Daughter’s Day 2023: बेटियों को पंख दें…वे भर सकती हैं ऊंची उड़ान
पिछले दिनों लोकसभा और राज्यसभा में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023’ को बहुमत से पारित कर भारत ने नारी शक्ति के अभ्युदय का नया इतिहास रचा है, जिसकी खुशी एवं चमक हर स्त्री के चेहरे पर महसूस की जा सकती है. निश्चित यह पहल नारी शक्ति का सम्मान है.
अलका ‘सोनी’
देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहला कदम बेटियों को आत्मनिर्भर बनाना है. साथ ही उन्हें इस बात का एहसास दिलाना भी बहुत जरूरी है कि वे किसी भी सूरत में बेटों से कम नहीं हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी युवा आबादी का आधा हिस्सा बेटियां हैं. सुरक्षा और आगे बढ़ने के अवसर प्रदान कर ही हम उन्हें सही मायने में बराबरी का अधिकार दे सकते हैं. वैसे भी अब समय काफी आगे निकल चुका है. लड़कियां अब घर की देहरी को लांघकर हर दिशा में सफलता का परचम लहरा रही हैं. ऐसे में उन्हें हमारे सहयोग और मार्गदर्शन की बेहद आवश्यकता है. समाज के निर्माण में जितना योगदान एक बेटे का होता है, उतना ही एक बेटी का भी होता है. अगर यह कहें कि एक बेटी के कंधे पर समाज निर्माण की जिम्मेदारी ज्यादा है, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि आज जो बेटी है, वह कल होकर मां भी बनेगी. अतः हम अगर अपनी बेटी को सही शिक्षा, संतुलित भोजन, स्वस्थ शरीर और रोजगार के समुचित अवसर देते हैं, तो वह कल को परिवार और समाज का एक मजबूत आधार बनेगी. इस दिशा में हमें कुछ बातों को अनिवार्य रूप से अपनाने की जरूरत है.
उसे चाहिए आपका दोस्ताना व्यवहार
बेटियों की उम्र में परिवर्तन के कारण समय-समय पर उनकी मन:स्थिति में भी परिवर्तन आता रहता है. बढ़ती उम्र में उनमें अनेक तरह के भावनात्मक और शारीरिक बदलाव आते हैं. ऐसे में आवश्यक है कि पेरेंट्स विशेषकर मां का व्यवहार उसके साथ दोस्ताना हो, ताकि वह अपनी हर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक उलझन साझा कर सके. आपका दोस्ताना व्यवहार उसे भटकाव से रोकेगा. वह सहज महसूस करेगी, जिससे उसका सही और सकारात्मक विकास होगा.
निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें
एक बेटी का पहला रोल मॉडल उसकी मां ही होती है. वह अपनी मां से बहुत कुछ सीखती है. अगर वह अपनी मां को एक सशक्त और आत्मनिर्भर व्यक्तित्व के रूप में पाती है, तो वह भी प्रेरित होकर उनकी तरह ही बनना चाहेगी. जरूरी नहीं कि मां दफ्तरगामी ही हो. एक गृहिणी की गरिमा और सकारात्मक भूमिका भी बेटी का भविष्य संवार सकती है. मां का ममतामयी व्यवहार और आत्मविश्वास एक बेटी को भी मजबूत व्यक्तित्व से भर देगा. वह अपनी मां से निर्णय लेने की क्षमता, विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दम पर खड़े होने की प्रेरणा ग्रहण कर सकती है.
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बेटी को ‘बार्बी डॉल’ न बनाएं
आज का समय साहसी और आत्मनिर्भर होने का है, इसलिए बेटी का शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना बहुत आवश्यक है. जबकि हमारे समाज में बचपन से ही बेटियों को हाथों में डॉल थमा दी जाती है. उपहार में भी डॉल हाउस, किचन सेट देकर उनकी मानसिकता को प्रभावित किया जाता है. बेटियों को उनका मनचाहा खिलौना तो दें, लेकिन उनमें यह भावना न भरें कि वह भी बार्बी डॉल या फेयरी क्वीन है. उन्हें इंसान ही रखें, तभी वह एक कठिन जीवन के लिए तैयार हो सकेगी.
