World Thalassaemia Day 2022: थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो पर जन्म से ही बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है. यह दो प्रकार का होता है- माइनर और मेजर. यह माता-पिता के थैलेसीमिया कैरियर होने की वजह से गर्भस्थ शिशु तक पहुंचता है.
आमतौर पर उन्हें न तो अपने थैलेसीमिया स्टेटस के बारे में पता होता है और न ही इसका पता लगाने के लिए कोई मेडिकल टेस्ट करवाते हैं. उन्हें यह भी जानकारी नहीं होती कि उनकी वजह से आने वाला बच्चा थैलेसीमिया पीड़ित हो सकता है. ऐसे में अगर शादी से पहले या गर्भावस्था के दौरान चौथे महीने में से पूर्व चेकअप करा लिया जाये, तो थैलेसीमिया जैसे वंशानुगत रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है.
बच्चे को इस दुनिया में लाने वाली मां ही होती है. मां ही उसे जन्म देती है और उसका पालन-पोषण करती है. बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हमेशा सभी कामना करते हैं कि वह स्वस्थ रहे और जीवन में आगे बढ़े, लेकिन बच्चे को अगर कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या या जन्मजात विकार हो जाता है, तो इसका दोष मां को ही दिया जाता है. जबकि यह वास्तविकता नहीं है. कई मामलों में माता-पिता दोनों की लापरवाही या अनजाने में की गयी गलती का परिणाम बच्चे को जिंदगी भर झेलना पड़ता है. थैलेसीमिया ऐसा ही आनुवंशिक रक्त विकार है, इसमें बच्चे के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सही तरीके से नहीं हो पाता है और इन कोशिकाओं की आयु भी बहुत कम हो जाती है.
गौरतलब है कि थैलेसीमिया कैरियर बिल्कुल नॉर्मल लोगों की तरह ही होते हैं. उन्हें देखकर पता ही नहीं चलता कि उन्हें रक्त विकार भी है. शादी के बाद लड़का-लड़की अपने बच्चों में इस डिजीज का संचार कर सकते हैं. अगर पति-पत्नी दोनों थैलेसीमिया कैरियर होंगे तो 25 प्रतिशत बच्चों के थैलेसीमिया रोगी या थैलेसीमिया मेजर होने की संभावना है. 50 प्रतिशत बच्चों के थैलेसीमिया माइनर होने या थैलेसीमिया कैरियर होने और मां-बाप की तरह स्वस्थ होने की संभावना है. 25 प्रतिशत बच्चों में थैलेसीमिया का प्रभाव बिल्कुल न हो. थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चों को हर 21 दिन बाद कम-से-कम एक यूनिट खून की जरूरत होती है. क्योंकि, शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र लगभग 120 दिन होती है, लेकिन थैलेसीमिया के रोगी में इन कोशिकाओं का जीवन करीब 20 दिन रह जाता है.
मेजर थैलेसीमिया पीड़ित महिला भी अगर मां बनना चाहती है, तो उन्हें सबसे ज्यादा दिक्कत कंसीव करने में आती है. क्योंकि उनके शरीर में आयरन ओवरलोड प्यूबर्टी और दिमाग में प्यूटीटरी ग्लैंड को प्रभावित करता है. इस वजह से बच्चे के सेक्सुअल विकास पर भी असर पड़ता है. ऐसे में मेजर थैलेसीमिया पीड़ित महिला को कई बार अंडे बनाने के लिए मेडिसिन भी दी जाती है, जिससे वे प्रेग्नेंट हो पाती हैं. प्रेग्नेंसी से पहले उनका आयरन ओवरलोड स्टेटस देखना बहुत जरूरी है, क्योंकि उन्हें कार्डिएक, डायबिटीज या थायरॉयड की समस्या हो सकती है. इसके अलावा आइवीएफ तकनीक का सहारा ले सकती हैं. टेस्ट ट्यूब की मदद से नार्मल भ्रूण को मां में ट्रांसफर किया जा सकता है. हालांकि, यह तकनीक महंगी है.
