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Holi से पहले क्यों किया जाता है Holika Dahan? क्या है इससे जुड़ी वैज्ञानिक व धार्मिक मान्यताएं

Happy Holi 2021, Holika Dahan, Scientific, Religious, Importance, Significance, History In Hindi, Story: हम सभी बड़ी होली से पहले छोटी होली का पर्व मनाते है. इस दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है, जिसमें पवित्र अग्नि जलाते हैं, यह रोशनी प्रहलाद की अच्छाई की जीत का प्रतीक है जिसमें उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका की बुराई जलकर समाप्त हो गई थी और भक्त प्रह्लाद की विजय हुई थी. पर क्या आप जानते है कि यह दिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी क्यों बहुत महत्वपूर्ण होता है....

By Contributor | March 28, 2021 7:28 AM
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Happy Holi 2021, Holika Dahan, Scientific, Religious, Importance, Significance, History In Hindi, Story: हम सभी बड़ी होली से पहले छोटी होली का पर्व मनाते है. इस दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है, जिसमें पवित्र अग्नि जलाते हैं, यह रोशनी प्रहलाद की अच्छाई की जीत का प्रतीक है जिसमें उसके पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका की बुराई जलकर समाप्त हो गई थी और भक्त प्रह्लाद की विजय हुई थी. पर क्या आप जानते है कि यह दिन वैज्ञानिक दृष्टि से भी क्यों बहुत महत्वपूर्ण होता है….

धार्मिक महत्व : बुराई पर अच्छाई का है प्रतिक

पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप जब अपने साधना के बल पर शक्ति हासिल कर लिया उसके बाद वह चाहने लगा कि हर कोई उसकी भगवान की तरह उसकी पूजा करें. पर उसके पुत्र प्रहलाद की आस्था भगवान विष्णु में थी. उसने अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप की पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करना जारी रखा. इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी पर हर बार भगवान विष्णु पर उसकी प्रबल आस्था ने उसे बचा लिया. इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई जिसमे वह प्रहलाद के साथ जलती आग पर बैठेगी.

उसने तपस्या के बल पर एक ऐसा कपड़ा प्राप्त किया था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंच सकता था. दूसरी ओर भक्त प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था. पर जैसे ही आग जली, प्रहलाद ने भगवान नारायण का जाप करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया. इसी तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई. यही कारण है होली का यह त्योहार होलिका दहन के नाम पर जाना जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.

वैज्ञानिक पहलू : वातावरण से बैक्टीरिया दूर करने के साथ कफ दोष को करता है दूर

होली शिशिर और बसंत ऋतु के बीच में मनाई जाती है. इस समय भारत में मौसम बहुत तेजी से बदलता है. दिन में हम गर्मी का अनुभव करते है तो रात में ठण्ड का. शिशिर ऋतु में ठंड के प्रभाव से शरीर में कफ की मात्रा अधिक हो जाती है जबकि वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं. इस तरह यह समय बीमारियों का समय होता है.

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक इस समय आग जलाने से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है. अतः होलिका दहन के मनाने से यह हमारे आस पास के वातावरण से बैक्टीरिया को दूर करता है.

इसके साथ ही अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने से शरीर में नई ऊर्जा आती है जो इस मौसम में हुए कफ दोष से निजात पाने में मदद करता है. दक्षिण भारत में होलिका दहन के बाद लोग होलिका की बुझी आग की राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे चंदन तथा हरी कोंपलों और आम के वृक्ष के बोर को मिलाकर उसका सेवन करते हैं. ये सारी क्रियाएं शरीर से रोगों को दूर करने में बहुत मददगार होते है.

Posted By: Sumit Kumar Verma

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