हिंदी कहानी : चोर

ये स्वर्ग जाएँगे या नरक? बहुमत कहता है कि जवानी में मरे तो नरक और बुढ़ापे में मरे तो स्वर्ग. सवाल उठता है - बुढ़ापे में स्वर्ग क्यों? पुण्य किसी फ़ैक्ट्री में तो नहीं बनता. जवाब आता है - इतने पंडित, इतनी पूजा , इतना हवन और और इतने जाप मिलकर क्या जवानी के पाप काट नहीं देते होंगे.

By Mithilesh Jha | January 9, 2024 3:41 PM
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सेठ जी सच्चे वाले सेठ हैं, कई कारखाने हैं उनके. शहर के पॉश इलाके में एक तिमंज़िला इमारत में रिहाइश फ़रमाते हैं. सामने 60 फीट चौड़ी सड़क है जिसके एक तरफ़ गुलमोहर और दूसरी ओर अमलतास के पेड़ लगे हैं. पेड़ों के नाम पर ही कॉलोनियों के नाम भी हैं. दोनों ही कॉलनियों में शहर के भारी- भरकम लोग रहते हैं और माना जाता है कि सबके पास सब कुछ है, सारे सुख, सारे संताप, सारे पुण्य और सारे पाप! इन घरों में काम करने वाले नौकर अपनी प्राइवेट गोष्ठियों में अक्सर अपने मालिकान की चर्चा करते हैं और अपनी गाली-गलौज वाली मस्ती के बीच एक दूसरे से पूछते हैं – ये स्वर्ग जाएँगे या नरक? बहुमत कहता है कि जवानी में मरे तो नरक और बुढ़ापे में मरे तो स्वर्ग. सवाल उठता है – बुढ़ापे में स्वर्ग क्यों? पुण्य किसी फ़ैक्ट्री में तो नहीं बनता. जवाब आता है – इतने पंडित, इतनी पूजा , इतना हवन और और इतने जाप मिलकर क्या जवानी के पाप काट नहीं देते होंगे.” बहरहाल, अपने सेठ जी पर आते हैं जो गुलमोहर कॉलनी में रहते हैं और उनके घर का दरवाज़ा पूरब दिशा में खुलता है. अपने सेठ जी पाँच फ़ीट, सात इंच लम्बे साँवले अधेड़ और पाँच फ़ीट तीन इंच लम्बी खड़ी नाक वाली सुंदर सेठानी के पति हैं. यूँ तो उनकी सेठानी अब जवान नहीं रहीं, मगर उन्होंने अपनी जा चुकी जवानी को भारी दैनिक भत्ता देकर फिर से बहाल कर लिया है. वज़न कुछ ज़्यादा ज़रूर है मगर सेठ जी से मैच करता है. दोनों के बदन की चर्बी की मात्रा को आधार बनाया जाते तो उनकी आर्थिक औक़ात पचास करोड़ कुछ ऊपर बैठती है. यह मत पूछिएगा कि कैसे ? यह एक पेचीदा हिसाब है जिसे लगाने में वैदिक गणित से लेकर क्वांटम फ़िज़िक्स तक के सूत्र लगते हैं. मुझे बताने वाले ने कहा था कि इस फ़ॉर्म्युले का ज्ञान उसे लाल किताब के उस संस्करण से हुआ था जिसमें मंगल ग्रह पर तलाब बनाने की विधि लिखी है. अब उस संस्करण की एक ही प्रति बची है जो दयालबाग वाले हारमोनियम बाबा के पास है.

सेठ जी अपनी सात कम्पनियों में से चार के एमडी हैं और तीन पर दस्तावेज़ों के हिसाब से, सेठानी जी राज करती हैं. सेठ जी एक लोकतांत्रिक प्रधान मन्त्री की तरह अपनी सारी मनमानी अपने राष्ट्रपति तुल्य पिता उर्फ़ बड़े सेठ के उदार हस्ताक्षरों के साये में करते हैं. बड़े सेठ जी सारी कम्पनियों के चेयरमैन हैं और राष्ट्रपति की तरह अपने आवास में ही महदूद रहते हैं और आवास भी क्या ज़्यादातर तो अपने कमरे में ही, मगर कभी-कभी डाइनिंग टेबल पर या लाउंज में भी नज़र आ जाते हैं. उनके कई पुराने रोग हैं, जिनके नए-पुराने लक्षण आए दिन प्रकट होते रहते हैं और नए-नए डॉक्टर नयी-पुरानी कारों में बैठकर उन्हें देखने आते हैं . वे हर डॉक्टर को अपनी तकलीफ़ बेहद रोचक ढंग से सुनाते हैं ख़ूब समय लेकर और बीच-बीच में सामने पड़े काजू-बादाम और कॉफ़ी लेते रहने की गुज़ारिश भी करते रहते हैं. डॉक्टर को फ़ीस वे ख़ुद देते हैं एक बंद लिफ़ाफ़े में. राशि नियत से बहुत अधिक होती है और इसकी वजह भी लिखी होती है – मैंने आपका बहुत समय लिया, मेरी तुच्छ भेंट स्वीकार करें. कृपा बनी रहे” मोटी तुच्छ भेंट के बावजूद कोई भी डॉक्टर उनके घर दुबारा नहीं जाना चाहता. यही वजह है कि नए-नए डॉक्टर उस घर की कॉफ़ी पीते नज़र आते हैं. अपने सेठ जी को इस बात का गर्व भी बहुत है कि शहर के सारे बड़े डॉक्टर उनके घर आ चुके हैं और सबके मोबाइल नम्बर उनके पास हैं. गर्व तो उन्हें इस बात जा भी है कि उनके पिता एक शानदार मरीज़ हैं, जो शानदार इलाज की वजह से ग्रूप ऑफ़ कम्पनीज़ की चेयरमैनी सम्भाल रहे हैं, मगर सच तो यही कि यह डॉक्टरों के संयम की कृपा है कि बड़े सेठ जी अभी तक हस्ताक्षर करने के लायक बचे हैं.

