झारखंड के जामताड़ा जिले में एक ऐसा स्कूल है, जहां माता-पिता अपने बच्चों को भेजने से डरते हैं. इस स्कूल में कथित तौर पर भूतों का वास है. जिसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को करीब एक महीने से स्कूल में पढ़ने नहीं भेज रहे थे. यह मामला फतेहपुर प्रखंड के उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय छोटूडीह का है. लोगों का कहना है कि स्कूल के आसपास से भी गुजरने में डर लगता है. हालांकि, मंगलवार को डीएसई दीपक राम स्कूल का जायजा लेने पहुंचे और विद्यालय का निरीक्षण किया. जिसके बाद डीएसई ने 29 मार्च से स्कूल में पठन-पाठन कराने को लेकर आवश्यक दिशा निर्देश भी दिया.
प्राथमिक विद्यालय छोटूडीह का जायजा लेने के दौरान डीएसई दीपक ने विद्यालय में तालाबंदी पाया. जिसके बाद मौके पर डीएसई ने ग्रामीण, शिक्षक और रसोईया आदि को बुलाकर अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक किया. उन्होंने बीईओ और सीआरपी को बुधवार से स्कूल में पठन-पाठन कराने को लेकर आवश्यक दिशा निर्देश भी दिया. आगे डीएसई दीपक राम ने कहा कि शिक्षक विद्यालय में पढ़ाना प्रारंभ करें और मन का भ्रम दूर करें. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों और शिक्षक को भ्रम था कि कोई शक्ति उन्हें परेशान कर रही है. साथ ही आश्वस्त किया कि प्रेत जैसी कोई बात नहीं होती है. उन्होंने कहा कि बुधवार से विद्यालय में पठन-पाठन कराने को लेकर बीइईओ और सीआरपी को लगाया गया है और विद्यालय में पठन-पाठन हो. इसकी व्यक्तिगत रूप से मॉनिटरिंग करेंगे और लोगों को मोटिवेट करेंगे. डीएसई के निर्देश के बाद स्कूल खोल तो दिया लेकिन कुछ ही बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए आये.
बता दें कि उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय छोटूडीह में काम करने वाले तीन लोगों की अचानक मौत हो गई है. जिसमें से सबसे पहले स्कूल के शिक्षक बाबूधन मुर्मू थे. जिसकी असमय मौत हो चुकी थी. वहीं शिक्षक के मौत के बाद जब उनके पुत्र के द्वारा विद्यालय आकर छात्रों को पढ़ाने का प्रयास किया गया तो उसकी भी मौत हो गई. इतना ही नहीं स्कूल के रसोईया छातामुनी मुर्मू की भी मौत महज 30 वर्ष की उम्र में अचानक हो गई थी. जिसके कारण लोगों में डर का माहौल पैदा हो गया. बच्चे स्कूल जाना छोड़ दिये. फिलहाल, इसी विद्यालय में कार्यरत शिक्षक नुनुधन मुर्मू है, जो अब ऐसी बीमारी की जकड़ में आ चुके है कि वे अपने बिस्तर से बिना सहारा उठ भी नहीं सकते हैं. ऐसे में इकलौते बचे शिक्षक सुरेंद्र टुडू हाल फिलहाल बीमार चल रहे हैं. लगभग एक माह तक अस्पताल में भर्ती थे. वे अब विद्यालय के भवन को छोड़कर कर बच्चों को निजी मकान में पढ़ाते हैं.
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