क्रिसमस का पर्व 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. आज के समय में क्रिसमस पर्व ईसाई और गैर ईसाई सभी धर्म के लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं. अपने हाथों से क्रिसमस के लिए केक तैयार करते हैं, क्रिसमस ट्री सजाते हैं और सीक्रेट सेंटा बनकर बच्चों को गिफ्ट भी देते हैं. ईसाई धार्मिक मान्यता के अनुसार 25 दिसंबर का दिन प्रभु यीशु का जन्मदिवस है. प्रभु यीशु के जन्म दिवस का उत्सव पूरे उत्साह के साथ सभी घरों और चर्चों में मनाया जाता है. रंग-बिरंगे लाइट्स और बेल, स्टार्स से चर्चों और घरों को सजाया जाता है.
क्रिसमस के दिन लोग भगवान यीशु का जन्मदिन मनाते हुए एक साथ एकत्रित होर प्रार्थना करते हैं. प्रार्थना सभा में लोग दुनिया में शांति और अमन बनाए रखने की कामना करते हैं. लेकिन शायद अबतक आप यह नहीं जानते कि दुनिया में एक चर्च ऐसा भी है जहां क्रिसमस 25 दिसबंर को नहीं बल्कि 6 जनवरी को मनाया जाता है.
इतिहासकारों के अनुसार प्रभु यीशु ही ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं और उनके जन्म के बाद ही ईसाई धर्म का उदय हुआ. राजा तिरिडेट्स ने ग्रेगरी को पहला कैथोलिक घोषित कर दिया था. ऐसा माना जाता है कि गेगरी ने प्रभु यीशु को पृथ्वी पर उतरते देखा था. तब ग्रेगरी ने राजा को बताया कि प्रभु ने उन्हें आर्मेनिया में चर्च बनाने की बात कही है.
जिस जगह पर चर्च बनाने की बात कही गई थी उसी जगह पर विशाल ईसाई चर्च निकला, आज इसकी गिनती दुनिया के सबसे पुरानी चर्च में की जाती है. और इसके बाद से ही वहां लोगों का विश्वास भी बढ़ता गया.
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इसी अर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च ने 25 दिसंबर के बजाय 6 जनवरी को क्रिसमस दिवस घोषित किया. और तभी से यहां 6 जनवरी के दिन एपिफेनी का पर्व मनाया जाता है. और इसी पर्व के उपलक्ष्य में क्रिसमस सेलिब्रेट किया जाता है.