जहां सारी दुनिया का जमावड़ा मिस्त्र के शर्म अल शेख में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में लगा हुआ है और हर दिन इसपर विमर्श चल रहा की कैसे कार्बन उत्सर्जन को कम कर जाए और इसके चलते गर्म हो रही दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग की गिरफ्त से छुटकारा दिलाया जाए वहीं ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट का कहना है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कार्बन का उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर बना रहा. इस वर्ष, सभी मानवीय गतिविधियों से 40.6 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का अनुमान है. इसमें गिरावट के कोई निशान नहीं हैं जबकि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में गिरावट लाना अनिवार्य है.
संयुक्त राष्ट्र की एमिशन्स गैप रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो में हुए सीओपी26 में सभी देशों द्वारा अपने नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (NDC) को और मजबूत करने का संकल्प व्यक्त किये जाने और राष्ट्रों द्वारा कुछ अपडेटेड जानकारी दिये जाने के बावजूद प्रगति के मोर्चे पर बुरी तरह नाकामी ही नजर आ रही है.
वहीं ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के अनुसार वर्ष 2022 में जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होने वाले कार्बन के उत्सर्जन में वर्ष 2021 के मुकाबले 1% की वृद्धि होने की संभावना है (36.6 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड). इसके साथ ही कुल उत्सर्जन का स्तर वर्ष 2019 के कोविड-19 महामारी से पहले के स्तरों के करीब पहुंच जाएगा.
एमिशन्स गैप रिपोर्ट बताती है कि इस साल पेश किये गये एनडीसी में सिर्फ 0.5 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों का ही जिक्र किया गया है जो वर्ष 2030 में अनुमानित वैश्विक उत्सर्जन के एक प्रतिशत से भी कम है. इस निहायत धीमी प्रगति ने दुनिया को पैरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्य यानी ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य से कहीं ज्यादा गर्मी बढ़ने के मुहाने की तरफ और भी अधिक धकेल दिया है.
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अगर इसी तरह से प्रदूषण का स्तर बरकरार रहा तो अगले 9 वर्षों के अंदर ग्लोबल वार्मिंग में डेढ़ डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा की बढ़ोत्तरी होने की संभावना 50% बढ़ जाएगी. प्रदूषण फैलाने वाले प्रमुख देशों में वर्ष 2022 की तस्वीर मिलाजुला रुख दिखाती है. जहां चीन में उत्सर्जन की दर में 0.9% और यूरोपीय यूनियन में 0.8% की गिरावट की संभावना है. वहीं, अमेरिका (1.50%), भारत (6%) तथा दुनिया के बाकी अन्य देशों में (कुल मिलाकर 1.7%) वृद्धि होने का अनुमान है.
एमिशन्स गैप रिपोर्ट के मुताबिक बिना शर्त वाले एनडीसी से इस सदी तक ग्लोबल वार्मिंगको 2.6 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के 66 प्रतिशत अवसर मिलते हैं. जहां तक बाहरी सहयोग पर निर्भर रहने वाले सशर्त एनडीसी की बात है तो उनसे यह आंकड़ा घटकर 2.4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा.
हालांकि पेरिस समझौते से दुनिया का हर देश ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए रजामंद है. बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने अपने नेटजीरो संबंधी लक्ष्य भी घोषित कर दिए हैं. दरअसल दुनिया के अनेक देश जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए तरह-तरह की प्रतिज्ञाएं ले रहे हैं मगर इसके बावजूद मौजूदा नीतियों के तहत प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन की तीव्रता पेरिस जलवायु समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिहाज से बहुत ज्यादा है.
गौरतलब है कि दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते भीषण सूखे, प्रलयंकारी बाढ़ और भयंकर तपिश के दुष्प्रभावों से जूझ रही है. साल 2022 में हीट वेव के मामले में करीब सवा सौ साल का रिकॉर्ड टूट गया.इसके बाद पाकिस्तान ने इतिहास की सबसे बड़ी विनाशक बाढ़ देखी और तकरीबन पूरा देश पानी में डूब गया.उसके बाद भारत में असम, राजस्थान के कुछ हिस्से और बेंगलुरू में बारिश के बाद बाढ़ आयी. अप्रत्याशित तपिश और बाढ़ से फसलों के बर्बाद होने के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त हो गये हैं. कुल मिलाकर दक्षिण एशिया में चरम घटनाओं की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है.
