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School Reopen: झारखंड में स्कूल खुलने से लौटी रौनक, कई स्कूलों में लटके हैं ताले, कई बच्चे भूल गये पढ़ाई

School Reopen: लातेहार जिले में 22 महीने बाद 1 से 12 वीं तक की कक्षाएं ऑफलाइन शुरू हुई हैं. एक सप्ताह हो गये, लेकिन महुआडांड़ के सूदूर क्षेत्र करमखाड़, माईल एवं ग्वालखाड़ विद्यालय बंद हैं. शिक्षक स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं.

School Reopen: कोरोना की तीसरी लहर कमजोर पड़ने के बाद झारखंड में 22 महीने के बाद स्कूल खुले हैं. लातेहार जिले के महुआडांड़ में ऑफलाइन पढ़ाई से स्कूलों में रौनक लौटने लगी है, लेकिन कई स्कूल अभी भी बंद हैं. शिक्षक स्कूल नहीं आ रहे हैं. स्कूल आ रहे एक से कक्षा पांच तक के अधिकतर बच्चे पढ़ाई-लिखाई भूल गए हैं. कई बच्चे परिवार के साथ पलायन भी कर गये हैं.

बंद है विद्यालय

लातेहार जिले में 22 महीने बाद 1 से 12 वीं तक की कक्षाएं ऑफलाइन शुरू हुई हैं. एक सप्ताह हो गये, लेकिन महुआडांड़ के सूदूर क्षेत्र करमखाड़, माईल एवं ग्वालखाड़ विद्यालय बंद हैं. शिक्षक स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं. खुले हुए सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या चिंताजनक है. रा.उ.विद्यालय रामपुर, राजडंडा टीमकीटाड़, डीपाटोली, अम्वाटोली, विश्रामापुर, शाहपुर गांव स्थित सरकारी स्कूलों में 50 प्रतिशत भी बच्चों की मौजूदगी नहीं है.

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परिवार साथ पलायन कर गए बच्चे

राजकीयकृत विद्यालय रामपुर में 109 बच्चे नामांकित हैं. स्कूल खुले हुए एक सप्ताह हो गये, लेकिन 50 बच्चे ही स्कूल आ रहे हैं. राजकीयकृत विद्यालय राजडंडा में कुल 109 बच्चे नामांकित हैं, लेकिन 48 बच्चे ही स्कूल आ रहे हैं. स्कूल की शिक्षका सुचिता ने बताया कि राजडंडा की हरिजन बस्ती से लगभग 25 बच्चे नामांकित हैं. कुछ स्कूल आ रहे हैं, लेकिन बाकी बच्चे अपने परिवार के साथ रोजगार के लिए पलायन कर गए. ये परिवार ईंट भट्टा में काम करने जाता है.

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मध्याह्न भोजन के लिए आते हैं बच्चे

राजकीयकृत विद्यालय टीमकीटाड़ में 61 बच्चे नामांकित हैं. केवल 30 बच्चे अब तक स्कूल पहुंचे हैं. स्कूल की पारा शिक्षिका सरिता कुमारी कहती हैं कि स्कूल में कुल तीन पारा शिक्षक के अलावा एक सरकारी शिक्षिका हैं. फिलहाल वे डेप्यूटेशन में दूसरे स्कूल में पढ़ा रही हैं. यहां आदिवासी एवं हरिजन बच्चे अध्यनरत हैं. करोना का असर इस गांव में नहीं पहुंचा, लेकिन इस महामारी ने बच्चों की पढ़ाई पर गहरा प्रभाव डाला है. स्कूल समिति के खाता में पैसे नहीं हैं, लेकिन बच्चों को मध्याह्न भोजन देने के निर्देश हैं. भोजन दिया भी जा रहा है. यह भी सच है कि अधिकतर बच्चे मध्याह्न भोजन के लिए आते हैं. पहली, दूसरी एवं तीसरी कक्षा के बच्चे पढ़ना-लिखना भी भूल गए हैं. इन बच्चों के पास मोबाइल नहीं है.

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क्या बोले बीइइओ

प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी राजकुमार रंजन ठाकुर ने कहा ग्वालखाड़ एवं माईल के शिक्षक कोविड के समय प्रखंड कार्यालय में आपदा प्रबंधन टीम में डेप्यूटेशन पर कार्य कर रहे हैं. बच्चों को विद्यालय लाना होगा, लेकिन अभी निर्देशानुसार अभिभावक से सहमति लेकर ही बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. बहुत बच्चों की आदत भी छूट गई है. धीरे-धीरे वह भी स्कूल पहुंचेंगे.

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रिपोर्ट: वसीम अख्तर

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