जमशेदपुर (निसार) : टाटा स्टील आर्चरी एकेडमी के तीरंदाजी कोच धर्मेंद्र तिवारी को भारत का सबसे प्रतिष्ठित गुरु सम्मान द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा. पिछले 26 वर्षों से तीरंदाजी कोचिंग के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले धर्मेंद्र तिवारी अभी तक 250 से अधिक तीरंदाजों को ट्रेनिंग दे चुके हैं. भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार 29 अगस्त को खेल दिवस पर दिया जायेगा. इसमें पांच लाख रुपये का नकद पुरस्कार व ट्रॉफी दी जाती है.
धर्मेंद्र तिवारी के सानिध्य में तीरंदाजी का गुर सीखने वाले तीरंदाजों की फेहरिस्त काफी लंबी है. 1993 से कोचिंग के क्षेत्र में कदम करखने वाले धर्मेंद्र तिवारी 250 से भी अधिक खिलाड़ियों को ट्रेंड कर चुके हैं. जयंत तालुकदार, राहुल बनर्जी, रीना कुमारी, वी प्रणिता, दीपिका कुमारी, अतनू दास, बुलबुल मरांडी, चक्रवोलू जैसे दिग्गज तीरंदाज धर्मेंद्र तिवारी के ही शागिर्द हैं. ये सभी तीरंदाजों ने भारत के लिए पदक हासिल किया है. भारतीय तीरंदाजी में धर्मेंद्र की गिनती सबसे अनुभवी कोच के रूप में की जाती है. नये-पुराने खिलाड़ियों ने धर्मेंद्र के चयन का स्वागत किया है.
कदमा के रहने वाले 47 वर्षीय धर्मेंद्र तिवारी का पहला प्यार क्रिकेट और योग है. धर्मेंद्र तिवारी जब अपने पिता भगवान तिवारी व माता ए देवी के साथ बर्मामाइंस में रहते थे, तो वहां पर मौजूद बीपीएम स्कूल के मैदान में क्रिकेट खेला करता थे. सुबह में वह योग व शाम क्रिकेट खेलते थे. बीपीएम स्कूल के बगल में ही एटीसी आर्चरी क्लब है.
1985 में उस क्लब के कोच डीके सरकार ने धर्मेंद्र तिवारी के पिता भगवान तिवारी से शिकायत के लहजे में कहा कि इसको आर्चरी करने के लिए भेजिए, क्रिकेट में कुछ नहीं रखा है. डीके सरकार की बात मानकर धर्मेंद्र तिवारी के पिता ने उनको आर्चरी के लिए भेजा. शुरू-शुरू में धर्मेंद्र तिवारी को आर्चरी में बिल्कुल मन नहीं लगता था. उसी वर्ष पटना में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में धर्मेंद्र तिवारी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल जीत लिया. फिर यहीं से धर्मेंद्र तिवरी के तीरंदाजी कैरियर का सुनहरा सफर शुरू हुआ. इसके बाद 1987 में फिर 1988 में धर्मेंद्र तिवारी ने टीम इवेंट में झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए पदक हासिल किया.
धर्मेंद्र तिवारी ने बताया कि 1987 में वह रुरल नेशनल खेलने के लिए फरीदाबाद गये थे. वहां पर उन्होंने बेहतरीन प्रदर्शन किया और गोल्ड मेडल जीत हासिल किया. उस टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाले को पुरस्कार के रूप में टीवी देने के लिए पहले से ही घोषणा की गयी थी. जो उस दौर की सबसे बड़ी बात थी. धर्मेंद्र दिवारी ने बताया कि उस टूर्नामेंट में मुझे दो-दो टीवी मिले थे. एक तो मेरे गोल्ड मेडल के लिए और दूसरा जब मैंने पुरस्कार वितरण के समापन समारोह में योगा का शानदार डेमोस्ट्रेशन दिया था. स्टेट योग चैंपियनशिप में पदक जीत चुके धर्मेंद्र तिवारी ने उस टूर्नामेंट के समापन समारोह में इतना शानदार योग ड्रील दिखाया था कि वहां पर मौजूद एक मंत्री ने उनको एक और टीवी पुरस्कार के रूप में दे दिया था.
1988 में धर्मेंद्र तिवारी को मैट्रिक की परीक्षा देनी थी. उसी वर्ष सिओल में ओलिंपिक का होना था. उस ओलिंपिक से पूर्व भारतीय तीरंदाजी टीम का एक विशेष कैंप दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में लगाया गया. इस कैंप में जूनियर स्तर के तीन खिलाड़ी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था. उसमें धर्मेंद्र तिवारी का नाम भी शामिल था. इसलिए वह उस वर्ष मैट्रिक की परीक्षा नहीं दे पाये थे. आरडी टाटा स्कूल के पूर्व छात्र धर्मेंद्र तिवारी ने उसके बाद प्राइवेट से मैट्रिक की परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुए थे.
1993 सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप के बाद धर्मेंद्र तिवारी ने तीरंदाजी को अलविदा कह दिया. उसके बाद उन्होंने कोचिंग के क्षेत्र में अपना कदम रखा. जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में पहली बार उनको कोचिंग देने का मौका मिला. अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज झानो हांसदा और जीवा जारिका उनकी पहली स्टूडेंट हैं. दोनों ने आगे चलकर भारत का प्रतिनिधित्व किया और पदक भी जीते. वहीं उस बैच की एक और तीरंदाज तारा कुमारी हैं, जिन्होंने नेशनल स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की.
भारतीय इतिहास में टाटा आर्चरी एकेडमी की एक अलग पहचान है. इस आर्चरी एकेडमी की ख्याति का पता इस बात से चलता है कि अपनी स्थापना से लेकर अभी तक इस एकेडमी ने 1000 से अधिक पदक हासिल किये हैं. इसमें 350 अंतरराष्ट्रीय पदक हैं. 20 पदक विश्व चैंपियनशिप में और 50 पदक विश्वकप के शामिल हैं. इस एकेडमी की कामायाबी में धर्मेंद्र तिवारी का बहुत बड़ा योगदान रहा है. धर्मेंद्र तिवारी टाटा आर्चरी एकेडमी के पहले कोच हैं. एकेडमी की स्थापना चार अक्टूबर 1996 में की गयी थी, लेकिन धर्मेंद्र तिवारी को इस एकेडमी का कोच एकेडमी की स्थापना से पांच महीने पहले ही नियुक्त कर लिया गया था. वह सहायक कोच के रूप में एकेडमी से जुड़े थे. धर्मेंद्र तिवारी भारतीय टीम, बिहार टीम के अलावा टाटा स्टील टीम के कोच रह चुके हैं. धर्मेंद्र तिवारी ओलिंपिक में भी भारतीय टीम के कोच रहे हैं.
टाटा आर्चरी एकेडमी के पूर्व कोच संजीव सिंह और पूर्णिमा महतो को भी यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है. संजीव सिंह को 2007 में और पूर्णिमा महतो को 2013 में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था.
Posted By : Guru Swarup Mishra