटाने के बजाये मां की बगल में ब्रेस्ट के पास लिटाया जाये. बच्चे के स्पर्श से मां के हार्मोन्स सक्रिय हो जायेंगे और ब्रेस्ट मिल्क बनना शुरू हो जाता है. सिजेरियन डिलीवरी के बाद ड्रिप या कैथेटर लगे होने, टांकों में दर्द की वजह से मां ठीक से बैठ नहीं पाती. बच्चे को लेटे-लेटे या ब्रेस्ट पंप से दूध निकाल कर दूध पिलाना पड़ता है, जिसके लिए नर्स या परिवार के सदस्य मदद कर सकते हैं.
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परिवार का सहयोग
डिलीवरी के बाद कई परिवारों में नवजात शिशु को मां के दूध से पहले शहद, जन्मघुट्टी या पानी में घुली मिश्री चटाने के चलन होता है, जो गलत है, क्योंकि इससे शिशु की भूख कम हो जाती है और वह मां का दूध नहीं ले पाता. इसे अवायड करना चाहिए. इसी तरह कम मात्रा में बनने वाले गाढ़े पीले कोलस्ट्रम दूध को अपर्याप्त मानकर नवजात शिशु को बोतल से या कटोरी-चम्मच से फॉर्मुलेटेड डिब्बाबंद मिल्क या गाय का दूध भी नहीं देना चाहिए. बच्चे के लिए कोलस्ट्रम लाइफ सेविंग वैक्सीन के समकक्ष माना जाता है, किसी भी हालत में बच्चे को महरूम नहीं करना चाहिए.
वर्किंग विमेन को सहयोग
मैटरनिटी लीव के बाद फिर से ऑफिस जाना नयी मां के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होता है. वर्किंग मदर्स के लिए टाइम मैनेज करना, वर्कप्लेस पर समय देना और ब्रेस्ट फीड करवाने को एक साथ मैनेज करना मुश्किल हो सकता है. उसे परिवार ही नहीं, ऑफिस का सपोर्ट मिलना भी जरूरी है. काम पर लौटने से पहले बेबी के फीडिंग पैटर्न के हिसाब से शेड्यूल बनाना चाहिए, जिससे मां की गैरमौजूदगी में बच्चा भूखा न रहे.
स्तनपान से बच्चों को कई फायदे
करे शिशु का दिमाग तेज : मां के दूध में प्राकृतिक तौर पर डीएचएचए नाम का तत्व पाया जाता है, जो दिमाग को चुस्त और तेज बनाता है. इससे शिशु को भावनात्मक सुरक्षा का एहसास होता है, जिससे मस्तिष्क के उचित विकास में सहायता मिलती है. स्तनपान न करने की तुलना में स्तनपान करने वाले बच्चे समूह और स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं.
रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास : मां का दूध पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसमें मौजूद तत्व शरीर के भीतर मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को नष्ट करके शरीर के भीतर ऐसे सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाते हैं, जो बच्चे की सर्दी, जुकाम और अन्य संक्रमित बीमारियों से रक्षा करते हैं.
दांत और जबड़े को दे मजबूती : शिशु का मुंह स्तन से दूध पीने के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल होता है. इस प्रक्रिया से बच्चे का मुंह ठीक तरह से विकसित होता है. इससे दांत निकलने में सहायता मिलती है. स्तनपान से बच्चों के जबड़े भी मजबूत होते हैं.
बचाये मोटापे की समस्या से : शिशु जब मां का दूध पीता है, तो पेट भरते ही उसे असीम तृप्ति का एहसास होता है, जिससे वह आवश्यकता से ज्यादा दूध नहीं पी पाता और उसके शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं चढ़ती. बोतल से दूध पीने वाले बच्चे जरूरत से ज्यादा दूध पीते हैं और मोटापे का शिकार हो जाते हैं.
दूर करे एलर्जी : अन्य प्रकार के दूध या फॉर्मूला मिल्क से शिशु को तरह-तरह की एलर्जी होने का खतरा बना रहता है, लेकिन मां के दूध के साथ ऐसा खतरा नहीं होता. मां के दूध में एक नैसर्गिक गुण है, जो बच्चे को एलर्जी से बचाता है.
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