Chhath Puja 2023: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज दूसरा दिन है. इस दिन खरना मनाया जाता है. इस दिन छठी मैया के लिए गुड़ की खीर का खास प्रसाद बनाया जाता है. इस प्रसाद को बिल्कुल साफ-सुथरे तरीके से तैयार किया जाता है क्योंकि इस पर्व में शुद्धता का विशेष महत्व होता है. नहाय खाय के साथ शुरु होने वाला यह चार दिवसीय व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है.
इस बार छठ महापर्व की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ हुई. आज 18 नवंबर को छठ पर्व का दूसरा दिन है. शाम में छठी मैया के लिए गुड़ की विशेष खीर तैयार की जाएगी. खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण. खरना के दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं. छठी मैया के लिए जो प्रसाद तैयार किया जाता है. वह खीर मिट्टी के चूल्हे और जलावन के रूप में आम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. प्रसाद तैयार होने के बाद सबसे पहले व्रती महिलाएं इसे ग्रहण करती हैं, उसके बाद इसे बांटा जाता है. फिर परिवार के अन्य सदस्य भी इसे ग्रहण करते हैं.
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खरना पर साफ-सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है.
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छठ पर्व के दौरान पूरे चार दिन प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना होता है.
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छठ के दौरान महिलाओं को चार दिन तक पलंग पर नहीं सोना होता है.
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खरना पूजा का प्रसाद ऐसे जगह पर बनाए जहां प्रतिदन का भोजन नहीं तैयार किया जाता हो.
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खरना का प्रसाद तैयार होने के बाद इसे छठी मैया को अर्पित किया जाता है.
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माता को खीर का प्रसाद अर्पित करने के बाद इसे व्रती पहले ग्रहण करें.
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व्रती को सूर्य को अर्घ्य दिए बिना कुछ खाना पीना नहीं चाहिए.
खरना के दिन गेहूं पिसवाया का काफी महत्व है. लोग सुबह से ही साफ-सुथरा गेहूं को मिल में ले जाते हैं. और वहां गेहूं पिसवाते हैं. इसे पिसवाकर इससे खरना की रोटी और अगले दिन के लिए महाप्रसाद ठेकुआ बनाया जाता है. गेंहू के साथ चावल भी पिसवाया जाता है. चावल के आटा से कसार का लड्डू बनाया जाता है.
खरना के दिन गुड़ से बने खीर का अलग ही महत्व है. खरना में गुड़ और चावल की खीर बनाकर भोग लगाया जाता है. लोग इसे रसिया भी कहते हैं. इस प्रसाद को बनाने में मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है. प्रसाद बनाने के बाद भगवन सूर्य की पूजा की जाती है, और सबसे पहले प्रसाद उन्हें अर्पित किया जाता है. इसके बाद व्रती महिलाएं इसे ग्रहण करती हैं. व्रती महिलाओं के ग्रहण करने के बाद प्रसाद लोगों में बांटा जाता है. व्रती गुड़ और खीर का प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती हैं.
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खरना के दिन छठव्रती गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करती है और 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता हैं. और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन होता है. इसके साथ ही हर व्रती अन्न-जल ग्रहण करती हैं.
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छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है, जो 19 नवंबर रविवार को है. सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा. इस दिन छठ पर्व की मुख्य पूजा की जाती है. इस दिन व्रती और उनके परिवार के लोग घाट पर जाते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. वहीं, अगले दिन यानी छठ पूजा के आखिरी दिन 20 नवंबर सोमवार को है. इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन सूर्योदय 06 बजकर 47 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद छठव्रती महिलाएं पारण करती हैं.