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वाराणसी के तुलसी घाट पर 49वें ध्रुपद मेले का आज अंतिम दिन, देश-विदेश से पहुंचे कलाकार देते हैं प्रस्तुति

काशी के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर 49वें ध्रुपद मेले का आज आखिरी दिन है. इस मेले की शुरुआत 15 फरवरी से हुई थी जो 18 फरवरी को देर रात समाप्त होगी. डिटेल जानें.

काशी के प्रसिद्ध तुलसी घाट पर 49वें ध्रुपद मेले का आज आखिरी दिन है. इस मेले की शुरुआत 15 फरवरी से हुई थी. जिसमें गंगा किनारे तुलसी घाट पर कलाकारों ने अपनी प्रस्तुती दी. मेले का शुभारंभ संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वम्भरनाथ मिश्र, पद्मश्री राजेश्वर आचार्य, पद्मश्री त्रत्विक सान्याल, महाराजा बनारस डॉ अनंत नारायण सिंह ने दीप जलाकर किया था. कार्यक्रम में कलाकारों की प्रस्तुती 7 बजे से 11 बजे तक चलती है. बात दें कि ध्रुपद मेले की शुरुाआत वर्ष 1975 में हुई थी. इस चार दिवसीय कार्यक्रम में देश-विदेश के परफॉर्मर और लोग आते हैं. यहां अपनी प्रस्तुति देने झारखंड, रांची से पंडित शैलैंद्र कुमार पाठक भी पहुंचे जो बिहार के प्रसिद्ध गया घराने के गायक हैं और ध्रुपद गायकी के उस्ताद हैं. इनकी प्रस्तुति 15 फरवरी को मेले के उद्घाटन सामारोह के अवसर पर था.

250 वर्ष पुराना है गया घराना है.

पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक आकाशवाणी, रांची दूरदर्शन से ध्रुपद गायक हैं. इन्हें 2017 में अंतरराष्ट्रीय कलाश्री सम्मान से नवाजा जा चुका है. 2022 में जम्मु से ध्रुपद मार्तंड पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी अमेटी दिल्ली से बेस्ट जज का अवार्ड दिया गया है. पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक बिहार के गया के रहने वाले हैं और गया घराने स्वर्गीय रामबृज पाठक से ताल्लुक रखते हैं. फिलहाल एसआर डीएवी में संगीत के शिक्षक है. उन्होंने बताया कि गया घराना करीब 250 वर्ष पुराना है.

प्रबंध गायकी है ध्रुपद गायन

उन्होंने बता;k कि ध्रुपद गायन की शुरुआत वृंदावन से हुई. तानसेन भी ध्रुपद गायक थे जो राजा मानसिंह तोमर के दराबर में थे. इसकी शैली भजन के जैसी होती है. इसमें संगत होता है. धमार ताल भी होता है कुल मिला कर इसे प्रबंध गायकी कहा जा सकता है. ध्रुपद गायन करने वालों को कलावंत कहा जाता था. इसकी शिक्षा लेने में कम से कम 10 साल लग जाते हैं. जिसमें लगातार अभ्यास के बाद कोई व्यक्ति ध्रुपद गायकी करने के योग्य बन सकता है. बता दें कि पंडित शैलेंद्र कुमार पाठक ध्रुपद उत्सव का भी आयोजन करते हैं ताकि ध्रुपद गायन का विस्तार हो सके और लोग इसके बारे में जानें.

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