कुपोषण के कारण होता है डिलेड प्यूबर्टी

डॉ मीना सामंत प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना बच्चे जब बड़े होने लगते हैं, तो उनके शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं. यह आम तौर पर लड़कियों में 13 साल और लड़कों में 14 साल के बाद देखने को मिलता है. इसी अवस्था को प्यूबर्टी कहा जाता है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2014 12:14 PM
डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना
बच्चे जब बड़े होने लगते हैं, तो उनके शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं. यह आम तौर पर लड़कियों में 13 साल और लड़कों में 14 साल के बाद देखने को मिलता है. इसी अवस्था को प्यूबर्टी कहा जाता है.
प्यूबर्टी का मतलब है कि बच्चे अब सेक्सुअल मेच्योरिटी की ओर बढ़ना शुरू हो गये हैं. इस प्रक्रिया में शरीर में कई परिवर्तन होते हैं और यह कई चरणों में होती है. इससे बच्चों में मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक विकास भी होता है. इसमें लड़कियों के शरीर में कई परिवर्तन आते हैं, जैसे-ब्रेस्ट का विकास, प्यूबिक हेयर का विकास आदि. सभी शारीरिक परिवर्तन होने के बाद मेन्सुरेशन की शुरुआत होती है.
डिलेड प्यूबर्टी क्या है : जब प्यूबर्टी समय पर शुरू नहीं होती है, तो इस अवस्था को डिलेड प्यूबर्टी कहते हैं. लड़कियों में प्यूबर्टी का पहला लक्षण ब्रेस्ट का विकास होना ही है. यह ओवरी के एक्टिव होने और ओएस्ट्रोजेन हॉर्मोन के बनने के कारण होता है. यदि ब्रेस्ट का विकास 13 वर्ष तक शुरू नहीं होता है, तब इसे डिलेड प्यूबर्टी कहते हैं.
क्या हैं कारण
आमतौर पर इसके होने का प्रमुख कारण शारीरिक विकास का सामान्य से धीमा होना है. कभी-कभी यह किसी लंबी बीमारी, कुपोषण, अधिक व्यायाम और तनाव के कारण भी हो सकता है. डायबिटीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस आदि रोगों के कारण प्यूबर्टी के दौरान होनेवाला विकास बाधित होता है. इसके अलावा हाइपोथैलमस ग्लैंड और पिट्यूटरी ग्लैंड से हॉर्मोन का कम स्नव या ओवरी में समस्या के कारण भी यह स्थिति उत्पन्न होती है. असल में पिट्यूटरी ग्लैंड और हाइपोथैलमस ग्लैंड क्रमश: गोनेडोट्रॉफिन्स और उसे स्नवित करने में सहायक हॉर्मोन का स्राव करते हैं. इसी के कारण प्यूबर्टी में होनेवाले बदलाव होते हैं. कभी जेनेटिक गड़बड़ी के कारण यह हॉर्मोन का स्नव कम होता है या फिर ट्यूमर, दुर्घटना, सजर्री, रेडियोथेरेपी से भी यह प्रभावित होता है और डिलेड प्यूबर्टी का कारण बनता है. वहीं टर्नर सिंड्रोम के कारण ओवरी का विकास ठीक से नहीं होता है और ओएस्ट्रोजेन हॉर्मोन का निर्माण नहीं होता है.
जांच और उपचार
इसकी सही-सही जांच कर पाना थोड़ा कठिन है, क्योंकि यह कई कारणों से हो सकता है. इसके लिए रोगी की मेडिकल हिस्ट्री भी देखना जरूरी होता है ताकि किसी बीमारी, सजर्री आदि करायी हो, तो उसका पता चल सके. ब्लड टेस्ट भी करवाना पड़ सकता है. इससे हॉर्मोन की सही स्थिति का पता चलता है और यह भी पता चलता है कि यह कहीं हॉर्मोन डिसऑर्डर के कारण तो नहीं हो रहा है.
उपचार : उपचार कई बातों को ध्यान में रख कर किया जाता है. यदि शरीर का विकास धीमा है, तो प्यूबर्टी खुद ही शुरू होती है लेकिन इसमें थोड़ा समय लगता है. कुछ लोगों को इसके लिए डॉक्टर एनाबॉलिक स्टेरॉयड देते हैं जिससे विकास समय पर हो सके.
हॉर्मोनल ट्रीटमेंट मुख्य रूप से गोनाडोट्रॉफिक हॉर्मोन की कमी में दिया जाता है. यदि टर्नर सिंड्रोम से ओवरी का विकास नहीं हुआ है तब यह सेक्स स्टेरॉयड थेरेपी जीवन भर चलती है. इसके साइड इफेक्ट्सकम होते हैं. इससे कभी-कभी मासिक के दौरान ब्रेस्ट में तनाव या मूड में बदलाव जैसे परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं.

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