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सेठ जी की अरसठ वर्षीया माता जी बड़े सेठ के बग़ल वाले कमरे में रहती हैं. दोनों कमरों के बीच एक भीतरी दरवाज़ा है. माता जी उसी दरवाज़े से सेठ जी के पास आती हैं. माता जी का कमरा दरअसल एक छोटा सा सुइट रूम है जिसमें सर्वसुविधा सम्पन्न बाथरूम के अलावा एक और छोटा-सा कमरा है जहाँ उनके अपने हाथों से पवित्र किए गए ठाकुर जी विराजते हैं. माताजी के जीवन में दो ही काम हैं. एक काम वे अपने लिए करती हैं और दूसरा अपने पति के लिए. पहला काम है सजल सफ़ाई और दूसरा निर्जल पूजा. नहीं समझे? दरअसल माता जी को गंदगी पसंद नहीं. गंदगी का ख़याल भी आ जाए तो अपने आस-पास की धुलाई शुरू कर देती हैं. अगर बीमार न हों तो उनके कमरे में दासों-दासियों का प्रवेश वर्जित है. सिर्फ़ बहू यानी अपनी सेठानी जी जा सकती हैं वो भी नीबू की महक वाले साबुन से हाथ-पाँव धोकर. साबुन का यह चुनाव भी माता जी का है. कहती हैं – कमरे में घुसने से पहले पता चल जाता है कि पवित्र होकर आई हो. महक को पासपोर्ट में बदलना एक अनोखा घरेलू आविष्कार है. अपने सेठ जी कभी-कभी हँसते हुए पूछते हैं – अम्मा, इसे आपके नाम पेटेंट करा लूँ क्या? सवाल सुनकर माता जी कहती हैं – जा, अपने बाप से पूछ ले.

अपने सेठ जी का एक नाम भी है, मगर वह काग़ज़ों में ही रह गया है. ताबड़तोड़ तरक़्क़ी ने उनका रुतबा इस तेजी से बुलंद किया कि दोस्त भी अब इसी उपनाम से बुलाते हैं, कुछ सहज भाव से, कुछ जल-भुन के और कुछ व्यंग्य से. सेठ जी ने इस उपनाम को मानद डॉक्टरेट की तरह धारण कर लिया है. किसी को फ़ोन करते हैं तो कहते हैं – मैं सेठ जी बोल रहा हूँ. वैसे तो सब ठीक ही चलता है मगर रॉंग नम्बर लग जाने पर कई बार फ़ज़ीहत में भी पड़ जाते हैं.आजकल फ़ोन तो ग़रीब लोगों के पास भी हो गए हैं नऽ सो लोग चिढ़कर कुछ सुना देते हैं. हो सकता है आपको मेरी बात पे एतराज़ हो लेकिन सच तो यही है कि ग़रीबी विनम्रता का पर्याय नहीं. वैसे तो सेठ जी बेहद भले हैं मगर कोई अनजान आदमी गाली दे दे तो भूल जाते हैं कि वे कहाँ हैं और आसपास कौन लोग हैं. जवाब में ऐसी गालियाँ सुनाते हैं कि सड़क छाप मवाली भी उनको अपना गुरु मान ले . वे अपनी गालियों के भीतर वो सब करने को तैयार हो जाते हैं जो बुरे से बुरे अपराधी भी दारू पीकर ही कर पाते हैं. वे अपनी इस क्षमता का इस्तेमाल अपने स्टाफ़ पर भी करते रहे हैं और वो भी बिना किसी जेंडर बायस के. शायद यही वजह है कि मोमिता दास के अलावा एक भी स्त्री उनके कॉर्प्रॉट किंगडम की सदस्य नहीं. साँवली, सुंदर और सुरीली आवाज़ वाली मोमिता दास उनकी पीए हैं और माँगी जाए तो सलाह भी ख़ूब देती हैं. उनकी सलाह सेठ जी को बहुत सूट करती है. शायद यही कारण है कि सेठ जी हर दो घंटे के बाद उनके साथ के साथ चाय पीते हैं. सेठ जी इसे ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन कहते हैं और अपनी सफलता का श्रेय इस सत्र के साथ उस मसाला चाय को भी देते हैं जो मोमिता जी की ज्ञात यूएसपी है.वे सुंदर ही नहीं सुजान भी हैं और बीस सालों के अनुभव के आधार पर ऐसी-ऐसी सलाहें देती हैं कि सेठ जी कृतज्ञता के आवेग में खड़े हो जाते हैं और परामर्शदात्री की हथेली को चूमकर ही बैठते हैं. मोमिता जी उन चुम्बनों को लिखावट की तरह पढ़ती हैं और कमरे से निकलते उसके भावार्थ को साबुन-पानी से धो डालती हैं. वे इस सफ़ाई को सफ़ाई अंजाम देती हैं कि बेचारे सेठ जी को आज तक इसकी भनक नहीं. वे घंटों मुग़ालते में रहते हैं कि उनके द्वार अर्पित कर-चुम्बन सही जगह पहुँच गए हैं. उनके व्यापार के विकास में उनके इस ऊर्जादायी मुग़ालते का बड़ा हाथ है.

