Dr BR Ambedkar Jayanti 2022: अम्बेडकर ने भारतीय महिलाओं को कानूनी रूप से वोट देने, तलाक लेने और संपत्ति के मालिक होने का मार्ग प्रशस्त किया. उनका कहना था “मैं एक समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति की डिग्री से मापता हूं.” डॉ बीआर अंबेडकर ने 1927 में 3,000 से अधिक महिलाओं की एक सभा में यह बयान दिया था. 1936 में दलित समुदाय की जोगिनी और देवदासियों से अम्बेडकर इन प्रतिगामी धार्मिक प्रथा से लड़ने का आग्रह किया. युवा लड़कियों को मंदिरों में देवताओं को अर्पित करना और “समुदाय के सदस्यों के लिए उपलब्ध” बनना. उन्होंने कहा इन महिलाओं से कहा “तुम मुझसे पूछोगे कि कैसे अपना जीवन यापन करूं. मैं आपको यह नहीं बताने जा रहा हूं. इसे करने के सैकड़ों तरीके हैं. लेकिन मेरा आग्रह है कि आप इस पतित जीवन को त्याग दें…. और ऐसी परिस्थितियों में न रहें जो आपको अनिवार्य रूप से वेश्यावृत्ति में घसीटती हैं.”
महिला सशक्तिकरण को लेकर अंबेडकर की जुनूनी लड़ाई की शुरूआत साल 1942 में शोषित वर्ग की महिलाओं के एक सम्मेलन में देखने को मिली थी, जब उन्होंने कहा था, ‘किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं की प्रगति से आंकी जाती है.’ उनके यही शब्द उन्हें नारीवाद का एक बड़ा नेता मानते हैं, जिसने जाति समस्या और महिला के अधिकारों को एक करके देखा. उनका मानना था कि महिलाओं की स्थिति इसलिए बदहाल है क्योंकि वे सब जाति-प्रथा के जाल में फंसी हुई हैं. इतना ही नहीं आजादी मिल जाने के बाद भी चिंता इस बात की थी कि आधी आबादी का क्या होगा. देश में जहां संविधान को बनाने में तीन साल से ज्यादा का समय लग गया था, वही महिला अधिकारों के लिए लड़ाई अभी भी बाकी थी.
भारत सामाजिक व्यवस्था के तौर पर पितृसत्तात्मक है. यहां महिला का स्थान पुरूष से नीचे है. बेटियों को हीन नजर से देखा जाता है. हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में स्त्रियों को हीन नजर से देखा और प्रस्तुत किया गया है. मनुस्मृति जैसी किताबों में महिलाओं को नीचे दर्जे का दिखाया गया है व सभी अधिकारों से वंचित किया गया. अंबेडकर ने महिला सशक्तिकरण के रूप में प्राचीन ‘मनुस्मृति’ का दहन किया. 1920 के दशक की शुरुआत में मनु द्वारा दी गई महिलाओं की स्थिति और स्थिति के बारे में लिखते हुए, अंबेडकर ने टिप्पणी की: “क्या कोई संदेह कर सकता है कि यह मनु ही थे जो भारत में महिलाओं के पतन के लिए जिम्मेदार थे?”
वह केवल उपदेश देने में विश्वास नहीं रखते थे बल्कि उन्होंने हिंदू कोड बिल लाकर बेजोड़ मिसाल कायम की, जब यह बिल संसद में पेश किया गया तब इसे लेकर संसद के अंदर और बाहर विद्रोह मच गया. सनातनी धर्मावलम्बी से लेकर आर्य समाजी तक अंबेडकर के विरोधी हो गए. संसद में जहां जनसंघ समेत कांग्रेस के हिंदूवादी इसका विरोध कर रहे थे तो वहीं संसद के बाहर हरिहरानन्द सरस्वती उर्फ करपात्री महाराज के नेतृत्व में बड़ा प्रदर्शन चल रहा था.
Also Read: Dr BR Ambedkar Jayanti 2022: डॉ अम्बेडकर के अनमोल विचार, जो हर युवा के लिए प्रेरणा हैं, यहां पढ़ें
अम्बेडकर विशिष्ट अर्थों में समाजवादी नहीं थे, लेकिन उनका झुकाव विकासवादी समाजवाद की ओर था. उन्होंने अपने विचारों को विकसित किया और अपने तरीके से एक ‘समाजवादी’ के रूप में उभरे. महिलाओं के अधिकारों और उनके कारणों को आगे बढ़ाने में समान व्यवहार और अवसर की रक्षा के संदर्भ में अम्बेडकर की अपनी भूमिका इस अवधि में, यानी 20वीं शताब्दी की शुरुआत में महत्वपूर्ण है.