Astrology Rules For Marriage: शास्त्रों के अनुसार विवाह एक अति आवश्यक संस्था है जिससे समाज,जाति व विश्व का संचालन होता है. विवाह एक बहु आयामी संस्कार है. विवाह किसी जातक के जीवन में बहुत सी खुशियां भर देता है तो कहीं बहुत बड़ा दुख का कारण भी बन जाता है. ऐसा क्यों होता है ? इसका कारण यह है कि विवाह तय करने के दौरान जातक को जिस तरह की सावधानियां रखनी चाहिए उन्हें वह अनदेखा कर देता है या उनसे अनभिज्ञ है. वैवाहिक जीवन में सफलता के लिए कुंडली मिलान के साथ-साथ कुछ आवश्यक जानकारियां हमारे शास्त्र में दी गई हैं जिसका पालन जरूर करना चाहिए. ज्योतिष डॉ.एन.के.बेरा ने इसके बारे में डिटेल जानकारी हमारे साथ साझा किये हैं जानें…
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प्रथम गर्भोत्पन्न लड़के या लड़की का विवाह उसके जन्ममास, जन्म नक्षत्र और जन्म दिन को नहीं करना चाहिए.
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एक मंगलकार्य करने के बाद छः मास के भीतर दूसरा मंगलकार्य नहीं करना चाहिए.
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पुत्र का विवाह करने के बाद छः मास के भीतर पुत्री का विवाह नहीं करना चाहिए.
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एक गर्भ से उत्पन्न दो कन्याओं का विवाह यदि छः मास के भीतर हो तो तीन वर्ष के भीतर उनमें से एक पर संकट आता है.
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अपने पुत्र के साथ जिसकी पुत्री का विवाह हो, फिर उसके पुत्र के साथ अपनी पुत्री का विवाह नहीं करना चाहिए.
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दो सहोदरों का एक ही दिन विवाह या मुण्डन कर्म नहीं करना चाहिए.
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ज्येष्ठ लड़के तथा ज्येष्ठ लड़की का विवाह परस्पर नहीं करना चाहिये.
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ज्येष्ठमास में उत्पन्न संतान का विवाह ज्येष्ठमास में नहीं करना चाहिए.
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जन्म से सम वर्षों में स्त्री का तथा विषम वर्षों में पुरूष का विवाह शुभ होता है. इसके विपरीत होने से दोनों के लिए प्रतिकूल होता है.
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जिन व्यक्तियों की कुण्डली में अशुभ ग्रहों की दशाओं में विवाह सम्पन्न हो रहा हो तो विवाह से पूर्व अशुभ ग्रहों की शांति मंत्र जप और दान अवश्य करा देनी चाहिए.अन्यथा विवाह के बाद जीवन सुखमय नहीं रहता.
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जिन जातकों की कुंडली में दाम्पत्य सुख के ग्रह योग अच्छे न हो उन्हें विवाह लग्न मुहूर्त में ही विवाह संस्कार करना चाहिए.
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विवाह लग्न की शुद्धि सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए अति आवश्यक है.
मीन, वृश्चिक, कर्क ब्राह्मण वर्ण, मेष, सिंह, धनु क्षत्रिय वर्ण, मिथुन, तुला, कुंभ शुद्र वर्ण, कन्या, मकर और वृष वैश्य वर्ण है.
नोत्तमामुद्धहेतु कन्यां ब्राह्मणीं च विशेषतः ।
म्रियते हीनवर्णश्च ब्रह्मणा रक्षितो यदि ।।
उत्तम वर्ण की कन्या के साथ हीन वर्ण का पुरूष विवाह न करें. अन्यथा यदि ब्रह्मा जी रक्षा करें तो भी वर की मृत्यु हो जाती है.
विप्रवर्णे च या नारी शुद्रवर्णे च यः पतिः ।
ध्रुवं भवति वैधव्यं शुक्रस्व दुहिता यदि ।।
ब्राह्मण वर्ण की कन्या के साथ यदि शुद्र वर्ण के पुरूष का विवाह किया जाए तो वह चाहे इन्द्र की कन्या हो निश्चय ही विधवा हो जाती है.
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विवाह में ब्राह्मणों के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रियों को वर्ण दोष, वैश्यों को गणदोष और शुद्रों को योनिदोष विशेष रूप से विचार करके मिलान करना चाहिए. यदि यह अनुकूल न हो तो मिलान शुभ नहीं होता ऐसे विवाह की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
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यदि वर और कन्या एक ही नक्षत्र में उत्पन्न हुए हों तो नाड़ीदोष नहीं माना जाता है. अन्य नक्षत्र हो तो विवाह वर्जित है. वर और कन्या की जन्म राशि एक हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो अथवा जन्म नक्षत्र एक हो जन्म राशि भिन्न हो अथवा एक नक्षत्र में भी चरण भेद हो तो नाड़ी और गणदोष नहीं माना जाता है.
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वर-कन्या की एक नाड़ी हो तो आयु की हानि, सेवा में हानि होता है. आदि नाड़ी वर के लिए, मध्य नाड़ी कन्या के लिए और अन्त्य नाड़ी वर-कन्या दोनों के लिए हानि कारक होती है. अतः इसका त्याग करना चाहिए.
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विवाह के समय वर के लिए सूर्य बल, कन्या को गुरू बल और दोनों के लिए चन्द्र बल को अवश्य विचार करना चाहिए.
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विवाह के समय यदि वर की राशि से आठवें, चौथे या बारहवें सूर्य हो तो वर के लिए हानि कारक होता है.
डॉ. एन.के.बेरा, 9431114351
अध्यक्ष बांग्ला विभाग रांची विश्वविद्यालय,
झारखंड रत्न, ज्योतिष सम्राट,
ज्योतिष सिद्धांत एकाधिक स्वर्ण पदक प्राप्त