नई दिल्ली : कोरोना महामारी अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है. दूसरी लहर का असर अभी जारी ही है कि तीसरी लहर के दस्तक देने का दावा किया जा रहा है. महामारी के दौरान किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए हर किसी को खुद को टेंशन फ्री रखना बेहद जरूरी है. आइए, जानते हैं कि बेंगलुरु स्थित निमहांस की निदेशक डॉ प्रतिमा मूर्ति क्या सुझाव देती हैं…
सबसे पहले तो यह कि लोग संक्रमित होने से भयभीत हैं. लोग बाहर जाने से कतरा रहे हैं. उन्हें भी डर है कि कैसे मास्क पहनें या संक्रमण से बचने के लिए कौन से उपाय को अपनाएं. आलम यह कि अब तो लोग घर में इस्तेमाल की जाने वाली रोजमर्रा की चीजों को भी विसंक्रमित करने लगे हैं. बाद में वायरस के प्रसार को धरातलीय नहीं बताया गया, तब लोगों की सांस में सांस आई, लेकिन दूसरी लहर में परिवार के परिवार के संक्रमित होने पर खौफ और बढ़ गया. बीमार की तिमारदारी में पूरा परिवार जुटने लगा. अनहोनी में नाते-रिश्तेदार आश्वासन देने लगे. पारंपरिक रस्मो-रिवाज से लोगों का दुख कुछ कम हुआ, लेकिन लोगों को मानसिक और भावनात्मक सहयोग नहीं मिल पाया, जिससे उनका गम बढ़ा और लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर अधिक परेशान हुए. मानसिक तनाव की इस स्थिति से वापस आने के लिए बहुत से लोगों के लिए काफी मुश्किल भरा होता है. कुछ अभी भी पैनिक अटैक का सामना कर रहे हैं.
बच्चों ने इस समय सबसे अधिक बदलाव का दौर देखा. वे बिना स्कूल गए घर पर ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई करनी सीखी. कई बच्चों के पास ऑनलाइन क्लास करने की सुविधा नहीं हैं या जिनके पास शिक्षा के सीमित संसाधन हैं. हमने एक पेटिंग प्रतियोगिता आयोजित की, जिसके माध्यम से जानने का प्रयास किया गया कि बच्चों ने लॉकडाउन को कैसे बिताया? कुछ बच्चों ने पेंटिंग के जरिए यह जाहिर किया कि उन्होंने पहले लॉकडाउन के समय अकेलेपन और एकांतवास का अनुभव किया. कुछ बच्चों की पेंटिंग काफी आशावादी और उत्साहजक थी, जिसमें उन्होंने फ्रंटलाइन वर्कर और स्वास्थ्य कर्मचारियों के कोविड काल में किए गए कार्य की सराहना की. बच्चों ने कुछ तस्वीरें ऐसी बनाईं, जिसमें उन्होंने दिखाया कि वह किस तरह घर पर ही इंडोर गेम खेल रहे हैं और परिवार के साथ मिलकर रचनात्मक कार्य कर रहे हैं, लेकिन जब लॉकडाउन की समयावधि बढ़ गई, तब बच्चों के लिए न्यू नॉर्मल लाइफ में रहना काफी मुश्किल हो गया.
बड़े बच्चे में शैक्षणिक शिक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई. स्कूल में कराई जाने वाली बहुत सारी विकासात्मक गतिविधियों बच्चों को नहीं मिल रही थी. खासकर, ऐसे बच्चे जो स्कूल ट्रिप के लिए स्कूल से बाहर जाते हैं. इसके साथ ही अभावों में जीवन व्यतीन करने वाले लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को भी कोविड ने बुरी तरह प्रभावित किया. लॉकडाउन और कोविड ने हमें कई तरह की तकनीक को प्रयोग करने का आदी बना दिया. घर पर लंबे समय रहने के कारण बच्चों ने मोबाइल का प्रयोग गैर शैक्षणिक कार्य के लिए भी करना शुरू कर दिया. ऑनलाइन पढ़ाई के साथ ही बच्चे मोबाइल गेम और अन्य आपत्तिजनक चीजें भी देखने लगे. शारीरिक श्रम की कमी, दोस्तों से न मिलना, सामाजिक एकजुटता ने होना आदि चीजों से बच्चों ने शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा असर पड़ा.
