आज रात साल का आखिरी चंद्रग्रहण, जानिए ग्रहण के बाद क्या करें और कई महत्त्वपूर्ण बातें
शरद पूर्णिमा की रात को आज खंडग्रास चन्द्रग्रहण लग रहा है जो रात 1 बजकर 6 मिनट पर शुरू होगा और रात के 2 बजकर 22 मिनट तक ग्रहण रहेगा.चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रग्रहण सम्बंधित कई महत्त्वपूर्ण बातें भी बताई गई हैं जिसे जानना भी जरूरी है.
स्वामी विमलेश, वास्तुशास्त्री
चन्द्रग्रहण के समय साधक उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत (5 से 10 ग्राम का स्पर्श करके ॐ नमो नारायणाय मंत्र का आठ हजार जप करता है और ग्रहणशुद्धि होने पर उस घी को पी ले ऐसा करने से वह मेधा, कवित्व शक्ति और वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है .
चन्द्रग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (09 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं मान्यता है कि ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुन्तुद नरक में वास करता है .
सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें. ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए किंतु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं .
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते . पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए.
ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए.
ग्रहण पूरा होने पर स्नान के बाद सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर अर्घ्य दे कर भोजन करना चाहिए .
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए. स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं.
ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए. ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है .
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है .
ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए . बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए और दंतधावन नहीं करना चाहिए.
ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं. ग्रहण के समय कोई भी शुभ और नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.
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