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शौर्य गाथा : झारखंड के माटी के लाल लांस नायक अलबर्ट एक्का ने गंगासागर में बेमिसाल साहस का दिया परिचय

एकीकृत बिहार-झारखंड के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता (शहादत के बाद) अमर शहीद लांस नायक अलबर्ट एक्का 1971 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तानी फौज को तहत-नहस किया था. अलबर्ट एक्का के पिता जूलियस भी सेना में थे. इन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया था.

Shaurya Gatha: 3 दिगंबर, 1971 को झारखंड के माटी के लाल लांस नायक अलबर्ट एक्का ने अपनी बहादुरी के बल पर पाकिस्तानी फौज को तहस-नहस कर दिया था. दुश्मन मशीनगन से अलबर्ट एक्का पर गोलियों की बौछार कर रहे थे और अलबर्ट गोलियों की परवाह किये बगैर आगे बढ़ रहे थे. वे गंभीर रूप से चुके थे, इसके बावजूद आगे बढ़ते हुए उन्होंने दुश्मन के मशीनगन पर कब्जा कर लिया, जिससे गोलीबारी बंद हो गयी. बाकी का काम उनके सहयोगियों ने कर दिया, लेकिन इसकी कीमत अलबर्ट एक्का को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. वे शहीद हो गये. इसी बहादुरी के कारण उन्हें मनणोपरांत देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

भारतीय सैनिकों को पाक सेना पर हमला का मिला आदेश

युद्ध का वह खौफनाक दृश्य आज भी लोगों का दिल दहला देता है. चारों ओर गोलियां रही थी. कहीं से आग के गोले निकल रहे थे, तो कहीं हैंड ग्रेनेड और माेटार्र छोड़े जा रहे थे. चारों ओर सिर्फ धुंआ ही धुंआ छाया था. लेफ्टिनेंट विजय पन्ना वहां पर तैनात थे. अलबर्ट एक्का बी कंपनी में थे, जिसका मोर्चा गंगानगर के पास के रेलवे स्टेशन पर था. यहीं पर पाकिस्तान के 165 सैनिक जमे हुए थे. वे भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की तैयारी में थे. भारतीय सैनिकों को पाक सेना पर हमला करने का आदेश मिला. हमले से पहले भारतीय सैनिक वहां गड्ढा खोदकर बंकर बना चुके थे. सुरक्षा के दृष्टिकोण से सैनिक बंकर में शरण ले चुके थे. ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि हवाई मार्ग से नजर रखने दुश्मन की नजर भारतीय सैनिक बच सकें.

पाकिस्तानी सेना ने भारतीय फौज पर शुरू की गोलीबारी

तीन दिसंबर की रात लगभग ढाई बजे अलबर्ट एक्का ने अपने साथी जवानों के साथ रेलवे पटरी को पार किया. पाकिस्तानी सेना को इसकी भनक लगी. पटरी पार करते ही पाकिस्तानी सेना के संतरी ने थम कहा. भारतीय फौज हर हाल में आगे बढ़ना चाहती थी. भारतीय सैनिकों ने उस पाकिस्तानी संतरी की गोली मारी और उस इलाके में घुस गये. तब तक पाकिस्तानी सैनिक भी सतर्क हो चुके थे. पाकिस्तानी सेना ने भारतीय फौज पर गोलीबारी शुरू कर दी.

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टॉप टावर से पाकिस्तानी फौज मशीनगन से कर रहा था हमला

अलबर्ट एक्का आगे चल रहे थे. उन्होंने समझ लिया कि बगैर बंकर नष्ट किये पाकिस्तानी सैनिकों पर काबू नहीं पाया जा सकता था. उनके पास हैंड ग्रेनेड था, जिसे उन्होंने उस बंकर को लक्ष्य कर फेंक दिया और इससे पाकिस्तानी सेना का पूरा बंकर उड़ गया. वहां मौजूद अधिकांश पाकिस्तानी सैनिक मारे गये. कुछ को भारतीय फौन ने अपने काबू में कर लिया. फिर फौज आगे बढ़ी. भारतीय फौज का मनोबल ऊंचा था. उसने रेलवे के आउटर सिग्नल वाले इलाके को कब्जे में ले लिया. पाकिस्तान की फौज टॉप टावर पर मौजूद थी. वहां से उसने भारतीय जवानों पर अचानक मशीनगन से हमला कर दिया. कई भारतीय फौजी इस हमले में मारे गये. पाकिस्तानी सेना ऊपर से हमला कर रही थी, इसलिए भारतीय फौज को नुकसान ज्यादा हो रहा था. अनेक भारतीय सैनिक इस आक्रमण में शहीद हो गये.

