World Water Day : नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक करीब 40 फीसदी भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा. इस किल्लत का सामना सबसे ज्यादा दिल्ली, बेंगलूरु, चेन्नई और हैदराबाद के लोगों को करना पड़ेगा. रिपोर्ट के अनुसार, 2020 से ही पानी की यह परेशानी शुरू हो गयी है. आयोग के मुताबिक, देश के सामने पानी की दोहरी समस्या है- एक तरफ पानी की कमी है, दूसरी तरफ स्वच्छ जल की अनुपलब्धता है. वर्तमान समय में 1952 के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता एक-तिहाई रह गई है, जबकि आबादी 36 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ के करीब पहुंच गयी है.
हालात ये हो गये हैं कि हम लगातार भू-जल पर निर्भर होते जा रहे हैं, जिसके कारण भूमिगत जल प्रत्येक वर्ष औसतन एक फीट की दर से नीचे खिसक रहा है. इससे उत्तर भारत के ही करीब 15 करोड़ लोग भयंकर जल संकट से जूझ रहे हैं. भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के अध्ययन के अनुसार, उद्योग व ऊर्जा क्षेत्र में कुल भू-जल की मांग आज के करीब सात प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2025 तक 8.5 प्रतिशत हो जायेगी, जोकि वर्ष 2050 तक बढ़ कर करीब 10.1 प्रतिशत हो जायेगी.
-केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 91 जलाशयों में सिर्फ 20 फीसदी पानी ही बचा है. पश्चिम और दक्षिण भारत के जलाशयों में पानी पिछले 10 वर्षों के औसत से भी नीचे चला गया है.
-जलाशयों में पानी की कमी की वजह से देश का करीब 42 फीसदी हिस्सा सूखाग्रस्त है. नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि अनुमानतः दो लाख लोग हर साल स्वच्छ पानी उपलब्ध न हो पाने के कारण मरते हैं.
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में करीब 60 करोड़ लोग भयंकर जल संकट से गुजर रहे हैं. करीब दो लाख लोगों की मौत का कारण स्वच्छ जल का नहीं मिलना बताया गया है. इसके अलावा दूषित पानी के इस्तेमाल से होनेवाली बीमारियों से भी हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है.
-जल गुणवत्ता सूचकांक : 122 देशों के सूचकांक में 120वें स्थान पर है भारत
-जलसंकट के आधार पर: 189 देशों में भारत 13वें पायदान पर, स्थिति खतरनाक
-जल के दोहरे संकट से जूझ रहा देश, एक तरफ पानी की कमी, दूसरी तरफ स्वच्छ जल की अनुपलब्धता