ज्ञात हो कि अनेक नेटजीरो लक्ष्य उतने महत्वाकांक्षी नहीं है जितने कि वे देखने में लगते हैं. कॉर्पोरेट क्लाइमेट रिस्पांसिबिलिटी मॉनिटर में 25 कंपनियां ऐसी हैं जिनके नेटजीरो संबंधी लक्ष्य जरूर हैं लेकिन इस दिशा में उनकी प्रगति की जो रफ्तार है उसको देखते हुए वे लक्ष्य का सिर्फ 40% हिस्सा ही हासिल कर सकेंगी.
हालाँकि दुनिया के सभी देश 2015 में क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए -इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर राज़ी होकर पेरिस समझौता कर चुके हैं. विभिन्न देश वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. मौजूदा प्रतिबद्धताओं से 2010 के स्तर की अपेक्षा 2030 तक उत्सर्जन में 10.6 प्रतिशत की वृद्धि होगी.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा मिस्र में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी27) से पहले जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 में प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का वैश्विक औसत 6.3 टन कार्बन डाई ऑक्साइड समतुल्य था इसमें यह भी कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पेरिस लक्ष्यों से अब भी बहुत पीछे है. साथ ही वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कोई विश्वसनीय मार्ग नहीं नजर आ रहा है.
अगर उत्सर्जन के मौजूदा स्तर बने रहे तो अगले नौ वर्षों के दौरान ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाने की आशंका 50% तक बढ़ जाएगी. नई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कुल 40.6 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा. ऐसा जीवाश्म ईंधन के कारण उत्पन्न होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के कारण हो रहा है, जिसके वर्ष 2022 के मुकाबले 1% बढ़ने का अनुमान है और यह 36.6 गीगा टन तक पहुंच जाएगा. यह वर्ष 2019 में कोविड-19 महामारी से पहले के स्तर से कुछ ज्यादा होगा. वर्ष 2022 में भूमि उपयोग में बदलाव, जैसे कि वनों के कटान से 3.9 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होने का अनुमान है.
कोयला और तेल से होने वाले उत्सर्जन की मात्रा वर्ष 2021 के स्तरों से अधिक होने का अनुमान है. उत्सर्जन में होने वाली कुल बढ़ोत्तरी में तेल सबसे बड़ा योगदान साबित हो रहा है. तेल से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि को अधिकतर कोविड-19 महामारी के कारण लागू प्रतिबंधों के बाद अंतरराष्ट्रीय विमानन के विलंबित प्रतिक्षेप के जरिए समझाया जा सकता है. ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50% संभावनाओं को जिंदा रखने के लिए शेष कार्बन बजट को घटाकर 380 गीगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड (अगर 9 साल बाद उत्सर्जन वर्ष 2022 के स्तर पर रहता है) और 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 1230 गीगा टन कार्बन डाई ऑक्साइड कर दिया गया है.
वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए अब हर साल कार्बन उत्सर्जन में 1.4 गीगा टन की गिरावट लाने की जरूरत होगी. इससे जाहिर होता है कि दुनिया को कितने बड़े पैमाने पर काम करना होगा. कार्बन को सोखने और उसे जमा करने का काम करने वाले महासागर और जमीन कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग आधा हिस्सा खुद में समाहित करने का सिलसिला जारी रखे हुए हैं. हालांकि वर्ष 2012 से 2021 के बीच जलवायु परिवर्तन की वजह से महासागरों और लैंड सिंक द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में क्रमशः 4% और 17% की अनुमानित गिरावट आई है. इस साल के कार्बन बजट से जाहिर होता है कि जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में दीर्घकालिक बढ़ोत्तरी की दर अब कम हो चुकी है. जहां 2000 के दशक के दौरान इसमें अधिकतम औसत वृद्धि 3% प्रतिवर्ष थी, वहीं पिछले दशक में यह घटकर करीब 0.5% प्रतिवर्ष हो गई.
लेकिन यह गिरावट मौजूदा जरूरत के मुकाबले काफी कम है. यह तथ्य ऐसे समय सामने आए हैं जब दुनिया भर के नेता मिस्र के शर्म अल शेख में हो रही COP 27 में जलवायु परिवर्तन के संकट पर विचार-विमर्श कर रहे हैं.इस साल हम वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में एक बार फिर वृद्धि देख रहे हैं.
लेखिका : डॉ. सीमा जावेद
पर्यावरणविद & जलवायु परिवर्तन & स्वच्छ ऊर्जा की कम्युनिकेशन एक्सपर्ट