रांची : पशुपालन विभाग ने लंफी स्किन डिजीज (एलएसडी) को लेकर सभी जिलों को अलर्ट किया है. इसको लेकर एडवाइजरी भी जारी की गयी है. सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से राज्य के कई जिलों में इस बीमारी के प्रकोप की जानकारी मिलने के बाद अलर्ट किया गया. विभाग की निदेशक नैंसी सहाय ने सभी जिला पशुपालन पदाधिकारियों को इस बीमारी को लेकर सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करने को कहा है. सभी जिलों को प्रखंडों में क्लीनिकल सर्विलांस रखने को कहा गया है.
प्रखंडों से रक्त का नमूना लेकर पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान के माध्यम से इआरडीडीएल, कोलकाता या आइसीएआर की संस्थान निसाद भोपाल जांच के लिए भेजने का निर्देश दिया है. इस रोग पर नियंत्रण के लिए पशुओं के मूवमेंट पर नियंत्रण करने का निर्देश दिया गया है. पशुपालकों की आवाजाही पर भी आवश्यकतानुसार रोक लगाने का निर्देश दिया गया है. इसके लिए जिला प्रशासन से मदद लेने को कहा गया है.
पलामू प्रमंडल में मिल रहे हैं लक्षण : एलएसडी लक्षण वाले जानवर पिछले साल कई जिलों में रिपोर्ट किये गये थे. बार रांची और चतरा जिलों के कुछ प्रखंडों में इस बीमारी के लक्षण वाले जानवर मिले थे. इसके बाद निदेशक ने सोमवार को एलआरएस की एक टीम खलारी भेजी थी. पलामू प्रमंडल में इस बार बीमारी के कई जानवर पाये गये हैं. इसको लेकर जिलों के पशुपालकों में डर बना हुआ है. यह बीमारी दो साल पहले अफ्रीका से आयी है. भारत में सबसे पहले केरल और ओड़िशा में इस बीमारी के लक्षण वाले जानवर पाये गये थे. अब धीरे-धीरे कई राज्यों में इस बीमारी वाले जानवर पाये जाने लगे हैं.
कोविड-19 तरह है इलाज की प्रक्रिया : इस बीमारी वाले जानवरों के इलाज की प्रक्रिया कोविड-19 की तरह ही है. जानवर को पहले बुखार होता है. जानवर के स्कीन में धब्बा हो जाता है. यह जख्म की तरह दिखने लगता है. एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलने लगता है. पशुपालकों से भी दूसरे जानवरों को यह बीमारी होने लगती है. इसके लिए जानवरों को आइसोलेट करने का प्रावधान है. जानवरों के मूवमेंट पर भी नियंत्रण रखना होता है.
पशुओं के लंफी त्वचा रोग से बचाव की पहल : रांची : कोरोना जैसी महामारी के दौर में पशुओं में भी भयावह महामारी सामने आयी है. इसकी चपेट में झारखंड के कई जिलों के पशु आ चुके हैं. यह लंफी त्वचा रोग है. इसकी रोकथाम के लिए झारखंड मिल्क फेडरेशन किसानों के बीच जागरूकता अभियान चला कर इस रोग से बचने के उपाय बता रहा है. घरेलू उपचार के लिए होटवार स्थित मेधा डेयरी प्लांट के हर्बल गार्डेन से एक दवा किसानों को भेजी जा रही है.
दो से पांच सप्ताह तक रहता है संक्रमण : मेधा डेयरी के प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने कहा कि यह बीमारी पशुओं में वायरस के कारण होती है. पॉक्स परिवार से संबंधित यह वायरस मुख्यत: मच्छर, मक्खी व जूं जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से पशुओं में फैला है. इस रोग का संक्रमण दो से पांच सप्ताह तक रहता है. लेकिन इससे कई सप्ताह तक पशुओं में दूध की कमी हो जाती है.
इस रोग के प्रारंभिक अवस्था में पशुओं के शरीर की त्वचा पर विभिन्न आकार के कठोर, ढेलेनुमा एवं उभरी हुई गांठें बन जाती हैं. पैरो एवं गले के पास पानी भरा सूजन हो जाता है. रोग बढ़ने पर पशु खाना-पीना कम या बंद कर देता है. पशु को बुखार रहता है तथा आंख व नाक से पानी भी बहता है.
Post by : Pritish Sahay