बेतला (लातेहार), संतोष कुमार : झारखंड का एकमात्र टाइगर रिजर्व पीटीआर इन दिनों प्राकृतिक आपदा की तो मार झेल ही रहा है. दूसरी ओर, शिकारियों और वन माफियाओं की सक्रियता भी काफी बढ़ गयी है. इतना ही नहीं, इन वन अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मियों की कमी की भी मार झेलनी पड़ रही है. पिछले साल पर्याप्त बारिश नहीं होने से जहां जंगल के जलाशय सूखे पड़े हैं, वहीं पानी और चारे की कमी हो गयी है.
पानी की खोज में रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे जानवर
जंगल के जानवर रिहायशी इलाके में पानी की खोज में भटकते हुए पहुंच रहे हैं, जहां पहले से मौजूद शिकारियों द्वारा उन्हें शिकार करने की प्रबल संभावना बनी हुई है. वहीं, अचानक से वन तस्कर भी सक्रिय हो गये हैं. जंगल को काटने वालों का गिरोह भी इन दिनों दोबारा सक्रिय हो गया है. हालांकि, विभागीय पदाधिकारियों का दावा है कि शिकारियों की धरपकड़ और तस्करों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है. बावजूद इसके वनकर्मी चकमा देकर अपने मंसूबे में कामयाब हो रहे हैं.
चेनसॉ मशीन का कर रहे उपयोग
सूचना मिल रही है कि जंगल के कीमती पेड़ों को काटने के लिए परंपरागत हथियार टांगी के अलावा चेनसॉ मशीन का भी प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. मोटर लगे इस मशीन के साथ तस्कर इन दिनों जंगल में घुस रहे हैं और मिनटों में पेड़ काटकर बाइक या साइकिल के जरिये गंतव्य तक लकड़ी को पहुंचा दिया जा रहा है.
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जलावन लकड़ी के बहाने काटते हैं हरे पेड़
पलामू टाइगर रिजर्व के करीब 200 गांव के अधिकांश लोगों को चूल्हा जलाने के लिए ईंधन के रूप में सूखी लकड़ियों की जरूरत होती है. हजारों की संख्या में जलावन लकड़ी लेने के लिए लोग जंगल में प्रवेश करते हैं. जंगल में सूखी लकड़ियां काटने के बहाने लोग हरे पेड़ को काट देते हैं और कुछ दिनों तक के लिए उन्हें जंगल में छोड़ देते हैं. बाद में दोबारा इन लकड़ियों को सूखी लकड़ियां बताकर जंगल से घर ले आते हैं. इस तरह से हर दिन कई पेड़ को काट लिया जाता है.
ट्रैकर गार्ड जंगल बचाने की बजाय करते हैं अन्य काम
पीटीआर के अलग-अलग वन प्रक्षेत्र में रेंजर, फॉरेस्टर, फॉरेस्ट गार्ड एवं ट्रैकर गार्डो की संख्या पर्याप्त नहीं है. मैनपावर कम होने के कारण ट्रैकर गार्डों को जंगली जानवर बचाने की बजाय उन्हें अन्य कामों में लगाया जाता है. अकेले बेतला में ही 72 से अधिक ट्रैकर गार्ड कार्यरत हैं. उनमें से आधा ट्रैकर गार्ड को बेतला नेशनल पार्क के कैंपस सहित अन्य कार्यों में लगाया गया है. इस कारण जंगल की सुरक्षा कुछ ट्रैकर गार्ड के ऊपर निर्भर है. उनमें भी कई बुजुर्ग हैं जो जंगल में पूरी ड्यूटी नहीं कर पाते हैं. इतना ही नहीं, ट्रैकर गार्ड को ससमय मजदूरी भुगतान नहीं होने से उनमें काम करने का उत्साह भी कम देखा जाता है.
चारा के लिए पीटीआर पर निर्भर है मवेशी
पलामू टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में करीब डेढ़ लाख से अधिक मवेशी है. इन मवेशियों को चराने के लिए अधिकांश को पीटीआर के जंगल में ही छोड़ दिया जाता है. इस कारण जंगली जानवरों के मिलने वाले भोजन को गांव के मवेशी खा जाते हैं. बारिश नहीं होने से चारा का अभाव हो गया है. इसलिए मवेशी चारा के लिए जंगल में प्रवेश कर रहे हैं.
शिकारी कुत्ते भी है सक्रिय
इन दिनों शिकारी कुत्ते भी सक्रिय हो गये हैं. चार-पांच की संख्या में कुत्ते जंगल में झुंड बनाकर घुस जाते हैं और देखते ही देखते हिरण सहित अन्य जंगली जानवरों को मार देते हैं. तीन दिन पहले बेतला पार्क गेट के समीप ही एक हिरण को कुत्तों ने मार गिराया था. गुरुवार को भी एक हिरण का कुत्तों ने शिकार कर लिया.जिन्हें वनकर्मियों ने बचाया, लेकिन बाद में उसकी मौत हो गयी.
वन अपराध पर अंकुश लगाने के लिए हो रही छापेमारी : कुमार आशुतोष
इस संबंध में पीटीआर के क्षेत्र निदेशक कुमार आशुतोष ने बताया कि जंगली जानवरों के चारा पानी की व्यवस्था में कोई कमी नहीं है. कई जगहों पर सोलर सिस्टम से पानी को तालाब तक पहुंचाया जा रहा है. जो संसाधन उपलब्ध है उसके मुताबिक जंगली जानवरों की सुरक्षा में विभाग पूरी तरह से सतर्क है. वन अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए लगातार छापेमारी अभियान चलायी जा रही है.