World Hepatitis Day: आपकी सजगता से हारेगा हेपेटाइटिस

समय रहते समुचित जांच और इलाज न होने से हेपेटाइटिस के दुष्प्रभावों से लिवर की कार्यप्रणाली धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है और एक अर्से बाद लिवर अपना काम करना बंद कर देता है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 26, 2023 8:49 AM
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विवेक शुक्ला:

अमेरिकन कॉलेज ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी की परिभाषा के अनुसार, लिवर में संक्रमण (इन्फ्लेमेशन) और इसके कारण होने वाली सूजन को हेपेटाइटिस कहते हैं. हेपेटाइटिस वायरस के पांच प्रकार होते हैं- हेपिटाइटिस ए, बी, सी, डी और हेपेटाइटिस इ. समय रहते समुचित जांच और इलाज न होने से हेपेटाइटिस के दुष्प्रभावों से लिवर की कार्यप्रणाली धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है और एक अर्से बाद लिवर अपना काम करना बंद कर देता है. इस गंभीर मेडिकल कंडीशन को लिवर फेल्योर कहते हैं.

अनदेखी से लिवर को हो सकता है ज्यादा नुकसान

हेपेटाइटिस बी और सी का समय रहते पता न चलने और फिर समुचित इलाज न होने पर कालांतर में ये दोनों मरीज के लिए जानलेवा बीमारियों जैसे लिवर सिरोसिस और या फिर लिवर कैंसर का भी कारण बन सकते हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, लिवर की बीमारियों के संदर्भ में जो संक्रमण छह महीने से कम का है, उसे तीव्र (एक्यूट) और छह महीने से ज्यादा अवधि तक चलने वाले संक्रमण को क्रॉनिक इंफेक्शन कहा जाता है.

हेपेटाइटिस ए और इ :

दूषित पेयजल और अस्वच्छ खाद्य पदार्थों को ग्रहण करना इन दोनों हेपेटाइटिस से ग्रस्त होने के प्रमुख कारण हैं. हेपेटाइटिस ए और इ, हेपेटाइटिस बी और सी की तुलना में लिवर को कम क्षति पहुंचाते हैं. खान-पान में संयम और समुचित इलाज कराने पर इन दोनों से छुटकारा मिल जाता है.

हेपेटाइटिस बी और सी :

लिवर को गंभीर रूप से क्षति हेपेटाइटिस बी और सी से पहुंचती है. गलत तरीके से रक्त चढ़वाने, संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं, जैसे- टूथब्रश और रेजर आदि के इस्तेमाल से वायरस अन्य स्वस्थ लोगों को भी संक्रमित कर सकता है. वहीं जो लोग नशे का इंजेक्शन लेते हैं या फिर असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करते हैं, उनमें हेपेटाइटिस बी और सी होने का खतरा कहीं ज्यादा होता है.

हेपेटाइटिस डी :

आमतौर पर अगर कोई व्यक्ति हेपेटाइटिस बी और सी से ग्रस्त है, तो उसे हेपेटाइटिस डी से संक्रमित होने का खतरा भी कहीं ज्यादा होता है. हेपेटाइटिस डी के मामले में लिवर में सूजन लंबे समय तक बनी रहती है.

इन लक्षणों पर दें ध्यान

आमतौर पर पांचों प्रकार के हेपेटाइटिस के लक्षण लगभग एक समान होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं –

पेट दर्द होना

अक्सर हाजमा खराब रहना और दस्त होना

पीलिया होना. त्वचा, नाखूनों और आंखों में पीलापन

जी मिचलाना और उल्टी होना

भूख का कम होते जाना और वजन का निरंतर गिरना

बखार आना और उसका बने रहना

जी मिचलाना और उल्टी होना

शारीरिक व मानसिक श्रम किये बिना थकान महसूस करना

यूरिन का रंग गहरा पीला होना

जोड़ों में दर्द

कब लें डॉक्टर से परामर्श : उपरोक्त लक्षणों में से कुछ के भी महसूस होने पर डॉक्टर से अवश्य परामर्श लें.

इन जांचों से चलेगा हेपेटाइटिस का पता

हेपेटाइटिस ए और इ का पता करने के लिए ‘आइजीएम’ एंटीबॉडी टेस्ट कराया जाता है. हेपेटाइटिस बी वायरस का पता करने के लिए डीएनए लेवेल टेस्ट किया जाता है. वहीं, हेपेटाइटिस सी के लिए आरएनए टेस्ट और जीनोटाइपिंग टेस्ट कराये जाते हैं. इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट, सीबीसी, किडनी फंक्शन टेस्ट भी कराते हैं.

