केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय हाथियों का अवैध व्यापार रोकने के उद्देश्य से देश में बंधक (चिड़ियाघर, अभयारण्य, सर्कस आदि में रहने वाले) हाथियों का एक केंद्रीय आनुवंशिक ‘डेटाबेस’ तैयार कर रहा है. यह जानकारी अधिकारियों ने दी है. अधिकारियों ने कहा कि राज्यों को यह निर्देश जारी किये जाने की भी संभावना है कि यदि किसी हाथी की मौत जहर से नहीं हुई है, तो उसे जमीन में नहीं दफनाया जाए. हाथियों का उपयोग और उन्हें मानवीय तरीके से प्रबंधित करना भारत में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है.
देश में हाथी को बंधक बनाकर रखने का एक लंबा इतिहास रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद देश में बंधक हाथियों का अवैध कारोबार जारी है. एक अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय ने अब बंदी हाथियों का आनुवंशिक ‘डेटाबेस’ बनाने की शुरुआत की है. अधिकारी ने कहा कि इसमें प्रत्येक जानवर की तस्वीर के साथ आनुवंशिक डेटा उपलब्ध होगा और उनके अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक हाथी और उसके मालिक के रिकॉर्ड से यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि क्या किसी हाथी को अवैध रूप से बेचा गया या उसका अवैध व्यापार किया गया है.” हाथियों की संख्या के वैज्ञानिक आकलन के लिए मंत्रालय पहले ही जंगली हाथियों की ‘डीएनए प्रोफाइलिंग’ कर रहा है. इसके आंकड़े अगले साल मार्च में जारी होने की संभावना है. मामले में अधिकारी ने कहा कि दोनों ‘डेटाबेस’ से यह सुनिश्चित होगा कि जंगल से किसी हाथी को अवैध तरीके से नहीं पकड़ा जाए.
Also Read: Numerology: मूलांक 1 और 4 वालों का रिश्ता अद्भुत काम कर सकता है, एक-दूसरे की राय का सम्मान . . .बता दें कि 2002 में संशोधित वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के अनुसार, राज्य के वन विभागों के साथ पंजीकृत नहीं किए गए बंधक हाथियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. भारत में 26 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 2,675 बंधक हाथी हैं. उनमें से अधिकांश पूर्वोत्तर (41 प्रतिशत) और दक्षिणी (26 प्रतिशत) राज्यों में पाए जाते हैं. भारत में बड़ी संख्या में बंधक हाथी निजी स्वामित्व में हैं और उनमें से अधिकांश का उपयोग वाणिज्यिक या समारोह और अनुष्ठानों के लिए किया जाता है. अब तक राज्यों द्वारा हाथियों के स्वामित्व के कुल 1,251 प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं. (भाषा इनपुट)