Chanakya Niti: चाणक्य भारतीय इतिहास में महान राजनीतिज्ञ, विश्लेषक, और विचारक थे,चाणक्य नीति और अर्थशास्त्र उनके प्रमुख ग्रंथ हैं, जिनमें उन्होंने नीति, राजनीति, और जीवन के काफी उपदेश दिए, उनकी बुद्धिमत्ता और विचारशीलता आज भी महत्वपूर्ण हैं और उन्हें भारतीय राजनीति के प्रथम शिक्षक के रूप में आज भी याद किया जाता है,
चाणक्य महिलाओं के प्रति अपनी विशेष संवेदनशीलता के लिए प्रसिद्ध थे, चाणक्य नीति में महिलाओं की उपेक्षा नहीं, बल्कि उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को बताया गया है, उनके उपदेश आज भी महिलाओं के उत्थान और समाज में उनके स्थान को समर्थन देते हैं.
चाणक्य नीति मे महिलाओं के लिए ये रही कुछ महत्वपूर्ण बातें :-
1 स्त्रीणां द्विगुण अहारो लज्जा चापि चतुर्गुणा, साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृतः
अर्थ; चाणक्य कहते हैं कि महिलाओं की भूख पुरुषों की तुलना में दुगुनी होती है, उनकी लज्जा चार गुना, साहस छह गुना और कामेच्छा आठ गुना अधिक होती है, यह उद्धरण महिलाओं की विशेषताओं को गहराई से समझने का प्रयास है, जिसमें उनकी अद्वितीय शारीरिक और मानसिक क्षमता को रेखांकित किया गया है.
अर्थ: चाणक्य चेतावनी देते हैं कि बुरे व्यक्ति से दूर रहना चाहिए, चाहे वह कितना ही विद्वान क्यों न हो, यह उद्धरण इस बात पर जोर देता है कि बाहरी आभूषणों से सच्चाई नहीं बदलती, जैसे गहनों से सजा हुआ सर्प भी भयावह ही रहता है.
3 माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः, न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा
अर्थ: वह माता-पिता शत्रु के समान हैं जो अपने बच्चे को शिक्षा नहीं देते, बिना शिक्षा के व्यक्ति सभा में सम्मान नहीं पाता, जैसे हंसों के बीच बगुला नहीं फबता, चाणक्य यहा शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हैं और माता-पिता की जिम्मेदारी पर जोर देते हैं.
4 नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चातकसमः पिबा नास्ति भक्तसमं प्रेम नास्ति स्त्रीसमं विषम्
अर्थ: कुछ चीजें अपनी विशिष्टता के लिए जानी जाती हैं,जैसे बादल का पानी, चातक का प्यासा, भक्ति का प्रेम और महिलाओं का विष,यह उद्धरण समाज में महिलाओं की शक्ति और उनकी तीव्र भावनाओं को दर्शाता है.
5 कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
अर्थ: बुरा पुत्र कहीं भी पैदा हो सकता है, लेकिन बुरी माता नहीं होती, मातृत्व की महानता और उसकी स्थायी अच्छाई को यह उद्धरण स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है.
6 एका चाण्डालिनी चैव नारी त्रिषु संस्थिता,
या सज्जा न सज्जेत तस्मात्तस्या विषं दधाति
अर्थ : जैसे एक चाण्डालिनी स्त्री सभी स्थानों में रहती है, वैसे ही वह सजीव नहीं होती.इसलिए जब वह सजीव होने की कोशिश नहीं करती, तो वह अपनी हित के लिए कठोरता दिखाती है.
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7 या सा भार्या यथा बाला, यथा वृद्धा तथैव च
या ज्ञानस्था या सुरार्था, तस्या भार्या न संशयः
अर्थ : यहां चाणक्य नीति में बताया गया है कि स्त्री विभिन्न चरणों में अपने पति के साथ बराबर रहती है – जैसे एक बच्ची की तरह नवयुवति, एक वृद्ध महिला की तरह और ज्ञानी या धनाढ्य होने की स्थिति में, इसका अर्थ है कि पतिव्रता स्त्री का स्वभाव हमेशा स्थिर रहता है.
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8 या स्त्री सम्प्रसूता तेजस्वी पुत्रपौरुषाः
तस्या शीलं समाश्रित्य कर्तव्यो मनुष्यधर्मः
अर्थ: चाणक्य नीति में इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि जब एक स्त्री उत्तम पुत्रों के मात्र होने का श्रेय पाती है, तो उसे अपने आचरण और धर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए.
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9 एका चाण्डालिनी चैव नारी त्रिषु संस्थिता
या सज्जा न सज्जेत तस्मात्तस्या विषं दधाति
अर्थ : यहां चाणक्य नीति में कहा गया है कि स्त्री एक साप की तरह है, जिसे जहां भी रखा जाए, वह अपने हित को समझने पर ही आक्रामक हो सकती है, अर्थात्, स्त्री के स्वभाव में यह गुण हो सकता है कि वह जब अपने हित की रक्षा के लिए उठती है, तो वह कठोर भी हो सकती है.