थैलेसीमिया में व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण अपनी सामान्य आयु 120 दिन की जगह 15-20 दिन में ही नष्ट हो जाते हैं, जिससे लाल रक्त कणों की संख्या कम हो जाती है. इस तरह शरीर में रक्त की कमी हो जाती है, जिसका परिणाम एनीमिया के रूप में सामने आता है. मानव शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन्स के जोड़े होते हें. शिशु को हर प्रकार के जीन का एक भाग मां से और एक भाग पिता से मिलता है. अगर बच्चे को हीमोग्लोबिन के दोनों जीन्स ठीक मिलते हैं, तो बच्चा पूरी तरह स्वस्थ होता है. यदि उसे जीन्स के जोड़े का एक हिस्सा ठीक और एक हिस्सा खराब मिलता है, तो वह थैलेसीमिया कैरियर/माइनर, लेकिन स्वस्थ होता है. वहीं, अगर शिशु को दोनों जीन्स खराब मिलें, तो बच्चा थैलेसीमिया मेजर रोग से ग्रस्त होता है. लगभग 6 माह की उम्र में थैलेसीमिया मेजर बच्चा पीला पड़ना शुरू हो जाता है, उसकी तिल्ली बढ़ना शुरू हो जाती है. रोगी के शरीर में हीमोग्लोबिन पूरा नहीं बन पाता, शरीर में रक्त की कमी हो जाती है और जीवन भर नियमित रूप से हर 3-4 सप्ताह बाद ब्लड ट्रांसफ्यूजन या खून चढ़वाना पड़ता है.
बच्चे को 3-4 सप्ताह में ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाता है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाने के लिए जरूरी है कि एक लिमिट के बाद बच्चे के शरीर से आयरन निकालने की दवाई दी जाएं. हर ब्लड ट्रांसफ्यूजन यूनिट के साथ लगभग 250 मिग्रा आयरन मरीज के शरीर के अंदर जाता है. क्योंकि, मरीज का अपना खून ही जल्दी-जल्दी टूटता है, तो उसकी वजह से आयरन की कमी नहीं होती है. 250 मिग्रा अतिरिक्त आयरन शरीर में जमा हो जाता है और कई अंगों को प्रभावित करके उनके फंक्शन को सुचारू रूप से चलने में बाधा डालता है जैसे- थायरॉयड में होने पर बच्चे को थायरायड की समस्या बढ़ जाती है, पेनक्रियाज में जमा होने पर बच्चे को डायबिटीज व लिवर या हार्ट में जमा होने पर लिवर या हार्ट फेल होने और मौत का खतरा रहता है.
आमतौर पर चिलेशन थेरेपी के जरिये बच्चों के शरीर से अतिरिक्त आयरन निकालने की दवाइयां दी जाती हैं, लेकिन थैलेसीमिया को जड़ से खत्म करने में बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही उपयुक्त है. डेढ़ से सात साल की उम्र से पहले ट्रांसप्लांट होने पर रिजल्ट्स अच्छे मिलते हैं. हालांकि, 7 वर्ष से ज्यादा उम्र होने पर या वयस्क होने पर भी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है, लेकिन बड़ी उम्र में आयरन लेवल बढ़ने, लिवर साइज बढ़ा होने से समस्याएं बढ़ जाती हैं, जिससे ट्रांसप्लांट कई मामलों मे असफल भी हो सकता है.
ट्रांसप्लांट के लिए सबसे पहले थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे का बोन मैरो उसके भाई-बहन से मैच कराया जाता है. उनका एचएलए ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिसमें 10 गुण मैच करायी जाती है. मैच होने पर ही ट्रांसप्लांट किया जाता है. मैच न होने पर बच्चे के माता-पिता से मैच करते हैं, जिसमें 6 गुण मैच होना जरूरी है. तीसरी स्थिति में बच्चे का एक्सेंडिड एचएलए टेस्ट किया जाता है, जिसका मैच रजिस्टर्ड बोन मैरो डोनर से 10 गुण मैच होने पर अनरिलेटिड डोनर ट्रांसप्लांट भी किया जा सकता है. ट्रांसप्लांट के बाद बच्चे को पूरी तरह ठीक होने में तकरीबन एक साल लग जाता है. दवाइयां बंद हो जाती हैं और वे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं.
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे को भविष्य में बेहतर जिंदगी जीने के लिए उसे रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन और रेगुलर आयरन चिलेशन बहुत जरूरी है. नियमित रूप से उसकी जांच करानी भी जरूरी है और किसी भी तरह की समस्या आने पर उस समस्या का भी ठीक उपचार किया जाना चाहिए.
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रक्त में हीमोग्लोबिन का लेवल 10 ग्राम से ऊपर होना चाहिए. जैसे ही ब्लड कम होता है, फौरन ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाना चाहिए.
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आयरन चिलेशन प्रक्रिया की जाती है, जिसमें 5 सिरम फैटल से जांच की जाती है, उसका लेवल 1000 से कम होना चाहिए.
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इसके अलावा बच्चे की महीने में एक बार खून की जांच (सीबीसी) कराएं.
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हर तीन महीने में खून में आयरन के स्तर की जांच होनी चाहिए.
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साल भर में थैलेसीमिया ग्रस्त के हृदय और लिवर में आयरन के स्तर की जांच कराएं.
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दृष्टि ओर श्रवण शक्ति की जांच साल में एक बार जरूरी.
