यहाँ लाशों के जिंदा होने का किया जा रहा है इंतज़ार…

रूस और अमेरिका में कुछ कंपनियां शवों को इस उम्मीद में डीपफ्रीज कर संरक्षित रखती हैं कि विज्ञान कभी ऐसी खोज करेगा कि उन्हें जीवित किया जा सकेगा. इन कंपनियों के पास सैकड़ों शव रखे हुए हैं. यही नहीं, ये इन लोगों के परिजनों ने रखने को दिए हैं और वे इसका खर्च भी उठाते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2016 4:12 PM

रूस और अमेरिका में कुछ कंपनियां शवों को इस उम्मीद में डीपफ्रीज कर संरक्षित रखती हैं कि विज्ञान कभी ऐसी खोज करेगा कि उन्हें जीवित किया जा सकेगा. इन कंपनियों के पास सैकड़ों शव रखे हुए हैं. यही नहीं, ये इन लोगों के परिजनों ने रखने को दिए हैं और वे इसका खर्च भी उठाते हैं.

रूस की ऐसी ही एक कंपनी के पास 9 देशों के करीब एक दर्जन लोगों के शव हैं. इसकी मास्को के बाहरी हिस्से में प्रयोगशाला है जहां ये शव रखे गए हैं.

इस कंपनी के मालिक डैनिला मेदवदेव को यह उम्मीद नहीं है कि इनमें जीवन अपने आप आ जाएगा बल्कि उन्हें विज्ञान की प्रगति पर भरोसा है. यहां कुछ लोगों ने अपने परिजनों का पूरा शरीर रखवाया है तो कुछ ने अपने परिजनों के सिर्फ सिर रखवाए हैं. ऐसे लोग चाहते हैं कि उनके मृत परिजनों के दिमाग का उपयोग बाद में किया जाए. कुछ लोग अपने पालतू जानवर को बहुत प्यार करते हैं तो उन्होंने जानवर की मौत के बाद उसकी लाश ही यहां रखवा दी है.

दरअसल, इस कंपनी के मालिक डैनिला एक वैज्ञानिक के बेटे हैं वे एक बैंक में काम करते थे और एक ऐसी संस्था से जुड़े रहे हैं जो मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चलाती है. वे शुरू से ही आर्थर सी क्लार्क और रॉबर्ट हेनलेन की विज्ञान कथाएं पढ़ते रहे हैं. शवों में एक दिन जीवन आएगा, इस विषय के प्रति उन्हें जुनून की हद तक प्यार है. इस विषय पर अंग्रेजी में लिखे साहित्य का वे रूसी भाषा में अनुवाद करते रहे हैं. 2005 से ही वे इस विषय पर कई स्थानों पर व्याख्यान भी दे चुके हैं.

ऐसे रखते हैं शव को

जब किसी व्यक्ति को कानूनी तौर पर मृत घोषित कर दिया जाता है, उसके कुछ ही घंटे के अंदर उसके शरीर को यहां लाना पड़ता है. उस शरीर के खून को ऐसे रासायनिक पदार्थ से बदल दिया जाता है जो ऊतकों (टिशूज) को जमने नहीं दे. उसके बाद नाइट्रोजन गैस का उपयोग कर शरीर को 196 डिग्री तक ले जाया जाता है. फिर, परिजन जैसा चाहते हैं, उसके अनुसार पूरा शरीर या कोई अंग डीपफ्रीज कर दिया जाता है.

इसका इतिहास है

इसकी शुरुआत अमेरिका में 1961 के दशक में हुई. मिशिगन के एक प्रोफेसर रॉबर्ट इटिंगर की किताब द प्रॉस्पेक्ट ऑफ इममोर्टेलिटीमें तर्क दिया गया कि मृत्यु के थोड़ी देर बाद शव को डीपफ्रीज में रखा जाए तो भविष्य में उन्हें जीवित किया जा सकता है. वहां कुछ कंपनियां तब से ही सैकड़ों शव संजोए हुई हैं.

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