सेठ जी बेहद धार्मिक व्यक्ति हैं. इतना अधिक धार्मिक कि एक साथ कई धर्मों को धारण करने योग्य मानते हैं. उनका मानना है कि हर धर्म एक पार्टी है और सबके साथ धंधे की गुंजाइश है. इसलिए उनका व्यापारिक-सामाजिक व्यवहार सर्व-धर्म-समभाव का घोषणा पत्र प्रतीत होता है. इस प्रतीति के पीछे क्या है यह कोई नहीं जानता. सेठानी और मोमिता जी भी उलझन मेँ रहती हैं क्योंकि वे एक के साथ कट्टर वैष्णव जीवन जीते हैं और दूसरे के साथ उदार शाक्त हो बैठते है. सेठ जी का यह धर्मांतरण लगभग दैनिक व्यवहार है और दोनों देवियों को उनका धार्मिक स्टेटस पता चल जाता है. जब वे घर से ऑफ़िस आते हैं तो तुलसी और चंदन की सुगंध फैलती रहती है मगर दफ़्तर से घर या तो गंधहीन लौटते हैं या मत्स्य और मदिरा की मीठी महक के साथ. सुपर सात्त्विक सेठानी जी को यह महक पसंद नहीं, मगर मदिर हुए सेठ जी का व्यवहार इतना अधिक पसंद कि वे शनेल,गुची, बरबेरी, प्राडा वग़ैरह की आँधी उठाकर उनकी शाक्त गंध को मंद कर लेती हैं और सुबह होते ही उनका वैष्णव संस्करण प्रकाशित करने लग जाती हैं. जो भी हो सेठ जी की धार्मिक उदारता अनन्य है. कहाँ मिलते हैं ऐसे आदमी आजकल जो सेठ भी हों और धार्मिक रूप से उदार भी. उनके धंधे में होली-दीवाली ही नहीं, रमज़ान-ईद और क्रिसमस-ईस्टर सबके लिए उचित स्थान है. वे अपने मैनेजर रॉबिन से हँसकर कहते हैं – हम सामान बेचते हैं और सामान का क्या धर्म? लोग इन्हें ख़रीदते हैं, ख़रीदार का क्या धर्म? हमें मुनाफ़ा होता है, मुनाफ़े का क्या धर्म? हर मौसम में सूट पहनने वाला रॉबिन हँसकर कहता है – इग्ज़ैक्ट्ली सर!