अगर माता-पिता दोनों को ही माइल्ड थैलेसीमिया (कम घातक) है, तो बच्चे को थैलेसीमिया होने की आशंका होती है. ऐसे में बच्चा प्लान करने से पहले या शादी से पहले ही अपने जरूरी मेडिकल टेस्ट करा लेने चाहिए.
अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग है और माइल्ड है, तो आमतौर पर बच्चों में यह रोग ट्रांसफर नहीं होता है. यदि बच्चे में यह रोग ट्रांसफर हो भी जाता है, तो बच्चा अपना जीवन लगभग सामान्य तरीके से जी पाता है.
थैलेसीमिया को केवल किसी दवा, इंजेक्शन या खुराक से ठीक नहीं किया जा सकता. शादी से पहले लड़का-लड़की की जन्मकुंडली या गुण-दोष मिलाने की जगह थैलेसीमिया स्टेटस का पता लगाना बेहद जरूरी है.
थैलेसीमिया की जांच सभी महिलाओं के लिए जरूरी है, जो मां बनना चाहती हैं. शादी से पहले एचबीए-2 या एचबीएचबीएलसी टेस्ट करवा लेना चाहिए और अपने थैलेसीमिया स्टेटस के बारे में पता होना चाहिए.
अगर दो थैलेसीमिया कैरियर या माइनर मरीज शादी कर भी लें, तो शादी के बाद दोनों को थैलेसीमिया स्टेटस मालूम कर लेना चाहिए.
ऐसा न करा पाने पर महिला को प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले या फिर जैसे ही उसे पीरियड आना बंद हो यानी प्रेग्नेंट होने का पता चलता है, अपनी जांचें खासकर थैलेसीमिया टेस्ट जरूर करवाना चाहिए. इससे आने वाले बच्चे के भविष्य के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है. ऐसा कराना मां की अहम जिम्मेदारी है.
स्त्री रोग विशेषज्ञ का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है. जब भी कोई गर्भवती महिला जांच के लिए जाये, तो उसकी थैलेसीमिया स्टेटस को जानने के लिए स्क्रीनिंग जरूर की जानी चाहिए. गर्भावस्था में महिलाओं का कम्प्लीट ब्लड काउंट कराना चाहिए. इससे 90 प्रतिशत से ज्यादा थैलेसीमिया कैरियर महिलाओं का पता लगाया जा सकता है.
गर्भावस्था में जैसे ही पता चलता है कि महिला थैलेसीमिया माइनर है, तो उनके पार्टनर की टेस्टिंग करवानी जरूरी है. अगर पति भी थैलेसीमिया माइनर हो, तो उन्हें जल्द-से-जल्द आगे सीवीएस टेस्ट करवाना चाहिए.
जैसे ही पता चलता है कि बच्चा थैलेसीमिया मेजर है, उसी वक्त पूरे परिवार की थैलेसीमिया की जांच करानी जरूरी है. पेरेंट्स की जांच तो होगी ही, अगली प्रेग्नेंसी का पता चलते ही 8-10 सप्ताह में सीवीएस टेस्ट और जीन टेस्ट करके भ्रूण की जांच करवानी जरूरी है. इनसे पेरेंट्स को यह बताया जा सकता है कि उनका बच्चा मेजर थैलेसीमिया पीड़ित होगा या नहीं. अगर बच्चा थैलेसीमिया माइनर हो तो पेरेंट्स को घबराने की जरूरत नहीं है, वह उनके जैसे ही नॉर्मल जिंदगी जियेगा. अगर बच्चा थैलेसीमिया मेजर पीड़ित है, तो उसका गर्भपात किया जा सकता है, जो कानूनी तौर पर मान्य है.
इसके अलावा जिनके परिवार में या नाते-रिश्तेदारी में कोई भी बच्चा थैलेसीमिया पीड़ित है, तो यथासंभव दोनों पार्टनर को जांच करवानी चाहिए. ऐसे मामले उन परिवारों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, जिनमें क्लोज रिलेशन या रिश्तेदारी में विवाह होने पर आमतौर पर लड़का-लड़की में एक ही जीन पाया जाता है. अगर दोनों के जीन में खराबी है, तो उनका बच्चा थैलेसीमिया मेजर पीड़ित हो सकता है, इसलिए ऐसे लोगों को थैलेसीमिया टेस्ट जरूर करवाना चाहिए.
थैलेसीमिया मेजर मरीजों को आयरन-रिच डाइट कम लेनी चाहिए. ऐसा न करने पर उनके शरीर में आयरन बढ़ सकता है व दूसरे अंग प्रभावित हो सकते हैं. अगर बच्चा चिरेशन थेरेपी पर है, तो सिट्रस फ्रूट्स या विटामिन सी सप्लीमेंट ले सकते हैं, जो अतिरिक्त आयरन को शरीर से बाहर निकालने में मदद करते हैं.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.