Independence Day 2023: पूरा देश आज स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है, उत्तर प्रदेश में हर जगह आयोजन किए जा रहे हैं और देश आजादी के रणबांकुरों की शहादत को नमन कर रहा है. हालांकि देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को भले ही मिली हो. लेकिन, 1857 में 16 दिन के लिए कानपुर आजाद हुआ था.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कानपुर से क्रांतिकारियों ने अपने संघर्ष की दम पर अंग्रेजों को खदेड़ दिया था. 1 जुलाई 1857 से 16 जुलाई तक स्वतंत्र कानपुर की शासन सत्ता के सर्वोच्च अधिकारी नाना साहेब पेशवा थे. पूरे शहर में उनका शासन चलता था. इस आजादी के लिए अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी थी. आज देश की आजादी की 76वीं वर्षगांठ है, ऐसे में उन क्रांतिकारियों की जज्बे और उनकी शहादत को नमन करना भी जरूरी है.
कानपुर की आजादी के बाद नाना साहेब का शासन शहर में चलता था. 1 जुलाई 1857 को नाना ने घोषणा पत्र जारी किया. जिसमें अजीमुल्ला खां को कानपुर का कलेक्टर बनाया गया. इनके अलावा ज्वाला प्रसाद सहायक कलेक्टर और नाना के दूसरे भाई बाला साहब अर्थ विभाग के अधिकारी बने.
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बाला साहब का काम अफसर और कर्मचारियों को वेतन वितरण करना था. नाना साहेब के भाई बाबा भट्ट चतुर का सभी विभागों पर नियंत्रण रहता था. नाना साहेब सर्वोच्च न्यायाधीश थे. उसके बाद डिप्टी रामलला और फौजदारी न्यायालय के लिए बाबा भट्ट को नियुक्त किया गया. चोरों और अभियुक्तों को उनके सम्मुख पेश किया जाता था. उन्हें पेशवाई विधान एवं नियमों के अनुसार सजा दी गई, यह विधान कठोर अवस्था पर तत्कालिक परिस्थितियों में अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुआ.
कानपुर में नाना साहेब के 16 दिन के शासन के बाद जनरल हैवलक 16 जुलाई को कानपुर आ गया. उसने शत्रु शक्ति को समझने के लिए कुछ घुड़सवार सैनिक भेजें. दो सवारों को हैवलक के सामने पेश किया गया. वे दोनों बंगाल सेना के सिपाही थे. महत्वपूर्ण जानकारी लेकर सैन्य आक्रमण की योजना बनाई.
क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सेना के बीच हुए युद्ध के बाद 17 जुलाई 1857 को हैवलक ने कानपुर में फिर से कब्जा कर लिया. शेरर को कानपुर का कलेक्टर व मजिस्ट्रेट बनाया गया. अगले दिन 18 जुलाई को सेना ने नवाबगंज और जीटी रोड में मार्च करते हुए मिशन की इमारत पर कब्जा कर लिया. शहर में मार्शल लॉ घोषित किया गया. इस घटना के बाद नाना साहेब ने परिवार सहित बिठूर से पलायन कर लिया था.
डीएवी कॉलेज के इतिहास विभाग के डॉक्टर समर बहादुर सिंह बताते हैं कि 1857 में कानपुर को 16 दिन के लिए नाना साहेब ने आजाद करवाया था. अजीमुल्ला खां को कानपुर का कलेक्टर बनाया गया था. हालांकि 16 दिन बाद जनरल हैवलक ने दोबारा कब्जा कर लिया था. लेकिन, क्रांतिकारियों का जज्बा सलाम करने योग्य था. कानपुर पर हैवलक के कब्जे के बाद नाना साहेब ने परिवार संघ यहां से पलायन कर लिया था. यह सभी बातें इतिहास में दर्ज है.