Birsa Munda Jayanti 2024: बिरसा मुंडा की जयंती पर शत शत नमन, जानिए उनकी गौरव गाथा

Birsa Munda Jayanti 2024: 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन है. ये दिन झारखंड के लिए बेहद खास दिनों में एक माना जाता है. भगवान बिरसा मुंडा की गौरव गाथा युगों – युगों तक प्रेरणा देती रहेगी.

By Bimla Kumari | November 15, 2024 12:09 PM

Birsa Munda Jayanti 2024: 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन, झारखंड के लिए ऐतिहासिक दिन हैं. भगवान बिरसा मुंडा के पिता का नाम सुगना पूर्ति और माता का नाम करमी पूर्ति था. कम उम्र में ही बिरसा मुंडा की अंग्रेजों के खिलाफ जंग छिड़ गई थी, जिसे उन्होंने मरते दम तक कायम रखा था. बिरसा मुंडा और उनके समर्थकों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे. जल, जंगल, जमीन और स्वत्व की रक्षा के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया. आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले बिरसा ने उलगुलान क्रांति का आह्वान किया. भगवान बिरसा मुंडा की गौरव गाथा युगों – युगों तक प्रेरणा देती रहेगी.

भगवान बिरसा मुंडा पहला नाम


धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की वंशावली की बात करें तो, उलिहातू में उनका पांचवां पुश्त रह रहा है. बिरसा की वंशावली में सबसे पहला नाम लकरी मुंडा का नाम आता है. लकरी मुंडा के पुत्र हुए सुगना मुंडा और पसना मुंडा हुए. उसके बाद सुगना मुंडा के तीन पुत्र हुए, एक कोन्ता मुंडा, बिरसा भगवान और कानु मुंडा. कोन्ता और भगवान बिरसा के कोई पुत्र नहीं हुए और उनका वंश उनके भाई कानु मुंडा से चला. कानु के एक पुत्र हुए मोंगल मुंडा, जिनके दो पुत्र सुखराम मुंडा और बुधराम मुंडा. बुधराम के एक पुत्र हुए रवि मुंडा और उसके बाद उनका वंश वहीं खत्म हो गया. दूसरी ओर सुखराम मुंडा के चार पुत्र मोंगल मुंडा, जंगल सिंह मुंडा, कानु मुंडा और राम मुंडा. कानु मुंडा के दो पुत्र हैं, बिरसा मुंडा और नारायण मुंडा.

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  • भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था. बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा.
  • 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गई जमींदार प्रथा और राजस्व व्यवस्था के साथ जंगल जमीन की लड़ाई छेड़ दी. उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया. यह एक विद्रोह ही नही था बल्कि अस्मिता और संस्कृति को बचाने की लड़ाई भी थी.
  • बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार इसलिए उठाया क्योंकि आदिवासी दोनों तरफ से पिस गए थे. एक तरफ गरीबी थी तो दूसरी तरफ इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 जिसकी वजह से जंगल के दावेदार ही जंगल से बेदखल किए जा रहे थे. बिरसा ने इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तौर पर विरोध शुरु किया और छापेमार लड़ाई की.

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  • 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके 1895 में हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल के लिए डाल दिया.
  • बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है. भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है.
  • भगवान बिरसा मुंडा को 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. 9 जून 1900 को 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें कैद किया गया था. ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह हैजा से मर गए, हालांकि उन्होंने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए.

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