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कब कहलीं हम

बलभद्र की लंबी भोजपुरी कविता ‘कब कहलीं हम’ प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुई है. आपके लिए हम इसे यहां भी पब्लिश कर रहे हैं. आप भी इसका आनंद लें...

बलभद्र की लंबी भोजपुरी कविता ‘कब कहलीं हम’ प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुई है. आपके लिए हम इसे यहां भी पब्लिश कर रहे हैं. आप भी इसका आनंद लें…

कब कहलीं हम

कब कहलीं

कि हमरा खेत में जन आवे सुग्गा

जोन्हरी-जनेरा के बालियन में जन मारे चोंच

कब कहलीं कि ए गवरइया

धान के पाकल-झुकल बालियन प

फुदुक-फुदुक जन बइठ s

पंडुक, बकुला, नीलकंठ तू लोग

खेत के आरी – कगरी तक जन फटक s

नीलगाय रहर के खेत में जन सुस्ताय

कब कहलीं कि सियार सांझ होखते

जन करे हुआं – हुआं

खूब कइलीं त

खेत से घर ले

भरराह भरपेट बकबकइलीं

खेत में खाड़ कइलीं बिजूखा

अउरी नाहीं त एहनी के

दादी – अठराजी के लगा के गरिअवलीं भरहिंक

खेत में गड़लीं उटुंग मचान

हो – हल्ला कइलीं

अइसन भला हो सकेला

कि केहू खेत के आर धइले जाए

आ ओकरा गोड़ के भिरी से

नन्ही – नन्ही चिरई ना उड़े फुर से

आ ऊ अचकचा के हट ना जाए

एकाध डेग पाछा!

एह चिरइयन के उड़ल

जतना लउके, ना लउके

ओ से बेसी कतहीं सुनाई देला

धरती से लागल उड़ान के संगीत एगो, फुलुकदार

हम त कबो ना कहलीं कि

ए फुदुकजान!

ए कोमलपरान !

खेत में, आरी के जरी

गाय – गोरू के खुरहेठियन में

जन लुका, जन उड s फुर से

धान-पान के सीजन में

डोंड़वन से, चेरन से, घोंघन से

भेंट त पक्का जनिह

बाबा रहलें कि देखत जब रहलें

डोंड़वन के आर-मेड़ प बइठल- सुस्तात

गोड़ आपन धब – धब पीटे ऊ लागें

साइत – वाइत नाहीं, पक्का जानीं

कि रहल ई उनकर एगो आपन इशारा

कि हट जा भाई, हट जा

जाए द, छोड़ द राह

केकड़न प उनका के लाल-पियर होत

देखलीं कतने बार

कि ‘आर-मेड़ में छेद क देलन स ससुरा

बहे लागेला पानी’

बाकी नइखीं देखले कि ऊ ओहनी के ओरिया देवे के

ठनलें कब जिद !

ऊ त कहत रहलें कि ई सब बाड़न स त

जनिह कि खेत बा, खेती बा

जहंवा ई होलें स, जवना बधार में

कंचन बरसेला, कंचन उपजेला

गांव जइसे खाली होत जा रहल बा नवहन से

खेतो-बधार खाली होत जा रहल बा एह जिया-जन्तुअन से

हमनी के चहला, ना चहला के

कहंवा रह गइल बा कवनो माने-मतलब

कवना तरह के विकास के दौर में आ फंसलीं जा

कि सरसों के फूलन से डेराए लगली स तितली

कि जनेरा के बालियन से गायब होखे लागल दाना

केकर हवे ई सराप

कि हमनी के खेतन के

तोपले जा रहल बा बेहिसाब

मल्टीनेशनल घास

कब कहलीं हम

कि आव s, आव s, ए मल्टीनेशनल घास !

ए अमेरिकी खर-पतवार !

आव s , हमरा खेतन के तोप s , पसर s

पछाड़ s हमरा फसलन के

हमरा घासन के पछाड़ s

आव s आ हमरा मुलुक के छाती प जम s

जम s आ राज कर s

कब कहलीं हम !

कब कहलीं !

संपर्क : हिंदी विभाग, गिरिडीह कॉलेज, गिरिडीह – 815302, झारखंड, मो.-9801326311

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