Child Behavior: किशोर से युवावस्था में पहुंचने के दौरान बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास काफी तेज होता है. इस दौरान बच्चों की शारीरिक स्थित के साथ ही मानसिक स्थिति में भी कई तरह के बदलाव आते हैं. इस उम्र में वे घर से ज्यादा बाहर अपने दोस्तों की तलाश पर ध्यान देते हैं और अक्सर इसी समय कई गलत संगत या रास्ते में पड़ जाते हैं. ऐसे में अभिभावकों के लिए बच्चों को समझना और उन्हें सही रास्ते पर लाना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. बच्चों के किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक पहुंचने के बीच की उम्र को ‘एडोलेसेंट’ कहते हैं. इसे दो भागों में बांटा गया है, अर्ली एडोलेसेंट (10-15 वर्ष) यानी शुरुआती किशोरावस्था और लेट एडोलेसेंट (16-20 वर्ष) यानी उसके बाद की स्थिति.
इस उम्र में कई हार्मोनल बदलाव होते हैं. ब्रेन का विकास होने के साथ आनंद चरम पर होता है. हर स्थिति में बच्चा आनंद-मस्ती ढूंढता है, जबकि खतरों या जोखिम या परेशानी को समझने वाला ब्रेन का हिस्सा विकसित नहीं हो पाता. इसलिए बच्चे खतरे वाली चीजों से बेखबर होते हैं और उत्साह में अपना खुद का नुकसान कर बैठते हैं.
इस उम्र के बच्चे अपनी अपने सामाजिक पहचान को लेकर जागरूक हो जाते हैं. जैसे हर मुद्दे पर समाज और दोस्त क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे जैसी बातें उनके दिमाग में आती है. लुक्स को लेकर काफी अवेयर हो जाते हैं, जैसे बाल कैसे हैं, स्किन कैसी दिखती है, लंबाई और शारीरिक बनावट आदि. ब्रेन के डेवलपमेंट की बात करें तो उन्हें थ्रिल या रिस्क लेने में मजा आने लगा है. जैसे तेज गाड़ी चलाना, नए प्रयोग करना, जोखिम से भीड़ना लेकिन इन सब की वजह से आने वाली परेशानियों को वे नहीं समझते. कुल मिला कर खतरनाक रास्तों पर चलने लगते हैं लेकिन परेशानियों से अंजान होते हैं.
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एनर्ती भरपूर है और ब्रेन का विकास तेजी से होता है.
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खुद को परिवार में इंडिपेंडेंट दिखाने की कोशिश करते हैं.
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आसपास के माहौल के प्रति काफी उत्सुकता रहती है.
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आकर्षित करने वाली चीजों में दिलचस्पी लेने लगते हैं.
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समाज में आइडेंटिटी और वैल्यू को समझने का प्रयास करने लगते हैं.
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इस उम्र में बच्चों में जिद, झगड़ा करने की प्रवृति और परिवार के नियमों के विरुद्ध जाना आम है.
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स्क्रीन टाइम बढ़ना, नशा या अपोजिट जेंडर के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है.
अपने बच्चों के किशोरावस्था में पैरेंट्स माता-पिता या अभिभावक बन कर नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह व्यवहार करें. कोई बात अच्छी न लगे तो झिड़कने, डांटने या फटकारने के बजाय उन्हें सहज भाव से समझाने की कोशिश करें.
अपने बच्चे पर 24 घंटे निगरानी रखने की बजाय पैरेंट्स यह देखें कि वह कौन-कौन से और किस तरह के लोगों से मिलता है. उसके इंटरेस्ट पर ध्यान दें. किस तरह के बुक्स पढ़ रहा है और सबसे अहम इंटरनेट पर आपका बच्चा किस तरह के कंटेंट देखता है.
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अपने बच्चे के साथ खाने बैठें, इस दौरान टीवी-मोबाइल बंद रखें.
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एक-दूसरे की बात को ध्यान से सुनें, समझें.
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अपने अनुभव साझा करें. मुश्किल स्थिति से कैसे निकले ऐसे किस्से सुनाएं.
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जब आप अपनी बातें अपने बच्चे से शेयर करेंगे तो उन्हें भी लगेगा की अपनी बात शेयर करनी चाहिए.