Chhath Puja: क्या आप जानते हैं सूर्यपुत्र कर्ण ने भी किया था छठ का महापर्व
Chhath Puja: छठ पर्व भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और कठिन व्रत है, जो सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है. इस पर्व के चार दिनों में नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, और उषा अर्घ्य की पूजा विधियां शामिल हैं, जो सभी के लिए आस्था और भक्ति का प्रतीक हैं.
Chhath Puja: छठ पर्व भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस पर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की उपासना की जाती है, जिससे सभी पाप समाप्त होते हैं और सच्चे मन से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है. छठ पर्व की महिमा को कौन नहीं जानता. यह पर्व सदियों से पूरे विश्वास और आस्था के साथ मनाया जा रहा है, और इसे राजा-महाराजा, साधु-संत, हर वर्ग के लोगों करते है बिना किसी भेदभाव के एक प्राचीन कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, महादानी महान कर्ण ने भी छठ व्रत किया था. कर्ण, जिन्हें सूर्यपुत्र के नाम से भी जाना जाता है, बिहार के अंग प्रदेश (वर्तमान भागलपुर) के राजा थे. कर्ण का जन्म सूर्यदेव के आशीर्वाद से हुआ था. कुंती ने सूर्य देवता की तपस्या कर एक शक्तिशाली पुत्र की कामना की थी, जो सूर्य देव की कृपा से पूरी हुई. लेकिन विवाह से पहले जन्मे इस पुत्र को कुंती ने लोक लाज के कारण नदी में बहा दिया.
सूर्य पुत्र कर्ण के पास कवच और कुंडल थे
कर्ण को सूर्य देव ने विशेष आशीर्वाद दिया था, उनके पास जन्म से ही कवच और कुंडल थे, जो उनकी सुरक्षा करते थे. सूर्य पुत्र होने के कारण कर्ण ने सूर्य की पूजा का महत्व समझते थे और प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. ऐसा कहा जाता है कि सूर्य देव के प्रति अटूट भक्ति के कारण कर्ण दानवीर बने, जो हर समय जरूरतमंदों को दान देने के लिए तत्पर रहते थे. छठ पर्व चार दिनों का अत्यंत कठिन व्रत होता है, जिसमें व्रती बिना अन्न और जल के उपवास रखते हैं. यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा का पर्व है. मान्यता है कि इस व्रत को महाभारत काल में द्रौपदी ने भी अपने परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि के लिए किया था. तब से छठ पर्व हर वर्ग और समुदाय के बीच विशेष महत्व रखता है. इस पर्व में सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा कर उनसे सुख, समृद्धि और आशीर्वाद की कामना की जाती है.
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छठ पर्व के चार दिन कौन कौन से है
पहला दिन नहाय-खाय का व्रत की शुरुआत पवित्र स्नान और घर की सफाई से होती है. इस दिन व्रती अरवा भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें खासतौर पर कद्दू-भात और चने की दाल होती है.
दूसरा दिन खरना का व्रतियों द्वारा पूरे दिन उपवास रखा जाता है. शाम को पूजा कर गुड़ और चावल से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इस प्रसाद को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
तीसरा दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य का व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और शाम को नदी या तालाब किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके बाद परिवार के लोग दीप जलाकर छठी मैया की पूजा करते हैं.
चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य का व्रत का समापन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाता है. इसके बाद व्रती पारण कर उपवास समाप्त करते हैं और सभी के बीच प्रसाद का वितरण करते हैं.
छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?
छठ पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा के लिए मनाया जाता है, जिसमें चार दिन की कठिन तपस्या शामिल होती है. पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है. इस व्रत से मनोकामनाएं पूरी होने और परिवार में सुख-समृद्धि आने की मान्यता है.
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का क्या महत्व है?
छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने अतीत का सम्मान किया जाता है, जबकि उगते सूर्य को अर्घ्य देकर भविष्य की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। यह परंपरा अतीत और वर्तमान दोनों के प्रति आस्था और संतुलन का प्रतीक.