क्या हैं इसके लिए उपचार

हेपेटाइटिस ए और इ : हेपेटाइटिस ए के अधिकतर मामलों में शरीर स्वत: स्वास्थ्य लाभ (सेल्फ रिकवरी) करता है, लेकिन मरीज को डॉक्टर के परामर्श पर अमल करना चाहिए. अपवादस्वरूप कुछ मामलों में मरीज को लगातार उल्टियां और दस्त होने या फिर असामान्य शारीरिक स्थितियों के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है. हेपेटाइटिस इ का इलाज भी हेपेटाइटिस ए की तरह है, लेकिन हेपेटाइटिस इ में गर्भवती महिलाओं को जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसे में उनकी चिकित्सकीय मॉनिटरिंग करनी पड़ सकती है.

हेपेटाइटिस बी का इलाज : इस वायरस का संक्रमण क्रॉनिक इंफेक्शन में भी तब्दील हो सकता है और कुछ मामलों में यह समस्या जीवनपर्यंत जारी रह सकती है. अगर हेपेटाइटिस बी का संक्रमण 6 महीने से ज्यादा चलता है, तो इसे क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी कहा जाता है. इस संक्रमण के इलाज में इंजेक्शन और टैबलेट्स दी जाती हैं. इसके बावजूद हेपेटाइटिस बी में स्वस्थ होने की दर बहुत कम होती है. मरीज की प्रत्येक 3 महीने पर मॉनिटरिंग की जाती है और जीवनपर्यंत उसकी दवाएं चल सकती हैं. हेपेटाइटिस बी लिवर कैंसर या फिर लिवर सिरोसिस का कारण बन सकता है, लेकिन डॉक्टर के परामर्श से समुचित दवाएं लेते रहने से यह स्थिति टल सकती है.

हेपेटाइटिस सी का इलाज संभव : नयी दवाओं के उपलब्ध हो जाने से हेपिटाइटिस सी का इलाज अब संभव है. इन दवाओं की सफलता दर लगभग 98 प्रतिशत है और इनके साइड इफेक्ट भी नगण्य हैं. लापरवाही बरतने और समुचित इलाज न कराने पर हेपेटाइटिस सी कालांतर में लिवर कैंसर या लिवर सिरोसिस का कारण बन सकता है.

हेपेटाइटिस डी का इलाज : देश में हेपेटाइटिस डी के मामले बहुत कम पाये जाते हैं. हेपेटाइटिस डी के इलाज के लिए दवाएं उपलब्ध हैं.

मॉनसून में बढ़ जाते हैं मामले

बरसात में हेपेटाइटिस ए और इ के मामले अन्य ऋतुओं की तुलना में बढ़ जाते हैं. दरअसल, इस मौसम में वातावरण में नमी के चलते हेपेटाइटिस ए और इ के वायरस तेजी से पनपते हैं. इसके अलावा बरसात में गंदगी भी बढ़ जाती है. देश में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति का सिस्टम हर स्थान पर दुरुस्त नहीं है, जिसमें लीकेज के चलते बारिश का गंदा पानी पेयजल को भी दूषित कर देता है. यह स्थिति हेपेटाइटिस ए और इ के खतरों को बढ़ा देती है.

दरअसल, दूषित पेयजल और अस्वच्छ खाद्य पदार्थों को ग्रहण करने के कारण हेपेटाइटिस ए और इ के वायरस शरीर के अंदर पहुंचते हैं. ऐसे में शुद्ध पेयजल और खाद्य पदार्थों को ही ग्रहण करें.

जहां तक संभव हो घर का ताजा भोजन करें और बाहर के खाने से परहेज करें.

जिन्होंने भी हेपेटाइटिस ए का टीका नहीं लगवाया है, वे बरसात का मौसम शुरू होने के 6 महीने पहले हेपेटाइटिस ए का टीका लगवाएं.

खतरा लिवर सिरोसिस का

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा किये गये एक अध्ययन के अनुसार, हेपेटाइटिस बी और सी का समय रहते जांच और उपचार नहीं कराया गया तो पीड़ित व्यक्ति लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर समस्या का शिकार हो सकता है. सिरोसिस की स्थिति में लिवर सिकुड़ जाता है और इसकी कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं. ऐसी स्थिति में लिवर काम करना बंद कर देता है, जिसे मेडिकल भाषा में लिवर फेल्योर कहा जाता है. इस स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट एकमात्र और अंतिम इलाज होता है.

खान-पान पर दें ध्यान

शराब से हमेशा के लिए दूरी बना लें, क्योंकि शराब लिवर की सबसे बड़ी शत्रु है.

अत्यधिक चिकनाई या वसायुक्त आहार लिवर की सेहत के लिए नुकसानदेह हैं, इनसे बचें.

जंक फूड्स व प्रोसेस्ड फूड्स हानिप्रद है.

आहार में साबुत अनाज को शामिल करें. दलिया, खिचड़ी व ओट्स लाभप्रद हैं.