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सेठ जी भारतीय नागरिक हैं. भारत ने उन्हें जन्म, निवास और कर्मक्षेत्र ही नहीं अपने मन के मौसम भी दिए हैं. यहाँ के तीनों मौसमों ने मिलकर उन्हें रचा है. यह अलग बात है कि इनका वायुमंडल क़ुदरत वाले से थोड़ा अलग है. इसलिए मौसमों की टाइमिंग भी काफ़ी अलग है . इनके भीतर मई और जून में सर्दियाँ पड़ती हैं. इतनी ज़्यादा कि जोश तो जोश, होश तक ठिठुर जाता है. चाहते हैं, बिना नहाए-खाए बिस्तर के हवाले रहें. चेक तक साइन करने से घबराते हैं. सेल्स और इनकम टैक्स डिपार्ट्मेंट्स इन्हें क़ातिल मुआवज़ाख़ोर लगने लगते हैं और सारे फ़र्म्स बोझ. मस्त से मस्त बैलेन्स सीट भी दिखाओ तो उसे बिना देखे कहते हैं – “सब नक़ली है. सारे फ़र्म्स डूबने वाले हैं. सब ख़त्म हो जाएगा.” उनके आँसुओं से सेठानी जी का मारवाड़ी आँचल भीग जाता है और तब वे हारकर मोमिता जी के बंगाली आँचल को बुलावा भेजती हैं. दोनों मिलकर सेठ जी को धो-पोंछकर इस बात के लिए तैयार करती हैं कि माइंड वाले डॉक्टर से मिलने चला जाए. आप पूछ सकते हैं कि जब इतने सारे डॉक्टर इस घर में बुलाए जाते हैं तो माइंड वाले को क्यों नहीं कॉल किया जाता. दरअसल बात यह है कि माइंड तो सबके पास है और ख़राब भी बहुतों का हो रहा है मगर मुल्क में इसके चारागर कम हैं और जिस डॉक्टर की दवा से ये ठीक होते हैं वह एक तो बिज़ी है और दूसरा ज़रा अकड़ू क़िस्म का, कॉल पे जाता नहीं. हर साल की तरह इस साल भी यही हुआ. मई बीतते-बीतते सेठ जी पलँग-पकड़ हो गए और दोनों देवियाँ उन्हें लेकर माइंड वाले डॉक्टर के पास गयीं. डॉक्टर ने संजीदगी से दोनों की बातें सुनीं और हौले से कहा – लिथीयम बंद करेंगे तो यही होगा. कोई बात नहीं . फिर से शुरू करिए और एक महीना बाद मिलिए.” महीना बीतते-बीतते हर साल की भाँति इस साल भी वसंत आ चला. ६ सप्ताह में सेठ जी पलंग से सोफ़ा और सोफ़ा से कार तक पहुँच गए और जब एक बार दफ़्तर पहुँच गए तो मोमिता जी ने बेहद पर्सनल चाय पार्टी रखी – एक पॉट और दो कप. चाय पार्टी के ख़त्म होते ही, मोमिता जी ने गहरे दायित्व बोध से एक रिटर्न गिफ़्ट पेश किया, जिसे सेठ जी की हथेलियों ने उस भौंरे की तरह क़बूल किया जो ऋतु के पहले फूल के मकरंद की पहली खेप चखता है. सेठ जी को यह मकरंद बहुत सूट करता है और इसकी चार-पाँच डोज़ के बाद वे महसूस करते हैं कि सावन आ गया. इस साल भी बिलकुल यही हुआ. शायद पहले से बेहतर. बारिश की बूँदें बैंक अकाउंट्स में शून्यों की शक्ल में अंकों के अंक से जा लगीं. यह बारिश लम्बी खिंची, कोई नौ महीने. मगर एक दिन मोमिता जी ने महसूस किया कि सेठ जी के भीतर का मौसम बदल रहा है. नियम हिसाब से वसंत को टिकना था अभी मगर उनकी बातों में लू चलने लगी है. उन्होंने सोचा कि मसला सेठानी जी से डिस्क्स कर लें. अगर दुहरे सबूत मिल जाएँ तो सेठ जी पर इस बात के लिए दबाव बनाया जाए कि नए नुस्ख़े के लिए डॉक्टर के पास चलें. वैसे डॉक्टर से मिलने का समय तो कब का बीत चुका था. जब उनके भीतर-बाहर बारिश हो रही हो तो वे किसी की नहीं सुनते. मगर तपिश तो उन्हें और उनके बिज़्नेस दोनों को जला देगी. वे ऑफ़िस से सेठ जी के घर के लिए अकेली ही निकलीं, मगर रास्ते में सेठ जी मिल गए, अपनी फ़ेवरेट होंडा सिविक ड्राइव करते हुए. मोमिता को देखते ही गाड़ी रोकी और उसे कार में बिठाकर बोले – डिनर पे चलते हैं.” मोमिता जी ने टालना चाहा – आज छोड़ दीजिए. दिन भर आप ही के साथ ऑफ़िस में थी. घर पे बेटा मेरा इंतज़ार कर रहा होगा. कल तैयार होकर चलेंगे.” मगर सेठ जी दरवाज़ा खोलकर खड़े गए – मोमिता, कभी-कभी अपने लिए भी जी लिया कर. मेरा बहुत मन है कि आज तुझे डिनर पर के चलूँ, और सुनो तैयार क्या होना. तुम हर हाल में सुंदर लगती हो, अपने दिमाग़ की तरह चुस्त और स्मार्ट भी.

