दिन-ब-दिन जलवायु एवं मौसम में हो रहे तीव्र बदलाव और खतरनाक स्तर की ओर बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर कई लोग अपने-अपने तरीके से पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहे हैं. ऐसी ही एक नायाब कोशिश है स्नेहा कुमारी की, जो न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि गो संरक्षण की अवधारणा को भी बल देती है.
जवाहर टोला की रहनेवाली बीएससी थर्ड इयर की छात्रा स्नेहा कुमारी को बचपन से ही प्रकृति और पर्यावरण से बेहद लगाव था. शायद यही वजह रही कि कोरोना काल में जब उसके वकील पिता का काम-धंधा मंदा पड़ा, तो उसने उन्हें बिजनेस करने का सुझाव दिया. पिता को भी बेटी का यह सुझाव पसंद आया. वह भी कुछ ऐसा करना चाहते थे, जो समाज और पर्यावरण के हित में हो.
बिजनेस का आइडिया तो तय हो गया, पर व्यावहारिक धरातल पर उसकी शुरुआत कैसे की जाये, यह जानने के लिए स्नेहा के पिता सुधीर कुमार अपने गृह नगर आरा से महाराष्ट्र के नागपुर सहित देश के अन्य कई शहरों में गये. वहां पर्यावरण उद्यमी परियोजनाओं के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों, संबंधित तकनीकों और कच्चे माल आदि की जानकारी प्राप्त की, जिससे उन्हें अपने बिजनेस को शुरू करने में काफी मदद मिली. घर लौट कर उन्होंने अपनी बेटी को इस बारे में बताया. विज्ञान की छात्रा स्नेहा को पर्यावरण संरक्षण सहित भविष्यगत संभावनाओं के मद्देनजर यह आइडिया काफी पसंद आया और उन्होंने इसी दिशा में अपना कैरियर बनाने की ठान ली.
स्नेहा की मानें, तो वह जब कभी भी गोशाला जाती थीं, तो वहां गोबर को यूं ही बर्बाद होते या नाली में बहते हुए देखतीं, तो सोचती कि ‘हमारे देश में धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण होने के बावजूद गोबर इस तरह से बर्बाद होता है. क्यूं न इसका कुछ ऐसा उपयोग किया जाये, जिससे कि इसकी बर्बादी भी रुके और इससे कुछ बेहतर विकल्प भी तैयार हो सके.’ काफी सोच-विचार करने और कई सारे यूट्यूब वीडियोज देखने के बाद उन्होंने अपने पिता की मदद से ‘गोवर्धन गो सेवा केंद्र ट्रस्ट’ की स्थापना की और इस बैनर के तहत ‘शिव सुगंधा इंटरप्राइजेज’ नाम से अपना स्टार्टअप बिजनेस शुरू किया और इसके तहत स्नेहा गोबर का उपयोग कर तरह-तरह के प्रोडक्ट बनाने लगीं.
स्नेहा बताती हैं कि शुरू में कुछ लोगों ने उनके इस काम का मजाक भी उड़ाया, पर उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगी रहीं. एक बार उनके पारिवारिक गुरु जी जब आरा में पधारे, तो स्नेहा के पिता ने उन्हें गोबर से निर्मित ‘ऊं’ का प्रतीक चिन्ह भेंट किया, जो कि उन्हें काफी पसंद आया. उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाने की सलाह दी. तब लोगों को भी इसकी महत्ता का पता चला. धीरे-धीरे स्थानीय मार्केट सहित अन्य शहरों से भी ऑर्डर मिलने लगे. अभी स्नेहा के पास दिवाली के मद्देनजर बनारस से ढाई लाख, मिर्जापुर से 20 हजार, हैदराबाद से 50 हजार और आरा शहर से एक लाख दीयों का एडवांस ऑर्डर है. आरा के मेयर और एसडीओ ने भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किये जानेवाले उनके कार्य को आगे बढ़ाने में उनकी मदद करने का आश्वासन दिया है.
स्नेहा बताती हैं कि गोबर को किसी भी तरह के उत्पाद में ढालने से पहले उसमें ग्वारगम (एक प्रकार का प्राकृतिक गोंद), मुल्तानी मिट्टी, चावल का आटा और इमली के बीजों का पाउडर मिलाया जाता है, ताकि वह ठोस और मजबूत आकार ले सके. फिर इस मिश्रण से दीया, अगरबत्ती, पूजा धूप, की-रिंग, वॉल हैंगिंग, चप्पल आदि का निर्माण किया जाता है, जिनकी कीमत पांच रुपये से लेकर 1200 रुपये के बीच है. स्नेहा अब तक 17 महिलाओं सहित कुल 20 लोगों को इस काम के लिए प्रशिक्षित कर चुकी हैं. इनके स्टार्टअप द्वारा बनाये गये प्रोडक्ट्स की ज्यादातर बिक्री अबतक माउथ पब्लिसिटी के आधार पर ही हुई है. फ्लिपकार्ट और व्हाट्सएप से भी ऑर्डर मिल जाते हैं. फिलहाल, अपने इस स्टार्टअप में सालाना 25 लाख निवेश कर स्नेहा महीने में एक-डेढ लाख रुपये कमा लेती हैं.