पाकिस्तानी फौज पर गोलियां बरसा कर मशीनगन पर किया कब्जा

अपने साथियों को शहीद होते देख अलबर्ट एक्का ने मन बना लिया कि किसी तरह से टॉप टावर पर चढ़कर उस मशीनगन को अपने कब्जे में लेंगे, जिससे दुश्मन फायरिंग कर रहे थे. काम आसान नहीं था, जोखिम भरा था. लेकिन इसके सिवा अलबर्ट एक्का के पास कोई रास्ता भी नहीं था. टॉप टावर पर चढ़ने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती और इस दौरान दुश्मन गोलियों की बौछार करते. इस बात को अलबर्ट भी जानते थे. उन्होंने रणनीति बनायी. टावर की ओर दौड़े. पाकिस्तानी फौज ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी. गोलियां उन्हें लगती रहीं और वे टावर की और भागते रहे. फिर तेजी से टावर पर चढ़ गये. वहां पहुंच कर उन्होंने मशीनगन को कब्जे में लेकर उसे दुश्मन की ओर कर दिया. इस प्रयास में उनका पूरा शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था.

खुद शहीद होकर अन्य भारतीय जवान को शहीद होने से बचाया

मशीनगन पर कब्जा कर लेने से वहां पाकिस्तानी सेना पस्त हो गयी. कई पाकिस्तानी सैनिकों को उन्होंने मार डाला. वे बुरी तरह घायल थे, लेकिन इसके पूर्व वे अपना काम कर चुके थे. टावर भारतीय फौज के कब्जे में आ चुका था. घायल अलबर्ट एक्का टॉप टावर से गिर पड़े. तब तक अन्य भारतीय सैनिक भी वहां पहुंच चुके थे. मेजर डीएन दास ने उन्हें मोरफिन की सुई दी, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. अलबर्ट एक्का शहीद हो चुके थे, लेकिन शहीद होने के पहले उन्होंने अपना काम कर दिया था. अगर उन्होंने मशीनगन का मुंह बंद नहीं किया होता, तो न जाने कितने भारतीय जवान शहीद हो गये होते.

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गुमला के जारी गांव में जन्मे थे अलबर्ट एक्का

अलबर्ट एक्का का जन्म गुमला जिले के जारी गांव में 1942 में हुआ था. यह गांव आदिवासी बहुल है. इस इलाके से भारतीय सेना में अनेक युवक जाते रहे हैं. अलबर्ट एक्का के पिता जूलियस भी सेना में थे. उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिया था. सेना से जब वह रिटायर हुए थे, तब उनकी इच्छा थी कि उनका पुत्र अलबर्ट भी सेना में भर्ती हो. अलबर्ट ने प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सीसी पतराटोली से ली. मिडिल स्कूल की पढ़ाई भीखनपुर से की. गरीबी के कारण अलबर्ट एक्का बहुत ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सके और गांव में ही अपने पिता के साथ खेतीबारी का काम करने लगे. इसी दौरान उन्होंने दो वर्षों तक नौकरी की तलाश भी की, मगर इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली.

बचपन से सेना में जाने का था झुकाव

अलबर्ट का झुकाव भी सेना की ओर था. भले ही वह खेतों में काम करते थे, लेकिन शारीरिक रूप से चुस्त रहने के लिए वह दौड़ते भी थे. इसलिए जब भारतीय सेना में बहाली की उन्हें जानकारी मिली, तो उन्होंने अपना भाग्य अाजमाया. सेना में उनका चयन हो गया. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 20 साल की थी. 1968 में उनका विवाह बलमदीन एक्का से हो गया. अगले वर्ष 1969 में उन्हें एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने विसेंट एक्का रखा. 1971 के भारत-पाक युद्ध में जब अलबर्ट एक्का शहीद हुए, उस समय उनका बेटा सिर्फ दो साल का था. विसेंट भी अपने पिता की तरह सेना में जाना चाहते थे. उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. अब वे गांव में ही रहते हैं.

परमवीर चक्र अलबर्ट एक्का की स्मृति में डाक टिकट जारी

वर्ष 2000 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर शहीद अलबर्ट एक्का की स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया. जारी के इस सपूत के नाम पर रांची शहर के मध्य में अलबर्ट एक्का चौक है, जहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है (यह स्थान फिरायालाल चौक के नाम से भी जाना जाता है).

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परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के नाम से गुमला में स्टेडियम

आधुनिक गुमला जिले में अलबर्ट एक्का के गांव व ब्लॉक का नामकरण भी उनके नाम पर हुआ है. अलबर्ट की बहादुरी व देश के लिए बलिदान पर न सिर्फ सिर्फ रांची व गुमला, बल्कि पूरे झारखंड को नाज है. गुमला जिला का नाम रोशन करने वाले परमवीर अलबर्ट एक्का की स्मृति में गुमला जिला प्रशासन एवं आम जनता ने गुमला शहर के बीच में उनके नाम से एक स्टेडियम बनाया, जहां खेलकूद एवं अन्य कार्यक्रमों का आयोजन होता चला आ रहा है. चैनपुर प्रखंड मुख्यालय, डुमरी प्रखंड में शहीद अलबर्ट एक्का की कई भव्य प्रतिमाएं स्थापित है. चैनपुर कॉलेज का नाम इसी महानायक के नाम पर परमवीर अलबर्ट एक्का कॉलेज चैनपुर रखा गया है.

Posted By: Samir Ranjan.

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