मोमिता जी के सामने कोई चारा न बचा. गाड़ी में बैठ तो गयीं मगर स्टीरियो पर “ रूप तेरा मस्ताना” सुनकर सतर्क हो गयीं. वे समझ गयीं कि महाशय हथेली के चुम्बन को कहीं और प्रत्यारोपित करना चाह रहे हैं. वे पर्स में हाथ डालकर कुछ ढूँढने लगीं. ऐसे वक़्त में उनकी उँगलियाँ एंडॉस्कोप हो जाती हैं. मगर कुछ हो तब तो बेचारा एंडॉस्कोप कुछ ढूँढ पाए. वे निराश हो गयीं. उन्हें अपनी इस चूक पर खीझ भी हुई कि सेठ जी तीन दिनों से पुरुष की तरह देख रहे और वे सेरेनेस ड्रॉप रखना भूल गयीं. सेठ जी गाने की धुन पे सीटियाँ बजाते हुए कार ड्राइव किए जा रहे थे. मोमिता जी समझ गयीं – राजेश खन्ना और शर्मिला को विजुअलाइज़ कर रहे होंगे. उनके होंठों पर वह रहस्यपूर्ण मुस्कुराहट आ गयी जो प्रबंधन-पटु मस्तिष्क का रूमानी कवच है . सबसे पहले बेटे को वाट्सऐप किया – हैव सम मिल्क, विल ज्वाइन फ़ॉर डिनर बाई टेन पीएम.” संदेश पहुँचते ही नीली वाली टिक दिखाई पड़ी और वे मुस्कुरा पड़ीं – समर जी, दोस्तों के साथ साइबर चौपाल में मस्त हैं. तभी समर का जवाब आया – ओके मॉम. मोमिता जी ने बेटे को स्माइली भेजी और अगला संदेश भेजने के लिए नाम सर्च करने लगीं,मगर तभी गाड़ी रुकी . वे होटेल प्राइड डिलक्स पहुँच चुके थे. सेठ जी ने चाबी वॉलेट पार्किंग वाले नेपाली को पकड़ाई और मोमिता जी की तरफ़ मुड़कर बोले – चलो, तुझे प्रॉन खिलते हैं. लिफ़्ट के एकांत में मोमिता जी ने ग़ौर किया कि सेठ जी की उँगलियों से एक सुंदर सा ब्लैक पेपर बैग लटका है और उस पर लिखा है – तनिश्क़. उन्हें ज़ोरों की हँसी रही थी मगर उनके भीतर के संयम-धर्मी स्थायी भाव ने इस संचारी भाव को झटक दिया. .. अब वे थाई रेस्तराँ के प्राइवेट डाइनिंग सूट में बैठे थे. स्टार्टर और वाइन का ऑर्डर देकर सेठ जी ने बैग से एक लाल रंग का बॉक्स निकाला और खड़े हो गए और मोमिता जी के अस्तित्व पर अपनी आँखों से चाँदनी बरसाते हुए बोले – मेरी हर जीत तुम्हारी है मोमिता. मैं तुझे सब कुछ देना चाहता हूँ. कब से चाहता हूँ कि अपनी एक कम्पनी तुम्हारे नाम कर दूँ, और तुम हो कि मेरी हर विश ठुकरा देती है. मगर आज, आज इनकार मत करना. अपनी मसलिन जैसी नरम हथेलियों पर पहले मेरा क़ीमती चुम्बन और फिर यह मामूली तोहफ़ा क़बूल करो.” मोमिता जी के सामने कोई चारा न था. हथेलियों पर पटापट आ चिपके चार-पाँच चुम्बन को तो सेठ जी की हालत पर उमड़ती करुणा ने धो दिया मगर तनिश्क़ का यह बॉक्स? सेठ जी का इसरार जारी था. मोमिता जी ने बॉक्स खोला और उनकी आँखें चौंधिया गयीं.सेठ जी पूछ रहे थे – पसंद आया ? मोमिता जी ने हँसकर कहा – यह सेठानी जी पर अधिक सूट…! सेठ जी ने बात काटी -उसके लिए भी ख़रीदा है और अम्मा के लिए भी. सोच रहा हूँ इस बारे सारे स्टाफ़्स को बोनस में एक-एक चेन दूँ. ये देखो सैम्पल. तुम अप्रूव कर दो तो … मोमिता जी ने मन ही मन हिसाब लगाया – हीरे के तीन हार यानी कम से कम १५ लाख और यह लॉकेट वाला यह चेन कम से कम सत्तर हज़ार का. अगर दो सौ स्टाफ़ को दिया जाए तो लगभग डेढ़ करोड़. मतलब दो घंटे में डेढ़-दो करोड़ की विदाई का इंतज़ाम , यानी लू रेतीली आंधियों में बदल चुकी है . उन्होंने सेठ जी को यूँ देखा जैसे कोई माँ अपने बिगड़ैल बच्चे को देखती है और उठ खड़ी हुईं – वाशरूम से आती हूँ. जब वे वाशरूम से लौटीं तो देखा कि सेठ जी टेबल पर पड़े अपने फोन पर झुके हैं और फ़ोन के स्क्रीन पर बड़े सेठ जी कराह रहे हैं. इन्हें देखते ही सेठ जी फफक पड़े – मोमिता बाबूजी को पिछले एक घंटे से कुछ दिखाई नहीं दे रहा. चलो, घर चलते हैं. वे चलने को हुए कि बेयरा रेड वाइन की बॉटल और दो ग्लास लिए नमूदार हुआ. सेठ जी ने हज़ार के पाँच नोट उसकी ट्रे में रखते हुए कहा – जाओ तुम पी लेना इसे.

