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Vishwakarma Puja 2023: विश्वकर्मा पूजा कल, जमशेदपुर में इनकी सृजनात्मक कला लोगों को आ रही पसंद

मूर्तिकार देवी-देवताओं की मूर्तियों को मूर्तरूप दे रहे हैं. इन सबके साथ नयी डिजाइन के आभूषण बना कर सोनार लोगों का शौक पूरा कर रहे हैं. इनका निर्माण अद्भुत और अलग होने से ये औरों के लिए मिसाल बने हैं. ये लोगों के जीवन से जुड़ी जरूरत को पूरा करने के साथ हमेशा कुछ अलग देने के लिए लगातार प्रयासरत हैं.

Vishwakarma Puja 2023: हर वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाते हैं. भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता कहा गया है. शहर में भी कई लोग अपनी सृजनात्मक कला से आमजन को सुविधा मुहैया करा रहे हैं. इनमें इंजीनियर्स जहां लोगों के लिए नयी चीजें, मसलन इलेक्ट्रॉनिक्स सहित अन्य मशीनरी सामान बनाने के साथ नये भवन, सोसाइटी का निर्माण कर शहर को नया लुक दे रहे हैं, वहीं लोहार व कुम्हार के बनाये सामान का घर-घर में उपयोग हो रहा है. वाहन फिटर खराब वाहनों की मरम्मत कर लोगों को उसका उपयोग करने का तोहफा दे रहे हैं. मूर्तिकार देवी-देवताओं की मूर्तियों को मूर्तरूप दे रहे हैं. इन सबके साथ नयी डिजाइन के आभूषण बना कर सोनार लोगों का शौक पूरा कर रहे हैं. इनका निर्माण अद्भुत और अलग होने से ये औरों के लिए मिसाल बने हैं. ये लोगों के जीवन से जुड़ी जरूरत को पूरा करने के साथ हमेशा कुछ अलग देने के लिए लगातार प्रयासरत हैं.

विश्वकर्मा पूजा कल

राष्ट्रीय पंचांग अनुसार, 17 सितंबर को दिवाकाल में संक्रांति मिलने के कारण 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करनी चाहिए. पंडित एके मिश्रा के अनुसार 17 सितंबर को सूर्य देव कन्या राशि में दोपहर 1 बज कर 29 मिनट में प्रवेश कर रहे हैं. संक्रांति दिवाकाल में ही मिल रही है. संक्रांति में ही विश्वकर्मा पूजा का विधान है. उन्होंने बताया कि संक्रांति अगर सूर्यास्त के पूर्व में हो तो संक्रांति का पूर्णकाल पूर्व में ही माना जाता है. संक्रांति सूर्योदय के समय हो तो ऐसी स्थिति में सूर्योदय के बाद ही पूर्णकाल मनायी जानी चाहिए. पूर्णकाल अगर रात्रि में हो तो पूजा का विधान नहीं है. उन्होंने बताया कि बांग्ला और मिथिला पंचांग में 18 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की पूजा का उल्लेख है.

हाई राइज बिल्डिंग चेन के साथ शहर को मेट्रो लुक देने की कोशिश

भवन निर्माण से जुड़े लोगों के समर्पण से शहर में मेट्रो कल्चर की शुरुआत होती दिख रही है. हाई राइज बिल्डिंग इस सपने को साकार कर रही है. एटीसी अल्टिमा प्रोजेक्ट में 43 मंजिला बिल्डिंग का निर्माण कराने की योजना है. टाटा लीज एरिया से हटकर एक नये लुक को देखने के साथ-साथ लोगों के उसमें अपना घर बसाने के प्लान पर लगातार काम किया जा रहा है. इसके साथ शहर में अब तक एक दर्जन पॉश कॉलोनियां बनाकर करीब 10 हजार से अधिक लोगों को रिहायश मुहैया कराये गये हैं, वहीं पांच हजार फ्लैट का काम अंतिम चरण में है. इसके अलावा आस्था ट्विन सिटी मैजेस्टिक के नाम से 23 मंजिलों वाली तीन हाई राइज बनाये जा रहे हैं. यह सपना रियल एस्टेट के कारोबार में अपने भविष्य की सोच के साथ कदम रखनेवाले आस्था के निदेशक कौशल सिंह पूरा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे हाई राइज बिल्डिंग की प्लानिंग से लेकर डिजाइनिंग का सारा काम खुद ही तैयार करते हैं. ऐसा इसलिए करते हैं कि निर्माण कार्य में कॉस्ट अधिक नहीं हो. उन्हें पता है कि जब किसी को अपने सपनों को घर मिलता है, तो वह उसे पाकर किस अनुभूति का अहसास करता है. जल्द ही नये प्रोजेक्ट एटीसी इंद्रप्रस्थ, आदित्यपुर में वाटर मार्क पर भी काम किया जायेगा.

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डिमांड के अनुसार मूर्तियों को दे रहे मूर्तरूप

चंंडीनगर के मूर्तिकार अजीत पाल कोई 40 वर्षों से हर पूजा अनुष्ठान में देवी-देवताओं की प्रतिमा बना रहे हैं. उनके पास आजकल इंटरनेट से डिजाइन की हुई मूर्तियों के ऑर्डर अधिक आ रहे हैं. उदाहरण के लिए गणपति देव को सूर्यदेव के रथ की सवारी करते हुए दिखाना, गणपति देव को कान्हा के रूप में दिखाना आदि. इसके लिए वे कई बार कंप्यूटर पर अध्ययन भी करते हैं. प्रतिमा में वे सामान्य रंग से अलग चटकीले रंग का प्रयोग करते हैं. प्रतिमा के बैकग्राउंड पर भी मेहनत करते हैं. इसलिए उनकी मूर्तिकला की मांग रहती है.