जी, बिल्कुल. कोविड-19 के दीर्घकालीन प्रभाव भी हो सकते हैं. हम ऐसे मरीज देख रहे हैं, जिन्हें कोविड हुआ और अब वह पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से परेशान हैं, जो लंबे समय तक रह सकता है. फिर ऐसे लोग जिन्हें पहले से भी कई तरह की मानसिक परेशानियां जैसे तनाव या एंजाइटी है, तो ऐसी अवस्था में उनकी सेहत पर कोविड का अधिक गंभीर असर हो सकता है. तीसरा, अब जैसा कि हमें पता है कि कोविड केवल फेफड़ों को प्रभावित नहीं करता है. यह मस्तिष्क सहित शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है. कोविड संक्रमण की वजह से दिमाग की नसों में संकुचन हो सकता है. एसएआरएस और एमईआरएस वायरस पर किए गए अध्ययनों से यह पता चला है कि संक्रमित मरीज दीर्घ काल में तनाव, अनिद्रा और कुछ मामलों में साइकोसिस के शिकार पाए गए. इसके अलावा, संक्रमण के बाद लॉन्ग कोविड इंपैक्ट भी देखा गया, जिसमें मरीजों को थकान, मांसपेशियों में दर्द, याद्दाश्त का कमजोर होना आदि मानसिक समस्याएं देखी गईं.
मानसिक स्वास्थ्य के इलाज और जरूरत, इन दोनों में शुरू से ही बड़ा अंतर है. कोई तो वजह है, जो लोग अपनी भावनात्मक बातों को लेकर खुलकर बात नहीं कर पाते. अब ऐसा लगता है कि जनसंख्या के एक बड़े हिस्से में अब मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोग जागरूक है. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में व्यक्तिगत रूप से सामाजिक स्तर पर और योजनाएं बनाने तक के स्तर पर बात करने की जरूरत है. सबसे पहले इस बात को समझने की जरूरत है कि जब लोगों को इस बात का अनुभव हो कि वह मानसिक रूप से तनाव में है, तब उन्हें इस बात के बारे में किसी से बात करनी चाहिए या किसी की सहायता लेनी चाहिए. इसके साथ ही, उन्हें लोगों को तनाव की किसी भी स्थिति से निपटने के लिए खुद को तनाव मुक्त करना आना चाहिए. तनाव मुक्त रहने के लिए खुद को ऐसे चीजों में व्यस्त रखें, जो उन्हें करना अच्छा लगता है.
मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ जोड़ देना चाहिए. सही मायने में, इस संदर्भ में सरकार के जिला स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम एक बेहतर कार्य कर सकते हैं. नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान लोगों से यह पूछना चाहिए कि क्या वह ठीक तरीके से सो पा रहे हैं, उनका व्यवहार स्थाई रहता है या फिर बदलता रहता है. सभी स्वास्थ्यकर्मियों को इस बात की पहचान करनी आनी चाहिए कि इलाज के लिए आए मरीज का मानसिक स्वास्थ्य सही नहीं है या फिर वह तनाव में है. इसके साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य के लिए चलाई जा रही ऑनलाइन सुविधा को भी अधिक मजबूत करने की जरूरत है. निमहंस में हमने इसके लिए 24 घंटे हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है, जिसको मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा संचालित किया जाता है. हमें इस बात को समझना होगा कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य का सीधा असर शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. तनाव, चिंता, डर, भय आदि कइ तरह के साइक्लॉजिकल समस्याओं की वजह बन सकते हैं. जो क्रानिक बीमारी जैसे डायबिटिज, हाईपरटेंशन और मोटापे की भी वजह है.
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों, मीडिया में काम करने वाले और पुलिस आदि को रोजाना कई तरह की दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता है और यह उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है. इससे बचने के लिए हमें एक सामांजस्य की स्थिति को बनाना होगा. जितनी नेगेटिव खबरें हों, उतनी ही पॉजिटिव खबरें होगीं, तो नकारात्मकता का असर कम होगा. उदाहरण के लिए महामारी में यदि किसी ने अपने प्रियजन को खोया, तो ऐसे केस भी है जहां चिकित्सकों ने मरीजों की जान बचाई. तनाव से बचने के लिए हमें चीजों को संतुलन में बनाकर देखना होगा. याद रखें, कोविड एक अभूतपूर्व बीमारी है, इससे मुकाबला करने के लिए हमें अधिक मजबूती के साथ खड़े होना होगा. शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को तैयार करके हम इस जंग को जीत सकते हैं.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.