Chhath Puja 2022: दुनिया उगते सूर्य को सैल्यूट करती है लेकिन भारत के बिहार में उगते सूर्य के साथ ही ढलते सूर्य को भी उतना ही श्रद्धेय माना जाता है और यह सबकुछ दिखता है छठमहापर्व पर. बिहार झारखंड में लोगों के लिए बड़ी बात है सूरज का सूरज होना. उसका प्रकृति का आधार होना. हर साल दिवाली के छठे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बिहार-झारखंड समेत भारत के करोड़ों लोग अस्त होते सूरज के आगे नतमस्तक हो जाते हैं और अगले दिन सप्तमी तिथि को उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं. भारत के नस-नस में बसा यह त्योहार छठ पूजा कहलाता है. पूरी दुनिया में बजने वाले म्यूजिक की धुन उस समय कम पड़ जाती है जब बिहार, झारखंड, यूपी की महिलाएं, माताएं अपने बेटे-बेटियों के लिए छठी मैया के गीत एकजुट हो कर गाती हैं.
छठ पूजा माटी, भावना और आस्था से जुड़ा हुआ पर्व है. छठी मैइया को षष्ठी मैया के नाम से भी जाना जाता है. शिशु के जन्म के छठे दिन छठी पर भी इन्हीं माता की पूजा की जाती है. साथ ही नवरात्रि के छठवें दिन भी इनहीं माता की पूजा की जाती है. छठ पूजा सूर्यदेव की उपासना और छठी मैया की पूजा का दिन है इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है. यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा है. छठ पूजा पर एक ओर जहां पारंपरिक रूप से प्रसाद बनाया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सारे विधि-विधान भी पारंपरिक रूप से निभाये जाते हैं.
शास्त्रों की बात करें तो छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है.