बाजार में इनकी खुरपी की है मांग

कई बार मशीन से बनी चीज से बढ़िया इंसानों के हाथों से बनी चीजें होती हैं. यह बात भुइयांडीह निवासी बब्बू विश्वकर्मा पर फिट बैठती है. ग्राहक उनके हाथ से बनी खुरपी, बैठी (हसुआ) आदि के मुरीद हैं. तभी तो इधर-उधर भटकने के बजाय ग्राहक सीधे उनके पास आते हैं. बब्बू के हाथ की चोट जब लोहे पर पड़ती है, तो वह मुकम्मल आकार ले लेती है. शायद इसलिए अन्य जगह के सामान ग्राहकों को पसंद नहीं आते. खराब लोहे से सामान बनाना हो या भोथे सामान को तेज करना हो, ग्राहकों को उनका विकल्प नहीं दिखता.

हुनर ऐसा कि इंजन का काम कराने के लिए लोग करते हैं इंतजार

कपाली ताजनगगर में रहने वाले 30 वर्षीय ग्यासुद्दीन अंसारी (बाबू मिस्त्री) आंखों से दिव्यांग हैं, लेकिन उनकी वाहन रिपेयरिंग की क्षमता अद्भुत है. यहां तक कि उनसे दो पहिया वाहनों का इंजन बनवाने के लिए लोग घंटों बैठकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. जिन वाहनों को बनाने में दूसरे कारीगर को डेढ़ से दो घंटे लग जाते हैं, उसे वे 45 से 50 मिनट में कर देते हैं. दो पहिया वाहनों के इंजन बांधने से लेकर मरम्मत करने तक में माहिर बाबू मिस्त्री इस बात का अहसास नहीं होने देते कि उनकी आंखें नहीं हैं. वह किसी तरह लाचार हैं. ग्यासुद्दीन अंसारी ने बताया कि वह मूलरूप से बंगाल के बगमुंडी के रहने वाले हैं. पिता सबुर अंसारी हाट बाजार में रेडीमेड कपड़ों की फेरी लगाते थे. बचपन से आंखों में रोशनी चली गयी और वह दूसरों पर निर्भर हो गये. इसी बीच परिवार का खर्च चलाने के लिए बड़े भाई ने वाहन रिपेयरिंग की दुकान खोली और उन्हें भी अपने साथ दुकान ले जाने लगे. धीरे-धीरे दुकान में भाई के काम में मदद करने लगा. वाहनों के अलग-अलग कल-पूर्जे को स्पर्श कर जानकारी ली. धीरे-धीरे इंजन बनाने का काम सीख लिया. आखिरकार यही रोजगार बन गया. अब गाड़ी खोलने से लेकर पूरी फिटिंग तक करते हैं.

मिट्टी के बर्तन पर पेंटिंग कर बढ़ा रहे खूबसूरती

सोनारी के मोहन करण मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं. उन्होंने इसे नया लुक देना शुरू किया है. मिट्टी के प्लेट, कप, डिश, बोतल पर ऐसी पेंटिंग करते हैं कि मानो चीनी मिट्टी के बर्तन हों. इसके लिए वे मेहनत करते हैं. इस पर गाढ़ा पक्का रंग चढ़ाते हैं. ऐसे बर्तन ग्राहक घर में सजाने के लिए भी ले जाते हैं. वे टेराकोटा के दीप व अन्य सजावटी चीज भी बनाते हैं. जिसकी मांग रहती है.

पारंपरिक के साथ गढ़ रहे आधुनिक गहने

गहनों का शौकीन भला कौन नहीं है. अब सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी गहने पहनना पसंद कर रहे हैं. पारंपरिक गहनों की डिमांड तो हमेशा ही रही है, लेकिन आधुनिक डिजाइन भी खास मौके पर पहने जाते हैं. ऐसे गहनों को रूप देने में माहिर हैं शहर के सोनार विपदतारण पाल. वे कहते हैं कि पहचान एक दिन में नहीं बनती है. इसके लिए वर्षों मेहनत करनी पड़ती है. वह पिछले 35 वर्षों से यह काम कर रहे हैं. उनकी कारीगरी के गहने लोगों को एक नजर में भा जाते हैं. उन्हें पौराणिक से लेकर नये और आधुनिक गहनों के निर्माण का अनुभव है. उन्होंने यह कला अपने पारिवारिक माहौल में ही सीखा. उनके मामा सोनार थे. मूल रूप से कहा जाये तो वे अपना गुरु अरुप पालित को मानते हैं, जो कि बांग्लादेश में रहते थे. वे 1983 में पुरुलिया आये थे और मामा के साथ वे ज्वेलरी दुकान में काम कर हुनर को निखारा. वर्ष 1989 में जमशेदपुर आकर एक शोरूम में काम करने लगे. वह अपने परिवार के साथ जुगसलाई में रहते हैं. वे बताते हैं कि समय के साथ डिजाइन का चलन बढ़ा. नयी-नयी मशीनें आयीं, लेकिन निर्माणकर्ता का काम कम नहीं हुआ. गहना जिस वजन का बनेगा उस पर काम करते हैं. कारीगरी के साथ डिजाइन पर फोकस रहना पड़ता है.

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