जमशेदपुर (संजीव भारद्वाज) : दलितों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता सरदार बूटा सिंह (Sardar Buta Singh) ने ही झारखंड (Jharkhand) की आधारशिला रखी थी. शनिवार की सुबह उन्होंने नयी दिल्ली स्थित एम्स में अंतिम सांस ली.
बाबू जगजीवन राम एवं स्वर्गीय रामविलास पासवान के साथ देश के दलितों की सबसे बड़ी आवाज रहे बूटा सिंह ने शिक्षक के रूप में करियर की शुरुआत की थी. बाद में वह देश के शक्तिशाली गृह मंत्री बने. 86 वर्षीय बूटा सिंह लंबे समय से बीमार थे.
पंजाब के जालंधर जिले के मुस्तफापुर गांव में 21 मार्च, 1934 को जन्मे सरदार बूटा सिंह 8 बार लोकसभा के लिए चुने गये. नेहरू-गांधी परिवार के विश्वासपात्र रहे सरदार बूटा सिंह ने भारत सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री, कृषि मंत्री, रेल मंत्री, खेल मंत्री और अन्य कार्यभार के अलावा बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे.
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ दलित नेता बूटा सिंह को दलितों का मसीहा कहा जाता था. वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी की लहर के चलते कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से हार गयी और बाद में इसकी वजह से पार्टी विभाजित हो गयी, तो तो सरदार बूटा सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी का साथ दिया.
पार्टी के एकमात्र राष्ट्रीय महासचिव के रूप में उन्होंने कड़ी मेहनत की. उनकी मेहनत का नतीजा यह रहा कि पार्टी 1980 में फिर से सत्ता में आयी. अयोध्या में राम मंदिर के मामले में भी बूटा सिंह ने अहम जानकारियां विहिप को उपलब्ध करायी थी.
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) पहले अयोध्या में सिर्फ पूजा करने और मंदिर के प्रबंधन का ही अधिकार मांग रहा था. कहा जाता है कि विश्व हिंदू परिषद को जमीन का हक मांगने की सलाह बूटा सिंह ने ही दी थी.
Posted By : Mithilesh Jha