ठंड के कहर से जमने लगे अंडे और नूडल्स, जानिए कितनी डिग्री तक कहां पहुंचा पारा

ठंड का कहर हर तरफ बरस रहा है. नॉर्थ इंडिया में लोग ठंड का प्रकोप झेल रहे हैं. भारत के अलावा कनाडा, अमेरिका जैसे देश और यूरोप के कुछ हिस्सों में भी जबरदस्त ठंड पड़ रही है.

By Neha Singh | January 20, 2024 8:43 AM
undefined
ठंड के कहर से जमने लगे अंडे और नूडल्स, जानिए कितनी डिग्री तक कहां पहुंचा पारा 2

भारत के अलावा कनाडा, अमेरिका और यूरोप भी रिकॉर्ड तोड़ ठंड से जूझ रही है. दिल्‍ली-एनसीआर समेत भारत के कई राज्‍यों में सर्दी लोगों को कांपने पर मजबूर कर रही है. लेकिन दुनिया में कुछ जगह ऐसी हैं, जहां सबसे ज्‍यादा सर्दी पड़ती है. तापमान -50 डिग्री नीचे चला जाता है. फ‍िर भी वहां हजारों की संख्‍या में लोग रहते हैं. अब इस समय सवाल यह है कि अगर ठंड इतनी है तो ग्लेशियर क्यों पिघल रहे हैं? ग्लेशियर पिघलने का मतलब है कि क्या पृथ्वी गर्म हो रही है?अगर पृथ्वी गर्म हो रही है तो सर्दियाँ ठंडी क्यों हैं? क्या जलवायु परिवर्तन इस के लिए ज़िम्मेदार है?

जम रही चीजें

कनाडा में इतनी ठंड पड़ रही है कि अंडे, नूडल्स और बाकि सारी चीजें भी जमने लग गई है. कनाडा का एक वीडियो सामने आया है जिसमें दैनिक प्रयोग की चीजें भी जमने लग रही है. कनाडा में इतनी ठंड पड़ती है कि समुद्र का पानी तक जम जाता है.

ये हैं स्थिति

ऐसे तो भारत में अभी हांड़ कंपाने वाली ठंड पड़ रही है. सबसे ठंडे देशों की बात की जाए तो रूस, कनाडा, मंगोलिया, आइसलैंड, ग्रीनलैंड और फिनलैंड नाम आता है. यहां ठंड के दिनों में औसत तापमान -10 ड‍िग्री सेल्‍स‍ियस रहता है. मगर कई बार यह ग‍िरकर माइनस 30 से 40 ड‍िग्री तक भी पहुंच जाता है. ग्रीनलैंड तो चारों तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है, यहां चारों ओर आपको बर्फ ही नजर आएगी. कनाडा में तापमान माइनस 40 डिग्री नीचे तक गिर जाता है. इस साल यह गिरकर माइनस 45 डिग्री तक पहुंच चुका है.

Also Read: जानें सरसो तेल के हेल्थ बेनेफिट्स, सर्दियों में पूरे शरीर के लिए है फायदेमंद ग्लेशियर पिघलने का असर

ग्लेशियर यदि किसी गर्म इलाके के पास ग्लेशियर पिघलता है, तो वहां के लोगों को उसका लाभ मिलता है. बहुत ज्यादा मात्रा में ग्लेशियर पिघलने से पूरे विश्व के मौसम पर इसका असर पड़ता है और जलवायु चक्र अस्त व्यस्त हो जाता है. ग्लेशियर के ज्यादा मात्रा में पिघलने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा अधिक बढ़ जाता है. जिसके कारण खेती एवं स्थानीय निवास बहुत अधिक प्रभावित होता है. पर्यावरण में सुधार लाने के प्रयासों में कई देशो ने कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रित करने का फैसला लिया है. पृथ्वी पर ग्लेशियर पानी का सबसे बड़ा सोर्स है और इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है.

Also Read: Happy Winter : सर्दियों में सेहत का सुरक्षा गार्ड है ये फल, डेली डाइट में करें शामिल

Next Article

Exit mobile version