World Indigenous Day 2022: विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर पारंपरिक वेशभूषा में नजर आये सैकड़ों महिला, पुरुष और बच्चे. इस दौरान ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप पर थिरकते दिखे. वहीं, आदिवासी समुदाय के लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में शोभायात्रा निकाली.
निकाली गयी शोभा यात्रा
केंद्रीय सरना समिति एवं अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की ओर से शोभा यात्रा निकाली गयी. यह शोभा यात्रा में राजधानी रांची के करमटोली के अलावा नगड़ा टोली, बोड़ेया लेम, नामकुम, कांके, हटिया, ओरमांझी और बरियातू से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग शरीक हुए. केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की के नेतृत्व में शोभायात्रा अलबर्ट एक्का चौक से मोरहाबादी मैदान स्थित बापू वाटिका तक गयी. इस दौरान बापू वाटिका के समक्ष पारंपरिक नृत्य संगीत का कार्यक्रम किया गया.
अपनी पारंपरिक कला-संस्कृति को प्रदर्शित करते आदिवासी समुदाय
इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष श्री तिर्की ने कहा कि नौ अगस्त को पूरे विश्व में आदिवासी अपनी परंपरा संस्कृति को प्रदर्शित करते हुए अपनी एकजुटता, अपनी पहचान और अपने अधिकार की आवाज को बुलंद करती है. इस मौके पर सरना कोड की मांग की गयी.
इस शोभायात्रा में थे ये शामिल
इस शोभायात्रा में केंद्रीय सरना समिति के महासचिव संजय तिर्की, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष सत्यनारायण लकड़ा, विमल कच्छप, बाना मुंडा, विनय उरांव, महिला शाखा अध्यक्ष नीरा टोप्पो, नगिया टोप्पो, मीरा टोप्पो, प्रमोद एक्का, सहाय तिर्की, सुखवारो उरांव, अमर तिर्की, ज्योत्सना भगत, गुड्डी तिर्की, सीमा तिर्की, सोनी तिर्की, पंचम तिर्की, भुवनेश्वर लोहरा, सुशील उरांव, किशन लोहरा एवं अन्य शामिल थे.
पश्चिमी सिंहभूम के नकटी में बना विश्व आदिवासी दिवस
पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत बंदगांव के नकटी बाजार परिसर में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया. इस मौके पर भगवान बिरसा मुंडा के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. मौके पर आदिवासी समाज के वरिष्ठ नेता सह समाजसेवी मांगता गागराई ने कहा कि हर साल नौ अगस्त को पूरी दुनिया में विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग विश्व आदिवासी दिवस मनाते हैं. इस दौरान अपनी सभ्यता और रीति-रिवाजों को उत्सव के रूप में मनाते हुए सामूहिक रूप से खुशियों का इजहार करते हैं.
आदिवासी समुदाय का है विशिष्ट झंडा
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक होते हैं. इन दिन खुशी के मौके पर प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीव-जंतु समेत नदी, नाले, पर्वत आदि सभी की पूजा करते हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय मानते हैं कि प्रकृति की हर एक वस्तु में जीवन होता है. आज के दिन आदिवासी समुदाय के लोग अपने खेत और घरों आदि पर एक विशिष्ट प्रकार का झंडा लगाते हैं, जिसमें सूरज, चांद, तारे आदि सभी प्रतीक विद्यमान होते हैं. ये झंडे सभी रंग के हो सकते हैं. किसी रंग-विशेष से बंधे हुए नहीं होते हैं.
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अपनी परंपरा और संस्कृति को जीवित रखने की अपील
उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा कि अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने का प्रयास करें. कहा कि हमें अपने आनेवाली पीढ़ी को आदिवासी संस्कृति की जानकारी देने के लिए इस तरह का कार्यक्रम आदिवासी बहुल क्षेत्रों में करने की जरूरत है. इस मौके सकारी बोदरा, वनमाली तांती, बलराम हेंब्रम, सामु हेंब्रम, बुद्धदेव गगराई, सौंगल गगराई, बीरसिंह बोदरा समेत काफी संख्या में आदिवासी समाज के लोग उपस्थित थे.
Posted By: Samir Ranjan.