कोयला दुनिया में ऊर्जा का सबसे प्रमुख और बड़ा साधन है. वर्ष 2021-2022 के दौरान देश में कोयले के उत्पादन में 8.67% की वृद्धि हुई और उत्पादन 778.19 मिलियन टन पर पहुंच गया. केंद्र सरकार ने 2070 तक भले ही नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया हो, लेकिन कोयला देश में अभी भी ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है और इस जीवाश्म ईंधन का पर्यावरण पर बहुत गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है. कोयले और कोयले के कचरे में सीसा, पारा और आर्सेनिक जैसी भारी धातुएं मौजूद होती हैं, जो पौधे और पशु जीवन दोनों के लिए अत्यधिक जहरीली होती हैं.
कोयले से कई तरह के पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न होते हैं, जो ना सिर्फ मानव जाति बल्कि पशु-पक्षियों और वनस्पतियों के लिए भी जानलेवा साबित हो सकते हैं. थर्मल पावर और कोल माइंस की वजह से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण जैसी समस्या होती है, जो पर्यावरण के लिए बहुत ही खतरनाक है. कोयला खनन और उसके दहन से पर्यावरण में दूषित पदार्थों का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु, जल और भूमि में प्रदूषण फैलता है. कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है.
कोयले से होने वाले दुष्प्रभावों का अगर हम वर्गीकरण करें तो हमें ये प्रमुख दुष्प्रभाव आसानी से नजर आते हैं-
1. जलवायु परिवर्तन : कोयला खनन के दौरान अत्यधिक मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है. यह एक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है. मीथेन गैस ओजोन लेयर को नुसान पहुंचाता है. वहीं जब कोयले को जलाया है ताकि उससे ऊर्जा उत्पन्न हो तो उससे कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है. जलवायु विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग के लिए कोयले के खनन को सबसे प्रमुख कारक मानते हैं.
कोयले में रेडियम और यूरेनियम के तत्व मौजूद होते हैं, जो पर्यावरण में छोड़े जाने पर रेडियोधर्मिता की वजह बनते हैं. हालांकि कोयले में इनकी मात्रा काफी कम होती है, लेकिन कोयला प्रसंस्करण संयंत्रों में रेडियोधर्मी कचरे के खतरनाक स्तर का उत्पादन करने के लिए नियमित रूप से पर्याप्त कोयले को जलाया जाता है.
कोयला खनन की वजह से पौधों के जीवन और मिट्टी की उर्वरता को अपूरणीय क्षति होती है. परिणाम यह होता है कि भूमि बंजर होती जाती है. मिट्टी के कटाव की वजह से मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
कोयला खनन की वजह से लाखों गैलन जहरीले, अर्ध-ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं जिन्हें स्लरी कहा जाता है. इसे रोकने के लिए अक्सर पहाड़ों के बीच में जहां खनन कार्य चल रहा होता है वहां बांध बनाये जाते हैं, लेकिन अकसर ही यह स्लरी बांध टूट जाते हैं, जिसकी वजह से मानव और पशु-पक्षी इस जहरीले स्लरी की संपर्क में आ जाते हैं
कोयला खनन और उसे साफ करने की प्रक्रिया में कई तरह के एसिड निकलते हैं, कई बार कोल कंपनियां इन्हें नजदीकी नदी-नालों में प्रवाहित कर देती हैं, जिसकी वजह से जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है और यह जल के पीएच संतुलन को प्रवाहित करता है.
कोयला खनन और उसकी ढुलाई की वजह से कोयले के छोटे-छोटे कण हवा में बिखर जाते हैं. इस वातावरण में अधिक दिनों तक सांस लेने से कई तरह की श्वास संबंधी बीमारियां होती हैं. कोयले की धूल के लंबे समय तक संपर्क में रहने वाले लोगों को फेफड़े के कैंसर और अन्य बीमारियां होने की संभावना है.