शिक्षा का दें समुचित अवसर
बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पहला कदम है उन्हें शिक्षा का समुचित अवसर देना. अभी भी ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में यही मानसिकता है कि लड़कियों को पढ़ा-लिखाकर करना ही क्या है? कुछेक क्लास पढ़वाकर उनके हाथ पीले कर दिये जाते हैं. शादी के बाद उनका बेटी के प्रति उत्तरदायित्व की इति श्री हो जाती है. यह मानसिकता खतरनाक है. यह बेटियों को दोयम दर्जे का महसूस करवाता है. आज सरकार की ओर से बेटियों को शिक्षित बनाने के लिए अनेक कदम उठाये जा रहे हैं. बस थोड़ा-सा धैर्य रखकर उनका फायदा उठाएं. हर बेटी को साक्षर और आत्मनिर्भर बनाएं.
संतुलित आहार का रखें विशेष ध्यान
पुरुषों के अपेक्षाकृत स्त्रियों की शारीरिक संरचना कहीं अधिक जटिल होती है. डॉक्टर भी सलाह देते हैं कि एक बेटी के लिए संतुलित एवं पौष्टिक आहार लेना कहीं अधिक आवश्यक है, क्योंकि वह जननी की भूमिका में होती है. हर महीने एक महिला के शरीर से आयरन की बहुत हानि होती है. अगर सही मात्रा में आयरन युक्त भोजन नहीं लिया जाये, तो वह अनीमिया की शिकार हो सकती है. अच्छी कद-काठी, उच्च शारीरिक-मानसिक क्षमता के लिए उसका संतुलित आहार लेना अत्यंत आवश्यक है. हर बेटी में एक भावी मां छिपी होती है. इसलिए हर दृष्टिकोण से उनका स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है. इस बात का ध्यान रखना हम सबकी जिम्मेदारी है.
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समाज को नयी ताकत दे रही हैं ये बेटियां
दुख होता है, जब हमारा समाज बेटियों को बोझ समझता है और उसे पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दिया जाता है. स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट-2020 कहती है कि 1970 से 2020 तक दुनिया में 14.26 करोड़ बच्चियों को जन्म से पहले ही मौत की नींद सुला दिया गया. यह आंकड़ा भारत के लिहाज से भी काफी त्रासदी पूर्ण है, क्योंकि जिस देश में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ की बात होती है, वहां इस कालावधि में 4.6 करोड़ बेटियों को जन्म नहीं लेने दिया गया. इतना ही नहीं, साल 2013 से 2017 के बीच देश में 4 करोड़ 60 लाख लड़कियां गर्भ में ही मार दी गयीं. जबकि, हमारे समाज में कई ऐसी लड़कियां हैं, जो अहसास दिलाती हैं कि उनका स्थान बेटों से कहीं ऊंचा है.
लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी इसकी मिसाल हैं, जिन्होंने अपने पिता को किडनी दान देकर उनके प्राणों की रक्षा की. रोहिणी ने कहा था- पापा के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं, मैं तो अभी सिर्फ अपने शरीर का मांस ही दे रही हूं. एक बेटी के इस साहस को सलाम है! एक पिता के प्रति ऐसा अटूट प्यार एक बेटी ही कर सकती है. बेटियां सिर्फ माता-पिता का सहारा ही नहीं होतीं, बल्कि वे परिवार के साथ समाज, देश का मान-सम्मान भी बढ़ाने का काम कर रही हैं. झारखंड के सिमडेगा की आदिवासी बेटी ब्यूटी डुंगडुंग ने गांव के खेतों से निकल कर भारतीय हॉकी टीम तक का सफर तय किया है. एक समय वह 100 रुपये कमाने के लिए खेतों में धान रोपने का काम करती थी. पिता ने भी जमीन गिरवी रखी थी, तब जाकर यह आदिवासी बेटी भारतीय टीम में हॉकी खेलने के लिए जगह बना पायी.
वहीं, रांची की मॉडल अलीशा गौतम उरांव जब एक ट्राइबल ब्यूटी कॉन्टेस्ट में दुधमुंहे बच्चे को गोद में लेकर रैंप पर उतरीं, तो सुर्खियों में छा गयीं. जिस शो में लोग रंग-रूप और फिटनेस को तवज्जो देते हैं, वहां अलीशा का यह साहस लोगों को एक नया नजरिया दे गया. दो बेटियों की मां अलीशा कहती हैं- ‘‘जब एक मां बच्चे को लेकर खेतों में रोपा कर सकती है, घर के सारे काम कर सकती है, तो रैंप वॉक क्यों नहीं? अलीशा के अनुसार, महिलाओं में शुरू ही से घर और बाहर सामंजस्य बिठाकर काम करने की क्षमता होती है. बस उन्हें अपने अंदर की नारी शक्ति को पहचानने की जरूरत है.
– सोनम लववंशी