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अगले दिन मोमिता जी ऑफ़िस के बदले सेठानी जी के दरबार में पहुँचीं. वे बेहद साधारण कपड़े पहने थीं, पर्स भी घिसा बेरंग. पहुँचते ही बोलीं – अकेले में बात करनी है.” सेठानी जी समझ तो रही थीं, मगर जानना ज़रूरी था कि हुआ क्या? एकांत हासिल होते ही मोमिता जी ने पर्स से एक बॉक्स निकाला जो गंदे कपड़े में लिपटा था. उन्होंने गंदा कपड़ा हटाकर बॉक्स खोला और कहा – सेठ जी ने कल शाम मुझे दिया था.” सेठानी जी ने मुस्कुरा कर कहा – रख लो. हर साल तो लौटा ही जाती हो, इस बार रख लो.” मोमिता जी ने हाथ जोड़ लिए – दीदी, आप लोगों का प्यार और भरोसा ही बहुत है. सोचकर डर जाती हूँ कि उनके जाने के बाद क्या होता. ईश्वर ने सुख तो छीना मगर मुआवज़े में एक परिवार दे दिया. आप जैसी बहन और सेठ जी जैसे …..जीजा … आख़िरी शब्द के ख़त्म होते-होते दोनों एक साथ हँस पड़ीं. सेठानी जी ने मोमिता की हथेलियाँ फैला दीं. मोमिता जी ने टोका – क्या कर रहीं दीदी? सेठानी जी ने शरारत से उनकी आँखों में झाँकते हुए कहा – तुम्हारे जीजा के चुम्बनों के निशान ढूँढ रही हूँ.” मोमिता जी ने बिना पलक झपकाए कहा – दीदी, हाथ धो के आयी हूँ, फिर भी कुछ बचे हों तो चुन लीजिए आप. आप ही के हैं सब.” वाक्य के ख़त्म होते-होते सेठानी जी ने उन्हें बाहों में भींच लिया – धत पगली, मैं तो छेड़ रही थी और तुम इमोशनल हो गयी . तुम्हारे बग़ैर सेठ जी सम्भालना को आसान था क्या? इस घर का सारा ऐश्वर्य पिछले २० सालों की देन है. तुम नहीं होती तो पता नहीं क्या होता. उफ़ किस ख़ानदान में आ गयी थी मैं! घर में तीन लोग और तीनों मरीज़. बाप को बीमार दिखने की बीमारी, माँ को सब कुछ धो डालने की और ये तो…….. कभी आकाश और कभी पाताल…… सच बताऊँ, मुझे लगने लगा था कि कहीं मैं ही न आत्महत्या कर लूँ… नहीं भूल सकती वह दिन जब तुम पहली बार घर आयी थी और इनके दिए हुए जड़ाऊ कंगन लौटाए थे. सच कहती हूँ मोमिता, तुम्हारी जगह मैं होती तो जाने क्या कुछ खा और खो चुकी होती. दस सालों से तो रंजन भी नहीं है तुम्हारे साथ. क्या उमर थी तुम्हारी जब वह तुझे छोड़कर रूबी के साथ दुबई भागा था…… पैंतीस साल, कोई उम्र होती है यह. मगर तुम अपने बेटे की माँ और मेरी बहन बनकर अपना जीवन काट रही हो. तुम्हारे किए के क़र्ज़ से कभी नहीं उबर…. मोमिता जी अव्यक्त के व्यक्त होने से असहज हो गयीं, गीले स्वर में बोलीं – मैं तो सिर्फ़ माँ हूँ दीदी, बहन का दर्जा तो आपने दिया.” सेठानी जी ने माहौल को सहज करने के लिए बात बदली – तुमने बाबूजी का समाचार नहीं पूछा.” मोमिता जी ने हँसकर कहा – मैं समझ गयी थी कि आपने मुझे बचाने के लिए बाबूजी को बीमार बना दिया.”

⁃ अरे नहीं मोमिता, तुम्हारे फ़ोन के बाद चिंतित हो गयी थी. कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या ड्रामा रचूँ. हारकर बाबूजी के पास गयी और उन्होंने कहा – बदमाश को फ़ोन लगा, विडीओ वाला और फ़ोन मेरे चेहरे के सामने रख. .. ग़ज़ब ऐक्टर हैं वो भी. उनकी नौटंकी से कुढ़ी रहती थी मैं, मगर कल समझ में आया कि दुनिया में कुछ भी रबिश नहीं.”

अचानक मोमिता जी ने घड़ी देखी और हुए कहा – दीदी, हैलोपेरिडॉल लिक्विड बची है क्या? दे दीजिए, चाय में मिलाकर देना शुरू कर दूँगी और कल डॉक्टर साहब के यहाँ के चलेंगे.” ‘सेठानी जी की आँखें भर आयीं – कुछ भी हो जाए ड्यूटी नहीं भूलती मोमिता!’ पिघलकर बोलीं – चाय पियोगी या स्वीट लाइम जूस?’ मोमिता जी हँसकर कहा – चाय मगर जीजा जी के साथ. वे चाय के लिए खोज रहे होंगे. आप बस हैलोपेरिडॉल दे दीजिए, चाय के साथ पहला डोज़ चला जाएगा. फिर वो तनिश्क़ से भी तो बात करनी है, कल कह रहे थे 200 गोल्ड चेन ख़रीदनी है . कहीं अड्वान्स न दे दिया हो.” हैलोपेरिडॉल ड्रॉप लेकर मोमिता जी निकल गयीं. सेठानी जी, सामने पड़े नौलखे को देखती रहीं. बहुत ख़ूबसूरत था. उन्होंने दरवाज़ा बंद किया, हार पहना और आइने के सामने खड़ी ही गयीं. तभी मोमिता जी की स्कूटी का हॉर्न बजा और गेट खुलने की आवाज़ आयी .

