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Jharkhand News: …तो रेगिस्तान बन जायेगा पलामू, जानिए क्यों तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन

Jharkhand News: पलामू में दिन और रात के तापमान में करीब 20 डिग्री या उससे भी अधिक का अंतर आ रहा है. जबकि पहले यह अंतर 10-12 डिग्री सेल्सियस होता था. रेगिस्तानी इलाके में ही दिन और रात के तापमान में इतना ज्यादा अंतर होता है.

  • जंगलों की कटाई और पहाड़ खत्म होने से पलामू में हो रहा है जलवायु परिवर्तन

  • जाने-माने पर्यावरणविद और वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ दयाशंकर श्रीवास्तव का आकलन

  • रेगिस्तान की तरह दिन में तापमान 45 डिग्री और रात में 18-20 डिग्री सेल्सियस होना खतरे का संकेत

Jharkhand News: सैकत चटर्जी, मेदिनीनगर- पलामू, गढ़वा, लातेहार अर्थात पूरा पलामू प्रमंडल रेगिस्तान बनने की ओर अग्रसर है. यह कहना है देश के जाने-माने पर्यावरणविद, वन्य प्राणी विशेषज्ञ सह नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी के संस्थापक डॉ दयाशंकर श्रीवास्तव का. प्रभात खबर से बातचीत में उन्होंने झारखंड के पलामू की भविष्य की जो तस्वीर पेश की है, वह भयावह है.

बड़े पैमाने पर हो रहा जलवायु परिवर्तन

डॉ श्रीवास्तव के अनुसार जिस तेजी से पलामू में जंगल कट रहे हैं, एक-एक कर पहाड़ वनविहीन होकर पत्थर माफियाओं की भेंट चढ़ रहे हैं, इस कारण यहां बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है. ऐसा ही चलता रहा, तो आनेवाले 10 वर्षों में पलामू का अधिकतर इलाका रेगिस्ताननुमा हो जायेगा. उन्होंने बताया कि इस साल पलामू में दिन और रात की गर्मी का आकलन करें, तो पता चलता है कि उसमें बहुत फर्क आ गया है.

मिल रहा खतरे का संकेत

दिन में गर्मी 40-45 डिग्री सेल्सियस, तो रात में 18-20 डिग्री सेल्सियस रह रही है. अर्थात दिन और रात के तापमान में करीब 20 डिग्री या उससे भी अधिक का अंतर आ रहा है. जबकि पहले यह अंतर 10-12 डिग्री सेल्सियस होता था. रेगिस्तानी इलाके में ही दिन और रात के तापमान में इतना ज्यादा अंतर होता है. पलामू में भी ऐसा होना खतरे का संकेत है.

एकजुट होकर करना होगा काम

इस जलवायु परिवर्तन से पलामू में तूफान भी आयेंगे, जिसका परिणाम भयंकर होगा. सबसे पहले इस तूफान का असर पड़वा से लेकर विश्रामपुर के इलाके में दिखेगा. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी समय है. अगर पहाड़ों को पत्थर माफिया से बचाकर उसे हरा-भरा छोड़ दिया जाये, तो तीन से पांच साल के भीतर जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लग जायेगा. इस पर रोक लगाने के लिए पंचायत स्तरीय जनप्रतिनिधियों को आगे आना होगा. लोगों को एकजुट कर पहाड़ और वनों की अहमियत बतानी होगी.

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