Bal Gangadhar Tilak Punyatithi: जिन्हें अंग्रेजों ने भारतीय अशांति का जनक कहा, जानें उनसे जुड़ी बातें

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें लोकमान्य तिलक भी कहा जाता है. वह उन नेताओं में से एक हैं जो भारत में स्वराज या स्व-शासन के लिए हमेशा खड़े हुए. महात्मा गांधी ने उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' भी कहा था.

By Shradha Chhetry | August 1, 2023 6:33 AM

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें लोकमान्य तिलक भी कहा जाता है, उन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने में अहम योगदान दिया और लोगों में देश प्रेम और आत्मनिर्भरता की भावना जागृत की. उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं और उनके व्यक्तित्व में समर्थन, साहस, और स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण की अनुभूति दिखती थी. केशव गंगाधर तिलक, अंग्रेजों द्वारा उन्हें ‘भारतीय अशांति के जनक’ कहा जाता था. वह उन नेताओं में से एक हैं जो भारत में स्वराज या स्व-शासन के लिए हमेशा खड़े हुए. महात्मा गांधी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ भी कहा था. उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी, जिसका अर्थ होता है “लोक के आदरणीय” या “जनप्रिय”. यह उपाधि उन्हें उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व और लोकों के बीच उनके उच्च सम्मान का प्रतीक बनाता है. उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरी) के चिखली गांव में हुआ था. जबकि, उनकी मृत्यु 1 अगस्त, 1920 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा. उनकी पुण्यतिथि पर आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बाते.  

उनकी पढ़ाई- लिखाई

बाल गंगाधर तिलक पढ़ाई में शुरू से ही काफी तेज थे. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रत्नागिरी के विद्यालय में पूरी की. इसके बाद पिता का रत्नागिरि से पुणे स्थानांतरण हुआ तो उनका दाखिला भी पुणे के एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल में करा दिया गया. 1877 में तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से संस्कृत और गणित विषय की डिग्री हासिल की. उसके बाद मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी पास किया पढ़ाई पूरी करने के बाद तिलक पुणे के एक निजी स्कूल में गणित और अंग्रेजी की शिक्षक बन गए. हालांकि स्कूल के अन्य शिक्षकों से मतभेद के बाद 1880 में उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया. तिलक अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे. स्कूलों में ब्रिटिश विद्यार्थियों की तुलना में भारतीय विद्यार्थियों के साथ हो रहे दोगले व्यवहार का वे विरोध करते थे.

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स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक उदार और समर्पित व्यक्ति थे. उनकी विचारधारा में स्वतंत्रता, सामर्थ्य, और एकता के लिए गहरा विश्वास था. उन्होंने जनता को अपने देशप्रेम और स्वाधीनता के प्रति प्रेरित किया और उनके समर्थन में लाखों लोग उनके पीछे खड़े हो गए. उन्होंने नारा दिया था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे. इसने भारतीय जनमानस में नई उर्जा भर दी थी. उनकी वाणी और विचारधारा ने जनता को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के लिए प्रोत्साहित किया. उनके आंदोलनकारी सोच और करिश्माई व्यक्तित्व ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया और उन्हें आज भी भारतीय इतिहास में एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है.

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स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान

बाल गंगाधर तिलक का स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान था. वे अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी रहे. तिलक ने एक मराठी और एक अंग्रेजी में दो अखबार ‘मराठा दर्पण और केसरी’ की शुरुआत की. इन दोनों ही अखबारों में तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई. इन अखबारों को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाने लगा था. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने संघर्षपूर्ण भाषणों से लोगों को प्रेरित किया और उनके देशभक्ति भाव से भरे व्यक्तित्व ने लोगों के दिलों में अपार सम्मान प्राप्त किया. उन्होंने स्वराज्य प्राप्त करने के लिए लोगों को सकारात्मक बदलाव के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने संघर्षपूर्ण दिनों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख पद पर रहकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 3 जुलाई, 1908 को क्रांतिकारियों के पक्ष में लिखने के लिये तिलक को गिरफ्तार कर लिया, और उन्हें 6 साल की सजा सुनाने के साथ ही 1000 रुपये का जुर्माना लगाया. जेल में रहने के दौरान ही तिलक ने 400 पन्नों की किताब गीता रहस्य लिखी थी.

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स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता

बाल गंगाधर तिलक स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता थे, जिनके व्यक्तित्व में समर्थन, साहस, और स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण की अनुभूति दिखती थी. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी विचारधारा और कार्यों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और उन्हें लोकमान्य के रूप में सम्मानित किया गया. उनके योगदान की स्मृति आज भी हमारे देश के लिए एक प्रेरणा स्रोत है. 1 अगस्त, 1920 को उन्होंने मुंबई में आखिरी सांस ली. ऐसे में उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत् शत् नमन.

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