शाम को मोमिता का फ़ोन आया – दो डोज़ दे दिया है. पहले से शान्त हैं. आप कल के लिए अप्वाइंटमेंट ले लीजिए .” सेठानी जी ने कहा – तुम ऑफ़िस से घर जाते समय थोड़ी देर के लिए आ जाओ. साथ चाय पिएँगे .” मोमिता जी दस मिनट में आ भी गयीं. चाय सेठानी जी के कमरे में ही आयी. अपनी फीकी चाय का पहला सिप लेते हुए सेठानी जी बोलीं – कैसे कहूँ मोमिता, बहुत शर्म आ रही है. पिछली तीन बार से डॉक्टर के यहाँ झगड़ा हो जा रहा है. डॉक्टर तो अच्छा ही है, मगर उसका कम्पाउंडर बड़ा बदतमीज़ है. पहली बार यह हुआ कि ये काउंटर पे गए, अपनी बारी पूछने के लिए और लौटे तो उसकी आवाज़ आयी- अरे मेरा फ़ोन क्या हुआ ? वह उन सबसे पूछने लगा जो अभी-अभी आकर लाइन में खड़े हुए थे. सब अपनी जेबें उलटकर दिखाने लग गए.एक देहाती आदमी ने तो अपना झोला उलट दिया और उसका गुड़-चूड़ा फैल गया. मुझे उस कम्पाउंडर पर बड़ा ग़ुस्सा आया. लेकिन सोचा, मुझे क्या करना. हमारा नम्बर तीन मरीज़ बाद था और वहाँ बैठने की जगह न थी सो मैं इन्हें साथ लेकर गाड़ी में जा बैठी. अंदर से फ़ोन की ढूँढ मची थी. गरमागरम आवाज़ें भी आ रही थीं. मैं कार में ही बैठी रही, मगर ये बाहर खड़े हो गए. शायद पान-पराग थूकने के लिए. थोड़ी देर बाद इनका नम्बर आया. हम दिखाकर बाहर निकले तो कम्पाउंडर ने विनम्रतापूर्वक कहा – सर, एक बार अपनी जेब चेक कर लीजिए न, कई बार लोग गलती से दूसरे का फ़ोन या पेन उठा लेते हैं.” सुनते ही इन्हें वो ग़ुस्सा आया मोमिता कि क्या कहें. बोले – सामने से हटो. अपनी औक़ात देखो, एक चेक से तुम्हारे डॉक्टर को ख़रीद सकता हूँ , मय जायदाद . तुम क्या चीज़ हो !’ कहते-कहते वे आगे बढ़े फिर रुककर बोले – यहीं कहीं होगा. ढूँढो भीतर से बाहर तक.” उसे यक़ीन नहीं हुआ. शक बना रहा. वह हमारे पीछे-पीछे आया. .. अगली बार जब हम गए तो कम्पाउंडर ने रहस्यपूर्ण ढंग से हमें देखा और कहा – फ़ोन मिल गया था, बाहर, नीम के पेड़ के पास.‘ डेढ़ महीने बाद हम फिर गए और हमें देखकर डॉक्टर का कम्पाउंडर एक और स्टाफ़ के साथ खुसुर-पुसुर करने लगा. मुझे लगा, कुछ तो है और जो भी है, हमारे बारे में ही है और मैंने उससे पूछ ही लिया – क्या बात है.” वह अजीब ढंग से हँसकर बोला – पिछली बार जिस दिन आपलोग आए थे नऽ उसी दिन सुधीर की खैनी-चूना की डिबिया ग़ायब हो गयी थी.” उसकी बात सुनकर ये ग़ुस्से में मुड़े – क्या बकते हो!” कम्पाउंडर ने खीसें निपोरते हुए कहा – जी, आप लोग तो बड़े आदमी हैं. आपका इससे क्या सम्बंध! हमलोग तो बस संजोग पर हँस रहे थे. अंदर जाइए नऽ, आप ही का नम्बर है.” उस बार तो दिखा लिया मोमिता, लेकिन अब न तो ये वहाँ जाना चाहते और न मैं ही.” मोमिता के मन में हलचल सी मच गयी. वह कुछ कहने को बेचैन-सी हो गयी. उसकी हालत भाँपकर सेठानी जी ने पूछा – क्या बात? मगर मोमिता ख़ुद को सम्भाल लिया – जी, कुछ नहीं, में चलूँगी न आपके साथ, कुछ नहीं होगा.

