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जमशेदपुर के दलमा क्षेत्र में दिखी विलुप्त होती प्रवासी पक्षी, पर्यटन क्षेत्र वाले जलाशयों से बना रहे दूरी

प्रदूषण समेत विभिन्न कारणों से शहर के जलाशयों में इस बार कम प्रवासी पक्षी देखे गये. लेकिन, फरवरी का आखिरी सप्ताह पर्यावरण प्रेमियों के लिए अच्छी खबर लेकर आया है

प्रदूषण समेत विभिन्न कारणों से शहर के जलाशयों में इस बार कम प्रवासी पक्षी देखे गये. लेकिन, फरवरी का आखिरी सप्ताह पर्यावरण प्रेमियों के लिए अच्छी खबर लेकर आया है. दलमा अभ्यारण्य क्षेत्र के कई जलाशयों में प्रवासी पक्षियों के अलावा इस बार कई ऐसे पक्षी देखे गये हैं, जो विलुप्त होने के कगार पर है. विलुप्त होते पक्षियों का दलमा क्षेत्र में दिखना अच्छे संकेत हैं.

दलमा सेंक्चुरी के पाटा बांध में 12 फेरूजिनस डक (बतख) देखे गये हैं. फेरूजिनस डक यूरोसाइबेरियन हैं तथा यह विलुप्त होती प्रजाति है. इसी तरह यूरेशियन कबूतर भी 8 से 10, कॉमन पोचार्ड 8, गडवाल 4, रेड क्रेस्टेड (लाल कलगी) पोचार्ड 60 तथा टैगा फ्लाइकैचर और ब्लैक बिटर्न प्रवासी पक्षी एक -एक देखे गये हैं. पक्षियों की ये प्रजातियां भी वैश्विक स्तर पर असुरक्षित श्रेणी में रखी गयीं हैं.

शहरी जलाशयों में आना क्यों पसंद नहीं कर रहे प्रवासी पक्षी

विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी पक्षी शहरी जलाशयों में आना पसंद नहीं कर हैं. जलाशयों में मछली मारने वाले जाल से जान को खतरा, पानी में कपड़ा की धुलाई, गंदगी से इनका जीवन असुरक्षित महसूस होता है. डैम में वोटिंग की वजह से भी ये पक्षी डिमना, जुबली पार्क के जयंती सरोवर और चांडिल डैम में प्रवास नहीं कर रहे हैं. वहीं एनएच किनारे के कई ऐसे जलाशय हैं, जहां कभी प्रवासी पक्षियों का झुंड देखते ही बनता था, लेकिन आज नहीं. वजह सड़क निर्माण से हो रहा प्रदूषण, पेड़ों की कटाई व पानी की ऊपरी सतह पर तैरती धूल.

पर्यटन क्षेत्र वाले जलाशयों से दूरी

प्रवासी पक्षी शांत व एकांत जलाशयों में ज्यादा आते हैं. पूर्व के वर्षों में सबसे अधिक चांडिल डैम में इनका आना होता था, हालांकि इस बार चांडिल डैम में प्रवासी पक्षी नहीं देखे गये हैं. इसका कारण डैम में पब्लिक मूवमेंट (पर्यटकों का ज्यादा आना जाना) और वोटिंग होना बताया जाता है. विशेषज्ञों की मानें तो चांडिल डैम के अलावा प्रवासी उन सभी जलाशयों में जाने से बच रहे हैं, जहां पर्यटकों का आना-जाना ज्यादा है.

मार्च तक करेंगे प्रवास

प्रवासी पक्षी प्रत्येक वर्ष नवंबर व दिसंबर में अधिक नजर आते हैं तथा मार्च तक प्रवास करते हैं. हालांकि विगत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष नवंबर-दिसंबर में नहीं देखे गये थे. इन पक्षियों के आने में देरी के भी कई कारण हो सकते हैं. उम्मीद जतायी जा रही है कि मार्च के मध्य या अंत तक इनका यहां प्रवास होगा.

फेरूजिनस डक की विशेषता

फेरुगिनस डक काफी उथले ताजे जल निकायों को पसंद करती हैं, जिसमें समृद्ध जलमग्न और तैरती हुई वनस्पति होती है, जिसके किनारों पर उभरती वनस्पतियों के घने स्टैंड होते हैं. ये मिलनसार पक्षी हैं. लेकिन अन्य प्रजातियों की तुलना में कम सामाजिक हैं. जनवरी के बाद से ये जोड़े बनाते हैं और प्रेमालाप के दौरान नर अक्सर अपनी पूंछ को घुमाते हैं

ताकि यह पानी में डुबकी लगाकर अंडरटेल कवर का एक त्रिकोणीय सफेद पैच बना सके. ये पक्षी मुख्य रूप से गोताखोरी या डबलिंग करके भोजन करते हैं. वे कुछ मोलस्क, जलीय कीड़े और छोटी मछलियों के साथ जलीय पौधे खाते हैं. ये अक्सर रात में भोजन करते हैं.

दलमा वन्यजीव अभयारण्य के पाटा बांध में झुंड में विहार करतीं जल पंक्षी फेरूजिनस डक की तस्वीर दलमा रेंज के डीएफओ अभिषेक कुमार ने अपने कैमरे में कैद की.

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