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झारखंड सरकार ने माना बंद पड़ी खदानें पर्यावरण के लिए बन रही खतरा, लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव

कोल इंडिया का इस बारे में यह कहना है कि अगर उसे खदान बंद करना पड़ा तो उसके लागत का भार वह अपने उपभोक्ताओं पर डालेगा. इस संबंध में कोयला मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी है.

Just Transition News : झारखंड के लोगों के लिए बंद पड़ी कोयला खदानें कितनी खतरनाक हैं और इनका क्लोजर कितना जरूरी है, इस बात को झारखंड सरकार भी अब पूरी तरह समझ गयी है और झारखंड के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने इस मामले को लेकर अपनी चिंता केंद्र सरकार के सामने उजागर कर दी है.

प्री बजट मीटिंग में हुई चर्चा

वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने दिल्ली में आयोजित प्री बजट मीटिंग में केंद्र सरकार के सामने अपनी यह चिंता जतायी है. साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार को यह जानकारी भी दी है कि किस तरह कोल कंपनियों द्वारा बंद खदानों का माइंस क्लोजर नहीं करने की वजह से राज्य के लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है. बंद पड़ी खदानें ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि इनकी वजह से कई दुर्घटनाएं भी हो रही हैं.

जस्ट ट्रांजिशन की सख्त जरूरत

वित्तमंत्री की इस मांग के बाद अगर केंद्र सरकार कोल कंपनियों से माइंस क्लोजर की प्रक्रिया अच्छे से निभाने को कहती हैं तो यह एक बेहतर कदम होगा. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि अगर ऐसा हुआ तो जस्ट ट्रांजिशन की सख्त जरूरत होगी.

खदानें बंद हुईं तो ग्राहकों पर होगा असर

इधर कोल इंडिया का इस बारे में यह कहना है कि अगर उसे खदान बंद करना पड़ा तो उसके लागत का भार वह अपने उपभोक्ताओं पर डालेगा. इस संबंध में कोयला मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर दी है, जिसके तहत कोल इंडिया को यह छूट मिली हुई है कि वह माइंस क्लोजर के खर्चे का भार अपने ग्राहकों पर डाल दे. अगर कोल इंडिया से ऐसा किया तो वह प्रति टन के हिसाब से अपने ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क वसूलेगी. हालांकि अभी तक कोल इंडिया ने इस संबंध में कोई निर्णय नहीं किया है, लेकिन जल्दी ही वो इस मसले पर फैसला कर सकता है. कोल इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने मार्च 2022 में खदान बंद करने के लिए 494 करोड़ रुपये खर्च किये.

बंद खदानों की वजह से होती हैं कई दुर्घटनाएं

झारखंड में बंद पड़ी खदानों की वजह से कई दुर्घटनाएं आये दिन होती रहती हैं. जहां जान व माल की हानि होती है. कई बार अवैध खनन के दौरान दुर्घटना होती है और जमीन धंसने से कई लोगों की जान जा चुकी है. सही तरीके से माइंस क्लोजर नहीं होने की वजह से ओवर बर्डन के ढेर की वजह से भी प्रदूषण फैलता है और लोगों को सांस संबंधी परेशानी देखने को मिलती है. झारखंड में वायु प्रदूषण के कारकों में से सबसे प्रमुख कारक है ओपन कास्ट माइंस. जानकारी के मुताबिक धनबाद और रामगढ़ जैसे जिले में अंडरग्राउंड माइंस बंद हो रहे हैं. इनकी जगह पर ओपनकास्ट माइंस को सीसीएल, बीसीसीएल और ईसीएल प्राथमिकता दे रहे हैं. सीसीएल की वेबसाइट के अनुसार कुल 43 माइंस यहां हैं जिसमें से पांच अंडरग्राउंड और 38 ओपनकास्ट हैं. झारखंड में पिछले कुछ सालों में सौ से अधिक खदान बंद हो गये हैं, जिनमें से अधिकतर अंडरग्राउंड माइंस हैं.

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