Baba Basukinath Mandir: भारत आस्था और मंदिरो का देश, यहाँ आपको हर राज्य अलग अलग आस्था के केंद्र बिंदु के रूप में आपको कई प्रसिद्ध मदिर मिलेंगे है जो पर्यटकों और भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करते है , भारत के हरियाली से हरे भरे राज्य झारखण्ड में भी कोई सारे प्रसिद्ध मंदिर अपने यहाँ आने वाले भक्तो को आकर्षित करते है. यहां आने वाले श्रद्धालु पहले शिव गंगा में आस्था की डुबकी लगाते है उसके बाद फौजदारी बाबा बासुकीनाथ पर जलार्पण करते है. बहुत कम लोगों को पता है कि शिव गंगा में भी एक शिवलिंग है जिसे पातालेश्वर नाथ महादेव कहा जाता है. लोग इसे पाताल शिवलिंग भी कहते हैं.
बाबा बैजनाथ के बाद सर्वाधिक महत्व बासुकीनाथ मंदिर का
देश के कोने-कोने से आने वाले शिव भक्त पहले देवघर स्थित बाबा बैजनाथ धाम पहुँचते हैं और भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करते हैं. हालाँकि, बाबा बैजनाथ के बाद अधिकांश श्रद्धालु बासुकीनाथ ही पहुँचते हैं. मान्यता भी है कि जब तक बासुकीनाथ के दर्शन न किए जाए तब तक बाबा बैजनाथ की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी. श्रद्धालु अपने साथ गंगाजल और दूध लेकर बासुकीनाथ पहुँचते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं. हिंदुओं में यह मान्यता है कि बाबा बैजनाथ में विराजमान भगवान शिव जहाँ दीवानी मुकदमों की सुनवाई करते हैं. वहीं बैजनाथ धाम से लगभग 45 किमी दूर स्थित बासुकीनाथ में विराजित भोलेनाथ श्रद्धालुओं की फौजदारी फ़रियाद सुनते हैं और उनका निराकरण करते हैं. बासुकीनाथ में भगवान शिव का स्वरूप नागेश का है. यही कारण है कि यहाँ भगवान शिव को दूध अर्पित करने वाले भक्तों को भगवान शिव का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त होता है.
जानें क्या है बाबा बासुकीनाथ धाम का इतिहास
बासुकीनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में बात करने तो कई सारे पौराणिक कथाएँ मिलती है उन्हीं में से दो के बारे में नीचे बताया गया है. समुद्र मंथन के दौरान मंदर पर्वत को मथनी और वसुकिनाग को रज्जू के रूप में व्यवहार किया गया था इस मंथन के बाद वासुकिनाग को नागनाथ के शरण में छोड़ दिया इस तरह से वासुकिनाथ के रूप में विख्यात हुए
दूसरी कथा इस प्रकार की इस सुंदर एवं रमणीय प्रदेश में वासु नाम का एक चरवाहा रहता है जो एक सदाचारी मनुष्य था. एक बार की बात है की उसकी एक गाय हर रोज अपनी दूध को कही निकाल आती थी इसके बारे में पता लगाने के लिए बासु नामक चरवाहा एक दिन अपनी गाय के पीछे पीछे गया और पाया की एक स्थान पर उसकी गाय अपनी दूध का त्याग कर रही है उसके बाद वह उस स्थान को साफ करने पर एक शिव लिंग को पाया, उसी रात उसे स्वप्न में भोले नाथ ने आदेश दिया उस शिव लिंग के स्थान पर एक मंदिर स्थापित करो और इस प्रकार वह मंदिर स्थापित कर के उसकी पूजा करने लगा.
पूजा से खुश होकर नागनाथ ने दर्शन दिया तथा कहा तुम्हीं से मैं इस युग में प्रथम पूजित हुआ इसलिए भक्तगण आज से मुझे बासुकीनाथ के नाम से जानेंगे और भक्तो की मनोकामना पूर्ण होगी. इस तरह से नागनाथ ज्योतिर्लिंग बासुकीनाथ कहलाए.कालांतर में उसी चरवाहे बासु बासु के नाम पर इस मंदिर के नाम पर बसुकिनाथ पड़ा. जिन्हे बाबा नागेश्वर और फौजदारी बाबा के नाम से भी जानते है.
बासुकीनाथ मंदिर और श्रावणी मेला
श्रावणी मेला जिसे कांवरिया मेला के नाम से भी जानते हैं यह श्रावण माह में लगभग सवा महीनों तक चलता है. इस दौरान बाबा बासुकीनाथ धाम का महत्त्व बढ़ जाता है. जुलाई अगस्त के महीनों में भारत के कई राज्यों से भारी संख्या में लोग दर्शन करने और जल चढाने जाते हैं. शिव भक्त सबसे पहले बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज, जो बासुकीनाथ से लगभग 135 किलोमीटर दूर है, वहाँ पहुंचते हैं और गंगा जल ले कर बाबा धाम की और पैदल आते है. जो भक्त बिना रुके सीधे बासुकीनाथ पहुंचते हैं उन्हें डाक बम कहते हैं और जो कई जगह रुकते हुए बाबा के धाम पहुँचते हैं उन्हें “बोल बम” कहते है.
क्यों खास है बासुकीनाथ मंदिर
बासुकीनाथ मंदिर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर से लगभग 42 किलोमीटर दूर है. यह मंदिर झारखंड के दुमका जिले के जरमुंडी गॉंव में यह मंदिर बना है. जो भक्तजन वैद्यनाथ मंदिर के दर्शन को आते है वह बासुकीनाथ मंदिर के दर्शन भी करते है. यह मंदिर शिवजी का मंदिर है. बासुकीनाथ मंदिर में शिवजी और माता पार्वती के मंदिर आमने-सामने है.