तोरपा (खूंटी) : भगवान बिरसा को भगवान मान उनकी पूजा करनेवाले अनुयायी बिरसाइत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिरसा की जन्मस्थली उलिहातू आगमन को लेकर उत्साहित हैं. प्रखंड के रोन्हे भगत टोली में रहनेवाले बिरसाइत दीना भगत व भीमा भगत के अनुसार प्रधानमंत्री के आगमन की बात सुन वे सभी उत्साहित हैं. प्रधानमंत्री का बिरसा की जन्मस्थली पर आकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना उनके लिए गौरव की बात है. बिरसाइत दीना व भीमा भगत ने कहा कि संभावना है कि प्रधानमंत्री के खूंटी आगमन के दौरान कार्यक्रम में शामिल होने के मौका बिरसाइत को भी मिलेगा. यदि उनसे मिलने का मौका मिला, तो वे प्रधानमंत्री के समक्ष अपने मन की बात रखेंगे और समस्याओं से अवगत कराएंगे. उन्होंने बताया कि गांव के 16 बिरसाइत पीएम के कार्यक्रम में शामिल होंगे.
सुविधाविहीन है बिरसाइत का गांव
तोरपा प्रखंड के रोन्हे भगत टोली में बिरसाइत धर्म को माननेवाले नौ परिवार के 40 लोग रहते हैं. गांव में पानी व सड़क की सुविधा उपलब्ध नहीं है. गांव के लोग वहां स्थित एक कुएं का पानी पीने के उपयोग में लाते हैं. गांव तक जाने के लिए पगडंडी का सहारा लेना पड़ता है. ग्रामीणों के अनुसार गांव में सिर्फ तीन लोगों को ही सरकारी आवास मिला है. बिरसाइत धर्म के प्रचारक दीना पाहन के अनुसार आवास के लिए उन्होंने कई बार आवेदन दिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ. सामुदायिक भवन के लिए भी विधायक सहित अन्य को आवेदन दिया, लेकिन गंभीरता नहीं बरती गयी. आंगनबाड़ी केंद्र भी डेढ़ किमी दूर है. यहां रहनेवाले बिरसाइत खेतीबारी पर ही निर्भर हैं. इसके अलावा वे मजदूरी का भी काम करते हैं.
कौन हैं बिरसाइत
बिरसा के अनुयायी बिरसाइत धर्म को मानते हैं. ये सादा जीवन जीते हैं और शाकाहारी होते हैं. महिला व पुरुष सफेद वस्त्र पहनते हैं. पुरुष जनेऊ भी पहनते हैं. प्रत्येक गुरुवार को गांव के लोग सामूहिक रूप से भगवान बिरसा की पूजा-अर्चना करते हैं. इस दिन हल या कुदाल नहीं चलाते हैं. बिरसाइत हर दिन तिरंगा झंडा की पूजा करते हैं. प्रत्येक घरों में तिरंगा झंडा लगा हुआ है.
1940 में स्थापित गोलघर में करते हैं पूजा
रोन्हे स्थित भगत टोली में 1940 में एक गोल घर स्थापित किया गया. गोलघर में बिरसाइत बैठकी करते हैं व पूजा-अर्चना करते हैं. इसका निर्माण बिरसा मुंडा की फौज में शामिल रहे तुरी मुंडा ने कराया था. गोलघर के ऊपर कुल्हाड़ी लगाया गया है, जो रक्षा का प्रतीक है. ग्रामीण बताते हैं कि बड़ाय मुंडा द्वारा इस कुल्हाड़ी को गांव के लोहरा से बनवाया गया था. लोहार ने तीन दिन उपवास पर रहकर इसे बनाया था. गांव में मठ भी बना हुआ हैं.
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