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झारखंड के इस सरकारी स्कूल में बेंच-डेस्क का घोर अभाव, 340 स्टूडेंट्स जमीन पर बैठकर पढ़ने को हैं मजबूर

प्राचार्य अनूप बड़ाईक ने बताया कि विद्यालय में करीब 35 बेंच-डेस्क हैं. इसमें नौवीं व दसवीं के बच्चों को बैठाया जाता है. कुछ दिन पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी ने विद्यालय का निरीक्षण किया था. उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी गयी थी.

चंदवा (लातेहार), सुमित कुमार: लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड का एक ऐसा विद्यालय, जहां आज भी बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. राज्य व केंद्र सरकार इन दिनों स्कूली बच्चों के समुचित विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. उनकी प्राथमिक शिक्षा के लिए कोई कमी नहीं छोड़ रही है. शिक्षा के अलावा सरकार मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति समेत बच्चों के स्वास्थ्य पर भी विशेष ध्यान दे रही है. स्वच्छता के लिए भी नये-नये कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं कई विद्यालयों में बालिकाओं के समुचित पोषण को लेकर सेनेटरी पेड बैंक भी खोले गये हैं. इन सब के बावजूद चंदवा प्रखंड की हुटाप पंचायत अंतर्गत उत्क्रमित उच्च विद्यालय हुटाप का हाल बेहाल है.

आवंटन का है अभाव

उत्क्रमित उच्च विद्यालय हुटाप में करीब 420 बच्चे नामांकित हैं. आश्चर्य की बात यह है कि इन 420 बच्चों के लिए पूरे विद्यालय में महज करीब 35 बेंच-डेस्क ही उपलब्ध हैं. वर्ग एक व दो के लिए टेबल मौजूद है. इसमें बच्चे नीचे बैठकर पढ़ाई करते हैं, पर वर्ग तीन से आठ तक करीब 340 बच्चे रोजाना जमीन पर बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं. प्रखंड के अन्य दूसरे विद्यालयों में सभी वर्ग के बच्चों के लिये बेंच-डेस्क उपलब्ध है. मजे की बात यह है कि विभाग के उच्च अधिकारियों को भी मामले की जानकारी है. बावजूद विद्यालय में यह स्थिति बनी है. इतना ही नहीं प्रखंड के दर्जनों विद्यालय में बेंच-डेस्क होने के बावजूद उन्हें इसके लिए आवंटन दिया गया है. कई विद्यालय यह आवंटन वापस भी कर रहे हैं. उउवि हुटाप में आवंटन नहीं मिलने से यहां बेंच-डेस्क की खरीद नहीं हो पा रही है.

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क्या कहते हैं प्राचार्य

इस संबंध में प्राचार्य अनूप बड़ाईक ने बताया कि पूरे विद्यालय में कुल करीब 35 बेंच-डेस्क ही हैं. इसमें नौवीं व दसवीं के बच्चों को बैठाया जाता है. कुछ दिन पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी ने भी विद्यालय का निरीक्षण किया था. उन्हें भी कमी बताई गयी थी. बावजूद इस पर कोई कार्य नहीं हुआ. डिमांड मांगी जाती है, पर आवंटन मिलता ही नहीं.

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