मौसमी फलों व सब्जियों को वरीयता दें.

कम वसा वाले डेयरी उत्पाद हितकर हैं.

नमक का कम सेवन लाभप्रद है. खाद्य पदार्थों पर अलग से नमक न छिड़कें.

लिवर के लिए लाभप्रद आहार : अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रीशन के अनुसार, लिवर को सशक्त बनाये रखने में चुकंदर, हरी पत्तेदार सब्जियां, मूली और ब्रोकली आदि विशेष रूप से लाभप्रद हैं. इसके अलावा खट्टे फल जैसे संतरा, मौसम्मी, नीबू और नारंगी आदि भी हितकर हैं. वहीं दि जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अखरोट में ओमेगा 1 और ओमेगा 3 फैटी एसिड पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं, जो एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं. इस कारण अखरोट भी लिवर के लिए लाभप्रद है. इसी अध्ययन के अनुसार लहसुन, हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां व ब्रोकली भी लिवर के लिए लाभदायक हैं.

ऐसे करें अपना बचाव

हेपेटाइटिस का टीकाकरण : हेपेटाइटिस ए और बी का टीका (वैक्सीन) उपलब्ध है, जिसके लगवाने से हेपेटाइटिस का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. इस वैक्सीन की डोजें बच्चों से लेकर वयस्क ले सकते हैं.

डॉक्टर के परामर्श से टेस्ट करवाएं : हेपेटाइटिस का टेस्ट इस बीमारी की रोकथाम और प्रारंभिक स्तर पर इसके निदान (डायग्नोसिस) की सटीक विधि है. जब भी आप हेपेटाइटिस के कुछ लक्षण महसूस करें, तो डॉक्टर से परामर्श लेकर परीक्षण करवाएं. ऐसा करने से किसी भी गंभीर बीमारी के जानलेवा होने का खतरा टल जाता है. रक्त परीक्षण से हेपेटाइटिस का पता चल जाता है कि आप किसी वायरस की चपेट में हैं या नहीं.

स्टेराइल सिरिंज का इस्तेमाल : किसी भी स्थिति में इंजेक्शन की नीडल का इस्तेमाल एक बार से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसके लिए स्टेराइल सिरिंज का इस्तेमाल करें और फिर इसे इस्तेमाल के बाद फेंक दें. यदि दो लोगों के बीच सिरिंज का पुन: उपयोग किया जाता है, तो हेपेटाइटिस और एचआइवी जैसे रोगों के संचरण का खतरा बढ़ जाता है.

असुरक्षित शारीरिक संबंध न बनाएं : कभी-कभी यौन संपर्क से भी लिवर खराब करने वाली बीमारी फैल सकती है. ऐसे में शारीरिक संबंध के समय सुरक्षात्मक उपाय अपनाएं.

दूसरों का ब्लेड इस्तेमाल न करें : नीडल या सीरिंज की तरह किसी दूसरे व्यक्ति का ब्लेड या रेजर भी रक्त को संक्रमित कर हेपेटाइटिस और एचआइवी आदि के खतरे को बढ़ा सकता है.

टैटू गुदवाने के समय सजगता बरतें : टैटू गुदवाने वाले उपकरण की सूई विसंक्रमित या जीवाणु मुक्त होनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके दोबारा इस्तेमाल से पहले सही तरह से विसंक्रमित नहीं करने से हेपेटाइटिस आदि के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

इन बातों पर भी दें ध्यान :

फिल्टर, प्यूरीफायर या आरओ का पानी ही पीएं. अगर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो पानी को उबालकर और फिर इसे ठंडा कर पीएं, क्योंकि हेपेटाइटिस खासकर ए और इ के वायरस अशुद्ध पेयजल और दूषित खाद्य पदार्थों के जरिये शरीर में प्रवेश करते हैं.

किसी भी वस्तु को खाने से पहले हाथों को हैंड सेनिटाइजर, हैंड वॉश या एंटीबैक्टीरियल साबुन से साफ करें. फलों और सब्जियों के जरिये भी हेपेटाइटिस इ के वायरस शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, इसलिए आप जो भी फल और सब्जियां बाजार से लाएं, उन्हें अच्छी तरह से धोकर और पकाकर खाएं. वहीं, हेपेटाइटिस बी मां से बच्चे में फैल सकता है और इसे टीकाकरण से रोका जा सकता है. साथ ही रक्त चढ़ाने की प्रक्रिया स्वच्छ और जीवाणुमुक्त होनी चाहिए.

ऐसी धारणा है गलत

हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण आपस में साथ-साथ खाना खाने, बैठने, खेलने-कूदने और लेटने से नहीं होता. ऐसे में यह गलतफहमी दूर होनी चाहिए कि आपसी संपर्क के जरिये हेपिटाइटिस बी और सी का वायरस फैलता है.

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