ऐसी मान्यता है कि विजयादशमी के दिन प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था. इसकी पृष्ठभूमि का पूरा विवरण हमें रामायण में पढ़ने को मिल जाता है. रामायण के विभिन्न पात्रों से हमें सीख मिलती है कि जीत हमेशा सच्चाई, नेकी, न्याय, ईमानदारी, निष्ठा और नैतिकता की ही होती है.
प्रभु श्रीराम
हमेशा उत्तम और मर्यादित आचरण करें
प्रभु श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा उत्तम व मर्यादित आचरण किया. सदा सच का साथ दिया. पिता दशरथ द्वारा माता कैकई को दिये गये वचन को निभाने में पीछे नहीं हटे. भले ही उन्हें इसके लिए काफी कष्ट झेलना पड़ा.
रावण
सच्चाई व अच्छाई के बिना सब व्यर्थ
रावण सोने की लंका का स्वामी था, वेद-पुराणों का ज्ञाता था, महादेव से वर प्राप्त कर अजेय बन चुका था. उसके पास विशाल सेना थी, लेकिन सच्चाई व अच्छाई से विमुख रावण ने माता सीता का छल से अपहरण किया. अपने अहंकार में चूर था, जो उसकी अकाल मृत्यु का कारण बना.
हनुमान जी
परोपकार व दयालुता के भाव को अपनाएं
बल, बुद्धि और विद्या देने वाले हनुमान जी, वानरवंश में जन्म लेने और चंचल चित्त के बावजूद पूजनीय बन गये. वे परोपकारी और दयालु थे. वन में प्रभु श्रीराम को मुसीबत में देखा तो वे उनकी मदद के लिए निस्वार्थ तैयार हो गये. इसके लिए उन्होंने अपनी जान भी जोखिम में डाल दी.
जटायु
गलत का विरोध करते समय हार से न डरें
जटायु से हमें सीख मिलती है कि हमेशा गलत का विरोध करना चाहिए. सच कष्टप्रद हो सकता है, फिर भी उसे छोड़ना नहीं चाहिए. जटायु अच्छी तरह जानते थे कि वे रावण से जीत नहीं सकेंगे, लेकिन वृद्ध होकर भी उन्होंने माता सीता के अपहरण को रोकने की कोशिश अंतिम क्षणों तक की.
भरत और लक्ष्मण
भाई मुसीबत में हो तो उसका साथ न छोड़ें
इन दोनों भाइयों ने एक आदर्श रखा कि भाई मुसीबत में हो तो कभी उनका साथ नहीं छोड़ना चाहिए. एक को दूसरे भाई के अधिकारों और उसकी संपत्ति की रक्षा करनी चाहिए. लक्ष्मण जहां भाई राम के साथ वन गये, वहीं भरत ने भाई की चरण पादुका को राजगद्दी पर रख अयोध्या के लोगों की सेवा की.