दो दिन बाद दो नारियों से घिरे गुनगुनाते-मुस्कुराते सेठ जी डॉक्टर साहब के पास पहुँचे. वहाँ एक इंजेक्शन लगा और एक भरा-पूर नुस्ख़ा मिला. मगर तब तक वे कई चेक काट चुके थे, दो झंझट वाले प्लॉट्स की ख़रीद के लिए अग्रीमेंट कर चुके थे और एक नयी फ़ोक्सवैगन पसाट ख़रीद चुके थे. बहरहाल, उन्हें आराम की सलाह दी गयी थी. वे आराम कर भी रहे थे मगर अगले दिन उनके दफ़्तर पर पुलिस का छापा पड़ा. छापे की वजह कुछ अजीब-सी थी. वे एक सरकारी सामान की तलाश कर रहे थे. मोमिता जी और मैनेजर लाख पूछें कि कौन सी चीज़, मगर वे बताने को तैयार नहीं. वर्दी वाले रौब झाड़ते हुए सेठ जी को बुलाने की बात पर अड़े थे और एक सख़्त चेहरे वाला बंदा जो सादी वर्दी में था, बार-बार किसी को फ़ोन और मेसिज कर रहा था. थोड़ी देर बाद उसने कहा – हम सही जगह पर हैं.” सामने ही सेठ जी का कमरा था. इन्स्पेक्टर भीतर घुसकर बैठ गया. बोला – सेठ जी को बुलाओ.” मोमिता जी ने सेठानी जी को फ़ोन किया और सारा हाल बताया. वे बोलीं – चिंता मत करो मैं आ रही हूँ .’ मोमिता जी ने सबके लिए पानी मँगवाया और कहा सेठ जी बीमार हैं, सेठानी जी आ रही हैं.“ वह आदमी जो बार-बार फ़ोन कर रहा था, कुछ यूँ कछमछ कर रहा था मानो कुर्सी में खटमल भरे हों. उसने फिर किसी को फ़ोन लगाना शुरू कर दिया और अचानक कमरे में एक रिंगटोन गूँजा – चल चल चल मेरे हाथी ओ मेरे साथी चल लेकर खटारा खींच के.. . इन्स्पेक्टर को हँसी आ गयी- कौन है बे राजेश खन्ना का बाप, बंद करो. मगर सख़्त चेहरे वाला आदमी सेठ जी की कुर्सी के पीछे अधखुले फ़ाइल कैबिनेट की तरफ़ बढ़ा. उनका हमेशा बंद रहने वाला सेफ़ खुला था. मोमिता जी को आश्चर्य हुआ. अरे, इसकी चाबी तो सदा सेठ जी के पास. यह तो उनकी प्यारी तिजोरी, जिसकी चाबी सदा उनके पास ही रहती थी. वह आदमी तिजोरी में टॉर्च की रोशनी डाल कुछ खोज रहा था कि अचानक सेठानी जी टोका – सर्च वारंट दिखाइए.’ सेठानी जी की आवाज़ सुनकर वह आदमी मुड़ा, उसके हाथ में एक फ़ोन था जिसे उसने रूमाल से पकड़ रखा था. उसने सेठानी जी और मोमिता जी को घूरते हुए कहा – मैंने आप दोनों को कल डॉ चतुर्वेदी के यहाँ देखा था. आपलोगों के साथ एक आदमी भी था. कहाँ है?, सेठानी जी हिम्मत बटोरकर बोलीं – मेरे साथ मेरे पति थे, सिंहानिया साहब, इस कम्पनी के एम डी. हमारी कई फ़ैक्ट्रियाँ हैं.” उस आदमी ने उसी सख़्ती से कहा – क्या फ़र्क़ पड़ता है! वह चोर है. मैं सीआइडी इन्स्पेक्टर हूँ और मेरा सरकारी फ़ोन इतने लोगों की मौजूदगी में उसकी तिजोरी से बरामद हुआ है. इस फ़ोन की चोरी की रपट थाने में दर्ज है. जहाँ से चोरी हुई, वहाँ दो गवाह भी हैं. गवाही तो वह भी देगा जिसकी खैनी -चूने की डिबिया चोरी हुई थी. वह भी मिल गयी है. इसमें और भी कई चीज़ें हैं- घड़ियाँ , चाबियाँ , लाह की चूड़ियाँ, क़लम, कई हेयर क्लिप्स, और कोई आठ दस फ़ोन. मेरा ख़याल है सब पर उसकी उँगलियों के निशान होंगे . मैंने जेब से पर्स निकालने के लिए फ़ोन पेमेंट काउंटर पे रखा था. तभी मेरा दूसरा फ़ोन बजा और पलक झपकते यह फ़ोन ग़ायब. .. ज़्यादा होशियारी मत करो. डॉ चतुर्वेदी के क्लिनिक में परसों ही सीसीटीवी कैमरा लगा है.” सेठानी जी सकते में ! मगर मोमिता जी पूरे आत्मविश्वास के साथ उसके सामने गयीं, सर उठाकर उसके चेहरे पर अपनी आँखें गड़ायीं और किसी कोर्ट के जज की तरह एक-एक शब्द में वज़न पैदा करते हुए बोलीं – पता है. मैं बीस सालों से उनकी पीए हूँ. उन्हें एक रोग है, जिसे क्लेप्टोमेनिया कहते हैं.वे चोर नहीं, बीमार हैं. यक़ीन नहीं, तो चलिए डॉ चतुर्वेदी के पास !” मोमिता जी की मज़बूत आवाज़ ने सबको ख़ामोश कर दिया. सेठानी जी धीरे से आगे बढ़ीं, टेबल पर बिखरे पड़े समान को ग़ौर से देखा- उसमें उनकी मेड का खोया हुआ फ़ोन भी था. पीले रंग अजीब सा फ़ोन. मगर ये हेयर क्लिप्स? ये कहाँ मिले उनको? मैं तो ऐसे हेयर क्लिप्स यूज़ नहीं करती और मोमिता के बाल तो शुरू से लड़कों जैसे. फिर ये कहाँ से…”

संपर्क : एनसी-116, एसबीआइ ऑफिसर्स कॉलोनी, कंकड़बाग, पटना, बिहार, मो. – 9431011775

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