विवेक शुक्ला
यह ऐसी चिकित्सा विधि है, जिसमें किसी दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता और न ही आमतौर पर इस थेरेपी के साइड और आफ्टर इफेक्ट्स होते हैं. वैसे तो भारत में जोड़ों व मांसपेशियों से संबंधित दर्द को दूर करने के लिए अनेक शताब्दियों से मालिश और व्यायाम का चलन रहा है, लेकिन आधुनिक फिजियोथेरेपी इनके अलावा लकवाग्रस्त हो चुके मरीजों की समस्याओं को दूर करने, अन्य न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स में पूरक चिकित्सा के तौर पर मरीजों को राहत देने में कारगर है.
बढ़ रहा है फिजियोथेरेपी का दायरा
स्पष्ट है, फिजिकल थेरेपी का दायरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. बतौर उदाहरण, विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण जोड़ों या मांसपेशियों में लगने वाली चोटों या फिर उनसे होने वाले शारीरिक दर्द से राहत पाने के लिए फिजियोथेरेपी का सहारा लिया जा रहा है. जोड़ों से संबंधित कुछ बीमारियां जन्मजात होती हैं, जिनसे राहत पाने में फिजियोथेरेपी की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसके अलावा जोड़ प्रत्यारोपण के बाद भी फिजियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है. खेलों के दौरान लगे चोट और उनसे राहत पाने के लिए फिजियोथेरेपी की मदद ली जा रही है.
जोड़ों में सूजन है अर्थराइटिस
जोड़ों में काफी दिनों से जारी सूजन और दर्द को आमतौर पर अर्थराइटिस कहा जाता है. उम्र बढ़ने के साथ जब जोड़ों के कार्टिलेज घिसने लगते हैं, तो इस समस्या को ऑस्टियो अर्थराइटिस कहते हैं. मरीज को इस समस्या से राहत दिलाने में फिजिकल थेरेपी मदद करती है. इसके अलावा इन्फ्लेमेटरी अर्थराइटिस में प्रमुख तौर पर रुमेटॉइड अर्थराइटिस और सोराइटिस अर्थराइटिस आदि को शुमार किया जाता है.
फिजिकल थेरेपी की भूमिका
अनेक मामलों में फिजिकल थेरेपी पूरक चिकित्सा के तौर पर कार्य करती है, तो वहीं कुछ ऐसे भी मामले हैं, जहां यह मरीज को एकल चिकित्सा के तौर पर राहत प्रदान करती है. सबसे पहले फिजिकल थेरेपिस्ट मरीज के दर्द का कारण क्या है, इसे जानने का प्रयास करते हैं. कारण का पता चलने पर फिजिकल थेरेपी से इलाज की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाती है. सूजन व दर्द के नियंत्रित हो जाने के बाद फिजिकल थेरेपी की विभिन्न विधियां जैसे इलेक्ट्रोथेरेपी आदि का इस्तेमाल किया जाता है. इलेक्ट्रोथेरेपी से सूजन और दर्द में राहत मिलती है. कई तरह के इलेक्ट्रिक उपकरण हैं, जो सूजन व दर्द को कम करने में सहायक हैं, जैसे-टीइएनएस. वहीं, लो लेवेल लेजर तकनीक इसकी आधुनिक उपचार विधि है.
पूरक हैं फिजिकल थेरेपी और पेन मैनेजमेंट
जोड़ों में दर्द या शरीर के किसी अन्य भाग में मांसपेशियों में सूजन व दर्द को नियंत्रित करने का कार्य फिजिकल थेरेपी करती है, लेकिन इसके साथ ही पेन मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट अपनी ओर से दवाएं और कुछ अन्य आधुनिक चिकित्सकीय विधियों का भी सहारा लेते हैं. उदाहरणस्वरूप अनेक मामलों में पेन मैनेजमेंट स्पेशलिस्ट फिजिकल थेरेपी के अलावा जोड़ों की समस्या से राहत पाने के लिए कार्टिलेज के पुनर्निर्माण (रीजेनरेशन) के लिए मरीज के रक्त से प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी) लेकर उसी के शरीर में इंजेक्ट करते हैं. स्पष्ट है, फिजिकल थेरेपी और पेन मैनेजमेंट एक दूसरे के पूरक हैं. वैसे भी शरीर के किसी भी अंग में तेज दर्द, बुखार होने और बहुत ज्यादा सूजन होने पर फिजियोथेरेपी व इससे संबंधित गैजेट्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता, जब तक कि तेज दर्द की स्थिति नियंत्रण में नहीं आ जाती.
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फिजियोथेरेपी की महत्वपूर्ण विधियां
अर्थराइटिस का इलाज फिजियोथेरेपी से इन विधियों के जरिये किया जाता है. विद्युतीय उपकरणों से मरीज को राहत देना, जिसे इलेक्ट्रोथेरेपी कहते हैं. ट्रांसक्यूटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेशन (टीइएनएस- टेंस) अर्थराइटिस खासकर इन्फ्लेमेटरी अर्थराइटिस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने जाने वाली तकनीक है. आमतौर पर सप्ताह में एक बार लगभग 1 महीने तक टीइएनएस- टेंस लेने के बाद रोगियों को दर्द से राहत मिलती है.
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व्यायाम या एक्सरसाइज थेरेपी.
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मांसपेशियों की स्ट्रेचिंग.
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स्ट्रैंथनिंग एक्सरसाइज यानी मांसपेशियों को सशक्त बनाने वाले व्यायाम.
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स्विस बॉल एक्सरसाइज.
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बैलेंस एक्सरसाइज.
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अल्ट्रासोनिक थेरेपी.
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लो लेवल लेजर तकनीक. यह फिजियोथैरेपी की नवीनतम तकनीक है.
नोट : उपरोक्त सभी विधियों-तकनीकों और व्यायामों को विशेषज्ञ से परामर्श लेकर ही अंजाम देना चाहिए.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.